शिक्षकों को निकम्मा कहने पर बवाल: प्रमुख सचिव ने कहा- शिक्षक आंकलन कर दें कि कौन से शिक्षक संतोषजनक, किसको निकम्मा माना जाएगा...

राज्य स्तरीय वेबिनार में प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला के शब्दों के विरोध में उतरे सभी शिक्षक संघ। प्रमुख सचिव से ही कई सवाल पूछे।

Update: 2022-07-02 13:38 GMT

रायपुर। शिक्षा विभाग के राज्य स्तरीय वेबिनार, जिसमें 20 हजार से ज्यादा शिक्षक जुड़े थे, उसमें प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला द्वारा निकम्मा शब्द कहने पर शिक्षक नाराज हो गए। शिक्षक संघों ने इस मुद्दे पर आपत्ति जताई है। साथ ही, शिक्षा विभाग के अफसरों से सवाल पूछा है कि उपलब्धियों के लिए शिक्षा विभाग के सचिव वाहवाही लेते हैं और कमियों के लिए शिक्षकों को निकम्मा क्यों कहा जा रहा है?

पहले इन शब्दों को पढ़िए कि डॉ. आलोक शुक्ला ने क्या कहा...

'समग्र शिक्षा के एमडी साहब मुझे तीन दिन में डॉक्यूमेंट बनाकर दें कि हम शिक्षकों ने क्या कार्य किया, उसका आंकलन कैसे करेंगे, किस प्रकार से आंकलन किया जाएगा शिक्षकों का, उस आंकलन में कौन से शिक्षक को संतोषजनक माना जाएगा, किसको निकम्मा माना जाएगा और किसको अत्यंत अच्छा माना जाएगा।'

इस पर शिक्षक संघ की क्या प्रतिक्रिया है, वह पढ़िए...

विवेक दुबे, सर्व शिक्षक संघ- यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और आपत्तिजनक बात है कि हर असफलता का ठीकरा शिक्षकों के सिर पर फोड़ा जाता है, जबकि इन्हीं शिक्षकों के प्रदर्शन के दम पर केंद्र सरकार से पुरस्कार हासिल किए जा रहे हैं। व्यवस्था में कमी सदैव रहती है, उसे सुधारने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ-साथ आत्म आंकलन भी जरूरी है। यदि शिक्षक फेल है तो निश्चित तौर पर अधिकारी भी फेल हैं। केवल एक को दोषी ठहरा देने से इतिश्री नहीं हो जाएगी। सचिव महोदय द्वारा 3 साल से यह कहा जा रहा है शिक्षकों की गैर शैक्षणिक कार्यों में ड्यूटी नहीं लगेगी, लेकिन लगातार ड्यूटी लगाई जा रही है। यहां तक कि चेकपोस्ट तक में शिक्षक ड्यूटी करने पर मजबूर हैं। एसडीएम और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी जब चाहें जिन शिक्षकों की चाहें ड्यूटी लगा देते हैं और शिक्षा विभाग विरोध तक नहीं कर पाता है। जो शिक्षक गैर शैक्षणिक कार्यों में संलग्न हैं, बाद में उन्हीं के परफॉर्मेंस को देखकर उन पर कार्रवाई की जाती है।

वीरेंद्र दुबे, छत्तीसगढ़ शालेय शिक्षक संघ- प्रमुख सचिव का बयान गैर जिम्मेदाराना है। शिक्षा व्यवस्था में जो कमियां हैं, उसके लिए अफसरशाही दोषी है। एसी कमरों में बैठकर नित प्रतिदिन एक नया प्रयोग स्कूलों में कर प्रयोगशाला बना दिया है और बच्चों को प्रायोगिक सामग्री। शिक्षकों से दिन रात इतने गैर शैक्षणिक कार्य कराए जाते हैं कि शिक्षक को अध्यापन के लिए समय ही नहीं मिल पाता है। रोज नए विधियों के अधकचरे ज्ञान से ही स्कूलों की गुणवत्ता बिगड़ रही है। उस पर कक्षा आठवीं तक कक्षोन्नति देना भी बच्चों की गुणवत्ता को कमजोर बनाना है।

धर्मेश शर्मा व जितेंद्र शर्मा- शिक्षकों को धमकाने के बजाय शिक्षा व्यवस्था की समीक्षा कर सुधार करनी चाहिए। अनावश्यक प्रयोग बंद करें। कमजोर गुणवत्ता के लिए शिक्षकों को दोषी ठहराना पूर्णतः गलत है और गैर जिम्मेदाराना भी। शिक्षक अपना दायित्व भली-भांति जानते और समझते हैं, तभी शिक्षा विभाग के अधिकारी लगातार छत्तीसगढ़ की शिक्षा को लेकर पुरस्कृत होते रहे हैं। खुद वाहवाही बटोरना और मेहनत करने वालों के हिस्से केवल आलोचना बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

संजय शर्मा, छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन- राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ की शिक्षा को सराहने पर शिक्षकों को कोई लाभ नहीं दिया गया, तब अधिकारियों ने वाहवाही लूटी। अब निम्न स्तरीय शिक्षा पर सजा की बात विभाग कैसे कर सकता है? उत्कृष्ट शिक्षा पर पुलिस या अन्य विभागों की तरह वेतनवृद्धि, आउट ऑफ टर्न प्रमोशन या भत्ता क्यों नहीं दिया जाता? शिक्षकों का प्रतिनिधित्व शिक्षक कर्मचारी संघ करते हैं। उनसे सुझाव लेकर शिक्षा का क्रियान्वयन क्यों नहीं किया जाता? शिक्षा सचिव को इन बातें पर ध्यान देना चाहिए...

-शिक्षक के चयन की प्रक्रिया जटिल है। हायर सेकंडरी, स्नातक, स्नातकोत्तर, डीएलएड, बीएड, फिर शिक्षक पात्रता परीक्षा पास कर शिक्षक बनने वाले व्यक्ति को निकम्मा कहना निंदनीय है।

-स्कूलों को प्रयोगशाला बना कर एनजीओ के लिए चारागाह बना दिया गया है। हर वर्ष शिक्षा में नए-नए प्रयोग कर रहे हैं। किसी भी योजना में स्थायित्व नहीं है। शिक्षक और विद्यार्थी वर्ष भर भ्रमित रहता है कि उसे करना क्या है? इसका दोषी कौन है शिक्षक या शिक्षा विभाग?

-शिक्षा की गुणवत्ता की और प्राप्त दोष को दूर करने के लिए कितने कुशल और वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति की गई है, जो शिक्षकों के साथ सामंजस्य बनाकर बाधाओं को दूर करे।

-प्रदेश भर के प्राथमिक से लेकर उच्चतर माध्यमिक तक के स्कूलों में 50 से अधिक एनजीओ को तैनात कर तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। विभाग के उच्चाधिकारियों के द्वारा आपसी समन्वय बनाकर एनजीओ को स्कूलों में लगा दिया जाता है। इससे गुणवत्ता सुधरने के बजाय और बिगड़ती जा रही है, क्योंकि अलग अलग एनजीओ के अनुसार अध्यापन और कार्य करने का तरीका अलग होता है, जो कि शिक्षक और विद्यार्थियों के मन में कन्फ्यूजन पैदा करती है।

-स्कूलों में 70 से अधिक अभियान/ योजना/ गतिविधियां संचालित हैं। रोज कोई न कोई दिवस और पखवाड़ा मनाने हेतु निर्देश वाट्सअप से भेज दिया जाता है। चाहे वह स्कूलों से संबंधित हो या पंचायत से।

-क्या कभी किसी शिक्षक या विद्यार्थियों से अभिमत लेकर स्कूलों में लागू किए जाने वाले कार्यक्रमों/योजना/अभियान को तैयार किया जाता है। शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों द्वारा बंद कमरों में यह तैयार किया जाता है, इसीलिए अधिकांश कार्यक्रम/योजनाएं/अभियान असफल होते हैं। भौगोलिक परिस्थितियां भी अलग अलग होती हैं, क्योंकि जो कार्यक्रम/योजनाएं/अभियान रायपुर और दुर्ग जिले में सफल हो सकती हैं, वो बस्तर, बीजापुर, भोपालपट्टनम, सरगुजा में नहीं।

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