Chhathi Pratha ka itihas: जन्म के छठवें दिन ही क्यों की जाती है छठी(षष्ठी) पूजा, जानिए छठी पूजा का इतिहास...
Chhathi Pratha ka itihas: जब किसी घर में बच्चे का जन्म होता है, तो घर का पूरा परिवार खुशी के माहौल में डूबा रहता है। ग्रामीण इलाकों में गांव के सभी लोग खासकर महिलाएं बच्चे को आशीर्वाद देने के लिए आती है। जानिए छठी संस्कार का इतिहास...
Chhathi Pratha ka itihas: जब किसी घर में बच्चे का जन्म होता है, तो घर का पूरा परिवार खुशी के माहौल में डूबा रहता है। ग्रामीण इलाकों में गांव के सभी लोग खासकर महिलाएं बच्चे को आशीर्वाद देने के लिए आती है। सभी लोग उसे अपनी गोद में उठाने के लिए आतुर रहते हैं। मनुष्य के जीवन में जन्म के बाद से ही कई रीति रिवाज और परंपराएं चालू हो जाती हैं। इन्हीं में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण परंपरा है छठी(षष्ठी)पूजा। जो बच्चे के जन्म के ठीक छह दिन बाद मनाई जाती है। यह सिर्फ एक रस्म नहीं है बल्कि हमारी सदियों पुरानी संस्कृति का एक अभिन्न अंग है।
16 संस्कार में से है एक
हिंदू धर्म में सोलह संस्कार बताए गए हैं और छठी पूजा इन्हीं संस्कारों में से एक है। जब कोई शिशु इस संसार में आता है तो शास्त्रों के अनुसार वह और उसका परिवार दोनों ही अशुद्धता की स्थिति में होते हैं। यह अशुद्धता कोई शारीरिक गंदगी नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक अवस्था है। पांच दिनों तक यह अशौच की स्थिति बनी रहती है और छठे दिन इससे मुक्ति पाने के लिए विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। हिंदू धर्म में छह शास्त्र होते हैं जिन्हें 6 दिन के रूप में मानते हुए छठवें दिन षष्ठी मनाई जाती है।
यह माना जाता है कि जन्म के समय कोई शिशु किसी धर्म, जाति या समाज का नहीं होता है, वह एक पूर्ण शुद्ध आत्मा होती है जिसे इन रीति रिवाज के द्वारा समाज में स्थान दिया जाता है। षष्ठी के दिन किया जाने वाला यह संस्कार शिशु को शुद्ध करके उसे परिवार और समाज का अंग बनाने की प्रक्रिया है। यह वह दिन होता है जब बच्चे को पहली बार परिवार के सदस्यों और इष्ट देवताओं के सामने प्रस्तुत किया जाता है।
षष्ठी माता की पूजा
छठी के दिन विशेष रूप से छठी माता की पूजा की जाती है। लोक मान्यताओं के अनुसार जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो छठी माता उसके पास छह दिनों तक रहती हैं। वे उस नन्हे से बच्चे की रक्षा करती हैं, उसे बुरी नजर से बचाती हैं और उसके स्वास्थ्य का ध्यान रखती हैं। बच्चों को सपने में कभी-कभी रुलाती और हंसाती भी है। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन माता बच्चे का तकदीर लिखती है।
षष्ठी से भगवान कृष्ण का संबंध
षष्ठी परंपरा का संबंध द्वापर युग में श्री कृष्ण जन्म से भी जुड़ता है। माता यशोदा ने श्री कृष्ण के जन्म के छठे दिन पर एक विशेष पूजा का आयोजन किया था जो भगवान कृष्ण को नजर लगने से बचने के लिए थी। इसी पौराणिक कथा के अनुसार आज भी षष्ठी कार्यक्रम मनाया जाता है।
कैसी होती है षष्ठी कार्यक्रम
छठी के दिन सुबह से ही घर में चहल-पहल शुरू हो जाती है। यह शुभता का प्रतीक माना जाता। गुनगुने पानी में हल्दी, चंदन मिलाए जाते हैं और नवजात शिशु को स्नान कराया जाता है स्नान के बाद बच्चे को नए कपड़े पहनाए जाते हैं। घर के आंगन में या पूजा स्थल पर एक चौकी रखी जाती है जिस पर लाल कपड़ा बिछाया जाता है। इस पर छठी माता की प्रतीकात्मक मूर्ति या चित्र रखा जाता है और पूजा में सभी देवताओं का आह्वान किया जाता है। आज के आधुनिक युग में षष्ठी पूजा का प्रचलन थोड़ा कम हुआ है।