Kanger valley national park of chhattisgarh: यहां हैरतअंगेज गुफाओं और उमगती नदी के साथ है खूबसूरत झरनों का सौंदर्य भी,ताउम्र याद रहेगी ये ट्रिप...
Kanger valley national park of chhattisgarh: कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान या यूं कहिए तपते मानव मन को राहत देने ईश्वर का वरदान। यहाँ 'तीरथगढ जलप्रपात' नाम का दूधिया झरना है तो इंसानों की बोली बोल लेने वाली पहाड़ी मैना है। यहाँ कोटमसर जैसी हैरान कर देने वाली गुफाएं हैं तो लहराती कांगेर नदी की मनभावन कलाएं हैं। यहां जंगली जानवरों से सामना होने का खौफ भी रहता है और चाह भी,यहां चहचहाते पंछियों संग गुनगुनाते हुए कट जाती है मुश्किल राह भी। कुल मिलाकर प्रकृति खुली बांहों से यहां आपका स्वागत करती है। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के जन्नत से इन नज़ारों की आज हम इस लेख के माध्यम से बात कर रहे हैं।
कांगेर घाटी में प्रवेश के साथ ही हरे-भरे वृक्षों के झुरमुट आपके मन को तरो-ताज़ा कर देते हैं। जैसे-जैसे आप भीतर जाते हैं, आपका दिल जीत लेने के लिए एक से एक प्राकृतिक नज़ारे हैं। खास जगहों के बारे में हम इस आलेख में जानकारी देंगे। पर पहले आपको कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान का सामान्य परिचय कराते हैं।
० ऐसा है कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान बस्तर जिले में स्थित है। यह जगदलपुर से करीब 27 किमी की दूरी पर है । वहीं रायपुर जिले से इसकी दूरी लगभग 330 किमी है। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान छत्तीसगढ के उत्तर पश्चिम किनारे पर तीरथगढ जलप्रपात से प्रारंभ होकर पूर्व में उड़ीसा की सीमा पर कोलाब नदी तक करीब 200 वर्ग किमी में फैला है। इसे 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। यह छत्तीसगढ़ का सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान है। तब से लेकर अब तक यहां पर्यटकों की सुविधा के लिहाज से व्यवस्था क्रमशः काफी बेहतर हुई हैं। अब वे इस रोमांचक ट्रिप का पूरा आनंद ले सकते हैं।
इस राष्ट्रीय उद्यान में बाघ, हिरण, भालू, लकड़बग्घा, काला हिरन, लंगूर, भेड़िया और कई तरह से रेप्टाइल पाए जाते हैं। यहां छत्तीसगढ़ का राजकीय पक्षी 'पहाड़ी मैना' भी पाई जाती है। जो इंसानी बोली को सीख लेने का हुनर रखती है। इसके अलावा यहां उड़न गिलहरी, भृगराज, उल्लू, वनमुर्गी, जंगल मुर्गा, क्रेस्टेड, सरपेंट ईगल, श्यामा रैकेट टेल, ड्रांगो आदि पक्षी मिलते हैं। यह राष्ट्रीय उद्यान 1 नवम्बर से 30 जून तक खुला रहता है। जुलाई से अक्टूबर तक यानी बारिश के दौरान उद्यान बंद रहता है। आइए अब जान लेते हैं कि आप इन निर्धारित दिनों के भीतर इस खूबसूरत और हैरतअंगेज राष्ट्रीय उद्यान में क्या खास देख सकते हैं।
० तीरथगढ़ जलप्रपात
यह छत्तीसगढ़ के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। जगदलपुर से 35 किलामीटर की दूरी पर मुनगाबहार नदी यह प्रपात बनाती है। चंद्राकार पहाड़ी पर से यहाँ पानी 300 फीट की ऊंचाई से गिरता है। इतनी ऊंचाई से झरता पानी देख ऐसा लगता है मानो दूध की नदिया बह रही हो। इसलिए इसे मिल्की ड्रॉप्स के रूप में भी जाना जाता है। जलप्रपात के समीप ही भगवान शिव और माँ पार्वती का मंदिर है। पर्यटक पिकनिक का लुत्फ उठाने यहां आना बहुत पसंद करते हैं। यहां तस्वीर लेना यूं है मानो प्रकृति की असल पोट्रेट बनाना।
० कोटमसर गुफा
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में प्रकृति प्रेमियों के लिए एक बेहद दुर्लभ दृश्य उपलब्ध है कोटमसर गुफा के भीतर। यह भारत की सबसे गहरी गुफा मानी जाती है और इसकी तुलना विश्व की सबसे लम्बी गुफा अमेरिका की 'कर्ल्सवार ऑफ़ केव ' से की जाती है। इस गुफा की सबसे खास बात है यहां चूना पत्थर से बनी विभिन्न आकृतियां और अंधी मछलियां।
यह प्राकृतिक भूमिगत गुफा 60 - 120 फिट गहरी है और इसकी लम्बाई 4500 फिट है।इस गुफा की खोज 1950 के दशक में भूगोल के प्रोफेसर डॉ. शंकर तिवारी ने कुछ स्थानीय आदिवासियों की मदद से की थी। गुफा के अंदर चूना पत्थर से बनी आकृतियां हैं। दरअसल चूना पत्थर, कार्बनडाईऑक्साइड और पानी की रासायनिक क्रिया के कारण उपर से नीचे की ओर कई सारी प्राकृतिक संरचनाएं बन गई है। ये धीरे- धीरे बनती और बढ़ती भी जा रही हैं और प्राकृतिक रूप से नित नए आकार गढ़ती हैं। जिन्हें अपनी-अपनी नज़र से देख पर्यटक बेहद खुश होते हैं।
गुफा के भीतर सूर्य की रौशनी बिल्कुल भी नहीं पहुंचती है।जिससे यहाँ घनघोर अंधेरा रहता हैं। मछलियों की दृष्टि का बरसों से उपयोग नहीं हुआ है। कहा जाता है कि इसी के कारण यहां की मछलियों की आखों पर एक पतली-सी झिल्ली चढ़ चुकी है, जिससे वे पूरी तरह अंधी हो गई हैं। चूंकि इस गुफा में घनघोर अंधेरा रहता है इसलिए यहाँ प्रवेश करने से पहले आपके पास एक अधिक रोशनी वाला टॉर्च होना चाहिए ताकि आप इस गुफा के अंदर की खूबसूरती को निहार सकें।
० कांगेर धारा जलप्रपात
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में कांगेर धारा जलप्रपात है जो एक अपेक्षाकृत कम ऊंचाई का जलप्रपात है।यहाँ पानी करीब 25से 30 फीट की ऊंचाई से गिरता है। कांगेर धारा जलप्रपात कांगेर नदी के बहाव की शुरुआत में स्थित है। तीन चरणो में बना यह छोटा झरना अपने प्राकृतिक सौंदर्य से किसी का भी मन मोह लेता है। इसका कम ऊंचा होना इसे अधिक सरल भी बनाता है क्योंकि इसके पास बैठकर पिकनिक का आनंद लेने में दहशत नहीं होती।
० कैलाश गुफा
राष्ट्रीय उद्यान के भीतर इस गुफा की खोज 1993 में हुई थी। पहले सिर्फ आदिवासी इसके बारे में जानते थे और इसके भीतर चूना पत्थर से प्राकृतिक रूप से बने "शिवलिंगम" की पूजा करने आते थे।
कैलाश गुफा के भीतर जाने का रास्ता काफी संकीर्ण है। एक वक्त पर एक व्यक्ति ही अंदर जा सकता है। हालाँकि अंदर जाने पर तीन हाॅलनुमा बड़े स्थान हैं जहां कई सारे लोग एक साथ बैठ सकते हैं। स्टैलेग्माइट और स्टेलेग्टाइट संरचनाओं से भरी ये गुफा आश्चर्यचकित भी करती है और थोड़ा डराती भी है।यहाँ प्राकृतिक रूप से बने स्तंभ चमकदार हैं। यहाँ स्लेटग्माइट के पत्थरों से संगीत की ध्वनि निकलती है जो पर्यटकों के लिए एक सुखद आश्चर्य की तरह है।
० भैंसा दरहा
जगदलपुर से 65 किलोमीटर की दूरी फर भैंसा-दरहा वास्तव में एक प्राकृतिक झील है जो मगरमच्छों और कछुओं के प्राकृतिक आवास के रूप में प्रसिद्ध है। इस झील की गहराई करीब 20 मीटर है और यहाँ पानी बहुत शांत भी नज़र आता है लेकिन यहां कभी भी मगरमच्छ से सामना हो सकता है इसलिए झील में न उतरना ही समझदारी है।
भैंसा-दरहा पहुंचने से पहले कांगेर नदी धीमी हो जाती है। पूरा स्थान बाँस के हरे-भरे जंगल से आच्छादित है। लोग इस क्षेत्र में पिकनिक प्लान करते हैं। चारों ओर हरी-भरी हरियाली दिल को सुकून और शांति के अहसास से भर देती है। भैंसा दरहा बरसात के मौसम में बंद हो जाता है। इसलिए यहाँ जाने के लिए सर्दी का मौसम ही सबसे उपयुक्त है।
पर्यटकों के लिए ये कुछ मुख्य आकर्षण हैं। इनके अलावा भी यहां बहुत से स्पाॅट हैं। गुफाएं ही दर्जन भर से अधिक हैं और निरंतर नई खोजी जा रही हैं। यहां आप आदिवासियों के जीवन को भी नज़दीक से देख सकते हैं। इस हैरतअंगेज राष्ट्रीय उद्यान में का भ्रमण आपके लिए एक यादगार अनुभव होगा।