Chhattisgarh ke Pratikon ka Parichay: छत्तीसगढ़ के राजकीय चिन्ह से लेकर राजकीय गमछे तक, जानिए CG के सभी प्रतीकों का परिचय...सिर्फ एक क्लिक में
Chhattisgarh ke Rajkiy Pratikon ka Parichay: छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्राकृतिक संसाधनों से भरा हुआ है। यहां के प्रतीक इसकी पहचान को दर्शाते हैं, जिनमें राजकीय प्रतीक, राजकीय गमछा, राजकीय पशु, राजकीय पक्षी और राजकीय गीत शामिल हैं।
Chhattisgarh ke Rajkiy Pratikon ka Parichay: छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्राकृतिक संसाधनों से भरा हुआ है। यहां के प्रतीक इसकी पहचान को दर्शाते हैं, जिनमें राजकीय प्रतीक, राजकीय गमछा, राजकीय पशु, राजकीय पक्षी और राजकीय गीत शामिल हैं। ये सभी तत्व न केवल आधिकारिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाते हैं, बल्कि लोगों को अपनी जड़ों से जोड़ते हैं। राज्य की स्थापना और जीवंत स्थानीय कलाओं से प्रेरित ये प्रतीक लचीलापन और गौरव की कहानी कहते हैं।
इस लेख में हम महत्वपूर्ण प्रतीकों जैसे राजकीय पशु, पक्षी तथा गीत पर चर्चा करेंगे।
राजकीय प्रतीक चिन्ह: कैसे हुई रचना और क्या है महत्व
छत्तीसगढ़ का राजकीय प्रतीक चिन्ह एक गोलाकार मुहर है, जिसे 4 सितंबर 2001 को आधिकारिक रूप से अपनाया गया था, जब राज्य का गठन हुआ था। इसके केंद्र में लाल रंग में अशोक का सिंह स्थित है, जो भारत की राष्ट्रीय धरोहर का प्रतीक है और धान की सुनहरी बालियों से घिरा हुआ है। ये बालियां राज्य की कृषि समृद्धि को दर्शाती हैं, जहां छत्तीसगढ़ को भारत का धान का कटोरा कहा जाता है। सिंह के नीचे तीन लहरदार रेखाएं हैं, जो भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रंगों केसरिया, सफेद और हरे में हैं और राज्य की बहती नदियों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
इस पारंपरिक डिजाइन में एक आधुनिक स्पर्श जोड़ा गया है; दो बिजली के वोल्ट(नीले रंग में), जो छत्तीसगढ़ की ऊर्जा अधिशेष राज्य की स्थिति को दर्शाते हैं। पूरा प्रतीक 36 हरे रंग के किलों से घिरा हुआ है, जो उन ऐतिहासिक किलों का संकेत है जिनके नाम पर राज्य को "छत्तीसगढ़" नाम मिला। अंत में, "सत्यमेव जयते" का ध्येयवाक्य अंकित है, जो सत्य की विजय के भारतीय मूल्यों से राज्य को जोड़ता है। राजकीय प्रतीक चिन्ह की पृष्ठभूमि को सफेद रंग में दर्शाया गया है।
राजकीय गमछा: जानिए इसकी उत्पत्ति और प्रयोजन
छत्तीसगढ़ का राजकीय गमछा एक सांस्कृतिक दूत के रूप में कार्य करता है, जिसे शासकीय आयोजनों में अतिथियों को सम्मान और स्मृति के रूप में भेंट किया जाता है। इसको 14 अक्टूबर 2021 को लोकार्पित किया गया। यह पहल केवल प्रतीकात्मक नहीं है; यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करती है क्योंकि गमछे की बिक्री से प्राप्त आय का 95 प्रतिशत हिस्सा बुनकरों और गोदना कलाकारों को जाता है। इससे लगभग 300 बुनकरों और 100 गोदना शिल्पकारों को पूरे वर्ष रोजगार मिलता है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी आजीविका को बढ़ावा देता है।
सावधानी से तैयार किया गया यह गमछा दो प्रकारों में उपलब्ध है: टसर सिल्क और कॉटन यह प्रत्येक राज्य की वस्त्र विरासत को उजागर करता है। जिसकी चौड़ाई 24 इंच और लंबाई 84 इंच है। सिवनी चांपा के बुनकर इन्हें हथकरघों पर बुनते हैं, प्रत्येक टुकड़े की कीमत जीएसटी सहित 1,534 रुपये है, और बुनाई मजदूरी 120 रुपये प्रति नग है। बालोद, दुर्ग और राजनांदगांव के कारीगर इसे हथकरघों पर बनाते हैं, जो अधिक सुलभ है और जीएसटी सहित 239 रुपये में उपलब्ध है, बुनाई मजदूरी 60 रुपये प्रति नग। ये विवरण गुणवत्ता वाली शिल्पकला और पहुंच के बीच संतुलन को दर्शाते हैं, जिससे गमछा एक व्यावहारिक लेकिन अर्थपूर्ण वस्तु बन जाता है।
गमछे में कला के तत्व
छत्तीसगढ़ के राजकीय गमछे को जो विशेष बनाता है, वह है इसकी जटिल डिजाइन, जो क्षेत्र की लोककथाओं और प्राकृतिक प्रतीकों से ली गई है। सरगुजा की महिला कलाकारों द्वारा पारंपरिक गोदना टैटू शैली में उकेरी गई ये आकृतियां राज्य पक्षी पहाड़ी मैना को दर्शाती हैं और राज्य पशु वन भैंसे को, जो बस्तर के जंगलों की शक्ति और जंगलीपन का प्रतीक है। आदिवासी संगीत और नृत्यों में आवश्यक मांदर जैसे वाद्ययंत्रों के साथ बस्तर का प्रसिद्ध गौर मुकुट चित्रित है, जो अनुष्ठानों में उपयोग होता है। लोक नर्तकों की गतिशील मुद्राएं कपड़े में आनंद भरती हैं।
राज्य की कृषि पहचान को जोर देने के लिए डिजाइन में धान की बाली और हल जोतते किसान को दिखाया गया है। बॉर्डर में सरगुजा की प्राचीन भित्ति चित्रकला की छाप है, जो ऐतिहासिक कला की परतें जोड़ती है। हर तत्व गोदना तकनीक से मुद्रित है, जो प्रामाणिकता और हाथ की बनी अनुभूति प्रदान करता है, जिसे मशीनें दोहरा नहीं सकतीं
अन्य राजकीय प्रतीक: पशु, पक्षी और गीत।
छत्तीसगढ़ के प्रतीकों में राजकीय पशु, पक्षी और गीत भी महत्वपूर्ण हैं, जो राज्य की प्राकृतिक और सांस्कृतिक विविधता को प्रतिबिंबित करते हैं। राजकीय पशु वन भैंसा है, जो राज्य के घने जंगलों और आदिवासी जीवन का प्रतीक है। यह मजबूत और जंगली जानवर छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक शक्ति और संरक्षण की आवश्यकता को दर्शाता है। राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना है; एक मधुर स्वर वाली चिड़िया जो पहाड़ी इलाकों में पाई जाती है। यह पक्षी राज्य की जैव विविधता और लोक संगीत की परंपराओं से जुड़ा है। छत्तीसगढ़ के राजकीय पेड़ की बात करें तो साल को छत्तीसगढ़ के राजकीय पेड़ कहा जाता है. छत्तीसगढ़ विशेष व्यंजनों के लिए भी काफी प्रसिद्द है यहाँ का राजकीय पकवान पपची है जो गेहूं के आटे से बनने वाला एक मिठा व्यंजन है, वहीं छत्तीसगढ़ का राजकीय फूल गेंदा है.
राजकीय गीत "अरपा पैरी के धार" है, जिसकी रचना डॉ. नरेंद्र देव वर्मा ने की थी और इसे नवंबर 2019 में आधिकारिक रूप से अपनाया गया। यह गीत राज्य की नदियों, जैसे अरपा, पैरी और महानदी, की सुंदरता और महत्व को गाता है, जो छत्तीसगढ़ की जीवनरेखा हैं। गीत की पंक्तियां "अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार" राज्य की प्राकृतिक संपदा और सांस्कृतिक गौरव को व्यक्त करती हैं।
राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना में गीत कुछ इस प्रकार से हैं
अरपा पैइरी के धार महानदी हे अपार,
इन्द्राबती ह पखारय तोर पइयाँ।
महूँ पाँव परव तोर भुइयाँ,
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मइया।।
सोहय बिन्दिया सही घाते डोंगरी, पहार,
चन्दा सुरुज बने तोर नयना,
सोनहा धाने के संग, लुगरा के हरियर रंग
तोर बोली जइसे सुघर मइना
अँचरा तोरे डोलावय पुरवइया।।
(महूँ पाँव परव तोर भुइयाँ, जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मइया।।)
राइगढ़ हाबय तोरे मँउरे मुकुट
सरगुजा (अऊ) बेलासपुर हे बहियाँ,
रइपुर कनिहा सही घाते सुग्घर फभय
दुरुग, बस्तर सोहय पयजनियाँ,
नाँदगाँवे नवा करधनियाँ
(महूँ पाँव परँव तोर भुइँया, जय हो जय हो छत्तिसगढ़ मइया।।)
उपरोक्त गीत में से सिर्फ ऊपर के 2 अंतरा को ही राजकीय गीत बनाया गया है। इस राजकीय गीत में छत्तीसगढ़ के सात जिले और चार नदियों का उल्लेख है। गीत को पूरा गाने का समय 6 मिनट 36 सेकंड है परंतु राजकीय कार्यों में इसे 1 मिनट 15 सेकंड में ही गाए जाने का प्रावधान किया गया है।