Baloda Bazar-Bhatapara district : बलौदाबाजार-भाटापारा जिले को जानिए : बलौदा बाजार-भाटापारा जिले का इतिहास और सामान्य परिचय

Update: 2023-03-06 10:42 GMT

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बलौदाबाजार-भाटापारा जिले की स्थापना 1 जनवरी 2012 को हुई। यह छत्तीसगढ़ के आंतरिक दक्षिणी हिस्से में स्थित है। प्रदेश के 7 वृहद सीमेंट संयंत्रों में से 4 बलौदा बाजार में स्थित हैं। इसलिए इसे 'सीमेंट का हब' भी कहा जाता है। यह सतनामी संत गुरु घासीदास जी का जन्म स्थान है। उनके सम्मान में यहां भव्य जैतखाम स्थापित किया गया है। छत्तीसगढ़ में सन 1857 के विद्रोह के प्रथम शहीद वीरनारायण सिंह की भी जन्मभूमि है। वहीं दामाखेड़ा कबीर पंथियों का तीर्थ है। बारनवापारा अभ्यारण्य भी इसी जिले के अंतर्गत आता है। यह प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है।

जिले का इतिहास

जिले के नामकरण की कहानी बहुत रोचक है। कहा जाता है कि पूर्व में गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बरार आदि प्रांतों के व्यापारी बैल और भैंसा (बोदा) खरीदने-बेचने यहां आया करते थे। जिसके फलस्वरूप इसका नाम बैलबोदा बाजार और कालांतर में बलौदा बाजार के रूप में प्रचलित हुआ।

अंग्रेजी शासनकाल में बलौदा बाजार रायपुर जिले के अंतर्गत आता था। 1982 में इसे तहसील का दर्जा मिला। 1 जनवरी 2012 को यह स्वतंत्र जिले के रूप में अस्तित्व में आया।

प्रशासनिक जानकारी

जिले का क्षेत्रफल 4748.44 वर्ग कि.मी. है। 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की जनसंख्या 13,05,343 है। बलौदा बाजार जिला मुख्यालय है। इसके अंतर्गत 7 तहसील, 6 विकासखण्ड, 2 नगर पालिका परिषद और 961 गांव हैं।

कृषि

बलौदा बाजार की मुख्य फसल धान है। यहाँ उद्यानिकी और मसाले, प्याज, ऐलोवेरा की खेती को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके अलावा गेंहूं, दलहन-तिलहन की खेती भी प्रमुखता से होती है। जिले में 4 कृषि उपज मंडिया भी है, जिनमें भाटापारा सिथत मंडी विशेष रूप से प्रसिद्ध है। सिंचाई के लिए महानदी, शिवनाथ, जोंक प्रमुख नदियां है।

खनिज

बलौदा बाजार जिले में चूनापत्थर बहुतायत में है। इसी वजह से यहां चार बड़ी और कुछ छोटी सीमेंट कंपनियां स्थापित हैं। ये कंपनियां जिले की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार भी हैं। यहां अल्ट्राटेक, अम्बूजा, लाफार्ज, ग्रासिम जैसे वृहद संयंत्र स्थापित हैं। इसके अलावा इमामी और श्री सिमेन्ट भी हैं। सोनाखान के बघमरा गांव में स्वर्ण चूर्ण पाये जाने की पुष्टि हुई है। इसके अलावा हथकरघा से साडि़यों व अन्य वस्त्रों का निर्माण भी किया जाता है। जिले में अनेक राइस मिल, दाल मिल, पोहा मिल संचालित है। यहां का चावल विदेशों में भी निर्यात किया जाता है। साथ ही पावर प्लांट और अन्य लघु व मध्यम उधोग भी संचालित है।

जिले के शिक्षण संस्थान

प्रमुख काॅलेज

शासकीय राजीव गाधी महाविद्यालय, सिमगा

शासकीय राजमहंत नयनदास महाविद्यालय, भटगांव

शासकीय मिनीमाता कन्या महाविद्यालय, बलौदाबाजार

शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय भाटापारा,

शासकीय दाऊ राम शर्मा कला, वाणिज्य एवं विज्ञान महाविद्यालय, कसडोल

शासकीय दाऊ कल्याण (डी.के.) कला एवं वणिज्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलौदाबाजार

शासकीय गजानंद अग्रवाल स्नातकोत्तर महाविद्यालय, भाटापारा

शासकीय बृजलाल वर्मा महाविद्यालय, पलारी

कमलाकांत शुक्ला प्रौद्योगिकी संस्थान, देवरी,भाटापारा और अन्य अनेक शासकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान भी है।

प्रमुख स्कूल

जवाहर नवोदय विद्यालय

अहिल्या पब्लिक स्कूल

डीएवी पब्लिक स्कूल

दिल्ली पब्लिक वर्ल्ड स्कूल

द आदित्य बिरला पब्लिक स्कूल

गवर्नमेंट हायर सेकंडरी स्कूल

अंबूजा विद्या पीठ

आर एल बी हायर सेकंडरी स्कूल

शासकीय लक्ष्मीप्रसाद कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आदि

जिले के प्रमुख पर्यटन स्थल

गिरौदपुरी जैतखाम

गिरौदपुरी छत्तीसगढ़ के सतनामी समाज के गुरु घासीदास जी का जन्मस्थान है। उन्हीं के सम्मान में छत्तीसगढ़ सरकार ने करीब 50 करोड़ रुपये की लागत से अतिसुंदर,भव्य और आधुनिक तकनीक से युक्त जैतखाम बनवाया है। यह सतनामी समुदाय के लोगों के लिए सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है। गिरौदपुरी जैतखाम की ऊँचाई 77 मीटर (243 फीट) है जो दिल्ली के कुतुब मीनार से भी अधिक है।जैतखाम में ऊपर तक चढ़ने के लिए घुमावदार सीढ़ी के अलावा लिफ्ट भी है। यह भव्य-श्वेत जैतखाम इतना विशाल है कि कई किमी दूर से दिखाई देता है।

बारनवापारा अभ्यारण्य

करीब 245 वर्ग किलोमीटर में फैले इस अभ्यारण्य की स्थापना वर्ष 1976 में हुई थी। बलौदा बाजार के दो गांवों "बार" और "नवापारा" के नाम पर अभ्यारण्य का नाम रखा गया "बारनवापारा अभ्यारण्य" । जोंक और बलमदेही नदी अभ्यारण्य से होकर बहती हैं। यह अभ्यारण्य अपनी विविध वानस्पतिक विशेषताओं और वन्य जीवों के लिए जाना जाता है।इस अभ्यारण में तेंदुएं, बाघ , गौर , भालू , चीतल , सांभर, नीलगाय, जंगली सुअर सामान्यतः देखे जा सकते हैं। साथ ही कोटरी चौसिंगा, जंगली कुत्ता, लकड़बग्घा ,लोमड़ी इत्यादि भी आसानी से दिख जाते हैं। वही रेंगने वाले जीवों के प्रजातियों की बात की जाए तो कोबरा, करैत, अजगर जैसी सर्प प्रजातियां पाई जाती हैं। इस अभ्यारण में 150 से भी अधिक प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं। जिनमें प्रवासी पक्षी भी शामिल हैं। प्रमुख पक्षियों में मोर, दूधराज, तोते, गोल्डन एरियल, ड्रेंगो, रॉबिन, पाई, कठफोड़वा, बुलबुल, हुदहुद, बाज़, उल्लू इत्यादि हैं।

तुरतुरिया

तुरतुरिया बहरिया नामक गांव के समीप बलभद्री नाले पर स्थित है। जनश्रुति है कि त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यहीं पर था और यही लवकुश की जन्मस्थली भी थी।इस स्थल का नाम तुरतुरिया पड़ने का कारण यह है कि बलभद्री नाले का पानी चट्टानों के बीच से होकर निकलता है तो उसमें से उठने वाले बुलबुलों के कारण तुरतुर की ध्वनि निकलती है। जिसके कारण उसे तुरतुरिया नाम दिया गया है।लंबी सुरंग से होकर जिस स्थान पर कुंड में यह जल गिरता है वहां पर एक गाय का मुख बना दिया गया है जिसके कारण जल उसके मुख से गिरता हुआ दिखाई पड़ता है।

तुरतुरिया में मंदिर के पास एक विशाल नदी बलमदेही है।

कैसे पहुँचे

प्लेन से

स्वामी विवेकानंद हवाई अड्डा रायपुर नजदीकी प्रमुख एयरपोर्ट है।

सड़क मार्ग से

एनएच 130 बी जिले से होकर गुजरता है। जिला अंतर राज्यीय सड़कों से भलीभांति जुड़ा हुआ है।

ट्रेन से

भाटापारा स्टेशन नज़दीकी स्टेशन है।

बिलासपुर और रायपुर जिलों के बड़े स्टेशन भी अधिक दूर नहीं हैं।

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