Chief Vigilance Officer: जानें कौन होते हैं चीफ विजिलेंस अधिकारी, क्या होते हैं उनके दायित्व और शक्तियां?

Chief Vigilance Officer: मुख्य कार्यपालक के सलाहकार के रूप में मुख्य सतर्कता अधिकारी काम करते हैं और उन्हें सीधे रिपोर्ट करते हैं। वे संगठन के सतर्कता प्रभाग के प्रमुख होते हैं और संगठन और केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission) और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation) के बीच एक कड़ी का काम करते हैं।

Update: 2024-06-14 11:56 GMT

Chief Vigilance Officer: रायपुर। भ्रष्टाचार और दूसरे गैरकानूनी कामों का पता लगाना और दोषियों को सजा देना तो महत्वपूर्ण है ही, इसके साथ ही करप्शन को दूर करने के उपाय करना भी उतना ही जरूरी है। इसके लिए संगठनों के अध्यक्ष की सहायता के लिए मुख्य सतर्कता अधिकारी (Chief Vigilance Officer) की नियुक्ति की जाती है।

भारत सरकार केंद्र के सभी संगठनों में अधिकारियों की नियुक्ति करती है। मुख्य कार्यपालक के सलाहकार के रूप में मुख्य सतर्कता अधिकारी काम करते हैं और उन्हें सीधे रिपोर्ट करते हैं। वे संगठन के सतर्कता प्रभाग के प्रमुख होते हैं और संगठन और केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission) और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation) के बीच एक कड़ी का काम करते हैं।

चीफ विजिलेंस ऑफिसर के लिए चयन और नियुक्ति की प्रक्रिया

मुख्य सतर्कता अधिकारियों को उनकी उपयुक्तता के संबंध में केंद्रीय सतर्कता आयोग के पूर्व अनुमोदन पर भारत सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। इनका कार्यकाल 3 साल के लिए होता है, जिसे आयोग के अनुमोदन से उसी संगठन में 2 वर्ष और ट्रांसफर पर 3 वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है। जहां तक संभव हो, वे संगठन से बाहर के होते हैं। भारत सरकार के मंत्रालयों/विभागों या छोटे संगठनों (जो आकार में छोटे होते हैं) में मुख्य सतर्कता अधिकारी का प्रभार आयोग के अनुमोदन से मंत्रालय/विभाग के किसी अधिकारी को अंशकालिक आधार पर सौंपा जा सकता है। सीबीडीटी, सीबीईसी, डाक विभाग और रेलवे बोर्ड जैसे कुछ विभागों में पूर्णकालिक मुख्य सतर्कता अधिकारी का पद है।

मुख्य सतर्कता अधिकारी के काम

मुख्य सतर्कता अधिकारी किसी संगठन के सतर्कता प्रभाग का प्रमुख होता है और सतर्कता से संबंधित सभी मामलों में मुख्य कार्यकारी अधिकारी के सलाहकार के रूप में काम करता है। वह CVC और CBI के साथ बातचीत के लिए संगठन का नोडल अधिकारी भी होता है। मुख्य सतर्कता अधिकारी के कामों को इस तरह से कैटेगराइज किया जा सकता है-

  • निवारक सतर्कता
  • दंडात्मक सतर्कता
  • निगरानी और पता लगाना।

निवारक सतर्कता का मतलब

मुख्य सतर्कता अधिकारियों को भ्रष्टाचार या कदाचार की गुंजाइश को खत्म करने या कम करने के मकसद से संगठन के मौजूदा नियमों और प्रक्रियाओं की विस्तार से जांच करने जैसे कई निवारक उपाय करने का अधिकार है। उन्हें संगठन में संवेदनशील/भ्रष्टाचार वाले जगहों की पहचान करनी है और वहां के कर्मचारियों पर नजर रखनी है। सीवीओ को सिस्टम विफलताओं और भ्रष्टाचार या कदाचार के अस्तित्व का पता लगाने और संदिग्ध ईमानदारी वाले अधिकारियों पर उचित निगरानी बनाए रखने के लिए औचक निरीक्षण और नियमित निरीक्षण की योजना बनाने और उन्हें लागू करने की जरूरत होती है। वे अधिकारियों की ईमानदारी से संबंधित आचरण नियमों का तुरंत पालन सुनिश्चित करने के लिए भी बाध्य हैं, जैसे वार्षिक संपत्ति रिटर्न दाखिल करना, अधिकारियों द्वारा स्वीकार किए जाने वाले उपहार वगैरह।

दंडात्मक सतर्कता का अर्थ

मुख्य सतर्कता अधिकारियों को सतर्कता मामलों का जल्द और प्रभावी निपटान सुनिश्चित करना है। उन्हें ये सुनिश्चित करना चाहिए कि जांच की डॉक्यूमेंटेशन और रिपोर्ट, आरोपपत्र और आदेशों का मसौदा तैयार करना ऐसा होना चाहिए कि ये जांच के लिए उपयुक्त हो। सीबीआई के साथ नोडल लिंक के रूप में मुख्य सतर्कता अधिकारियों की ये भी जिम्मेदारी है कि वे यह देखें कि उन्हें सौंपे गए/उनके द्वारा शुरू किए गए मामलों की जांच में उन्हें उचित सहायता दी जाए।

निगरानी और पता लगाने का अर्थ

निगरानी और पता लगाने के मामले में मुख्य सतर्कता अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे संगठन की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखें, ताकि कदाचार या दुर्व्यवहार की संभावना को कम किया जा सके। उन्हें संवेदनशील क्षेत्रों में नियमित और औचक निरीक्षण करना चाहिए, ताकि पता लगाया जा सके कि लोक सेवकों द्वारा भ्रष्ट या अनुचित व्यवहार के मामले तो नहीं हुए हैं। उन्हें संगठन में हर साल किसी एक परियोजना/कार्य पर कम से कम छह सीटीई तरह के निरीक्षण करने चाहिए। वे कदाचार के बारे में किसी भी प्रथम दृष्टया जानकारी के आधार पर खुद से भी जांच शुरू कर सकते हैं।

क्या है केंद्रीय सतर्कता आयोग? 

सरकारी एजेंसियों या उसके काम-काज में भ्रष्टाचार को खत्म किया जा सके इसीलिए 1964 में केंद्रीय सतर्कता आयोग की स्थापना की गई।

केंद्रीय सतर्कता आयोग का गठन

साल 1962 में तत्कालीन केंद्रीय कैबिनेट मंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा के. संथानम की अध्यक्षता में एक भ्रष्टाचार विरोधी समिति का गठन किया गया था। इसी समिति की सिफारिश पर केंद्रीय अन्वेषन ब्यूरो को भी स्थापित किया गया और 1964 में भारत सरकार द्वारा एक प्रस्ताव पारित कर सतर्कता के क्षेत्र में केन्‍द्रीय सरकारी एजेंसियों को सलाह और मार्गदर्शन देने साथ ही भ्रष्टाचार रोकने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central vigilance commission) की भी स्थापना की गई।

उस वक्त ये एक प्रस्ताव के तहत गठित हुआ था, इसलिए उस समय न तो ये सांविधिक संस्था (Statutory body) थी और न ही संवैधानिक (Constitutional)। बाद में इस आयोग को केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम 2003 के जरिए स्वतंत्र सांविधिक प्राधिकरण का दर्जा दिया गया।

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