Jawaharlal Nehru Discussion : नेहरू पर लंबे विमर्श की ज़रूरत है!
Jawaharlal Nehru Discussion: विधानसभा चुनावों के परिणामों से गदगद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन विपक्षी सांसदों को नसीहत दी थी कि वे सकारात्मक रहें, हार का गुस्सा संसद में न उतारें...
Jawaharlal Nehru Discussion: विधानसभा चुनावों के परिणामों से गदगद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन विपक्षी सांसदों को नसीहत दी थी कि वे सकारात्मक रहें, हार का गुस्सा संसद में न उतारें। विपक्ष के साथ-साथ शायद श्री मोदी को अब अपने सांसदों को भी नसीहत दे देनी चाहिए कि जब जनता लगातार हम (भाजपा) पर भरोसा दिखा रही है, तो अब उस भरोसे पर उतरने के काबिल खुद को बनाएं और बार-बार नेहरू की बुराइयां तलाशना बंद करें। दरअसल बुधवार को संसद में एक बार फिर पं.नेहरू को कोसा गया।
लोकसभा ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक पारित कर दिया और इस दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि पीओके और कश्मीर के मसले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना नेहरूजी की बड़ी भूल थी। इसके साथ ही श्री शाह ने नेहरू के साथ ब्लंडर शब्द का इस्तेमाल करते हुए ये भी कहा कि कश्मीर में जनमत संग्रह के प्रस्ताव के लिए नेहरू ही ज़िम्मेदार थे।
देश के पहले प्रधानमंत्री पं.नेहरू को संसद में इस तरह पहली बार नहीं कोसा गया है। खुद श्री मोदी सदन के भीतर यह टिप्पणी कर चुके हैं कि गांधी परिवार के लोग नेहरू उपनाम क्यों नहीं लगाते, उन्हें नेहरू उपनाम से शर्मिंदगी क्यों होती है। देश के प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति के मुंह से ऐसी टिप्पणी अशोभनीय थी, लेकिन इस पर किसी तरह का कोई अफ़सोस नहीं देखा गया। जबकि दुनिया भर के नेता पं. नेहरू की उदार, शांतिप्रिय, लोकतांत्रिक नीतियों, बुद्धिमत्ता और नेतृत्व क्षमता का लोहा मानते थे। अमेरिका में ट्रंप सरकार के कार्यकाल में हुए हाउडी मोदी कार्यक्रम में अमेरिकी सीनेटर स्टेनी हॉयर ने मोदी के सामने पं.नेहरू और गांधीजी को याद किया था। पिछले साल सिंगापुर की संसद में पीएम ली सीन लूंग ने जवाहरलाल नेहरू की तारीफ करते हुए कहा था कि देश में लोकतंत्र को कैसे काम करना चाहिए। ये कुछ मिसालें हैं, जो बताती हैं कि मौत की आधी सदी गुजर जाने के बाद भी नेहरू जी को लोग सम्मानपूर्वक याद करते हैं। भाजपा वैचारिक मतभेदों के कारण भले ही नेहरूजी को याद न करे, लेकिन इस तरह झूठे तथ्यों के साथ उनकी गलतियां गिनाकर उनका अपमान करना भी गलत है।
अमित शाह के संसद में नेहरूजी पर लगाए इल्जाम से पहले विधानसभा चुनावों के नतीजों वाले जिन भाजपा के ट्विटर हैंडल पर नेहरूजी की एक तस्वीर प्रकाशित की गई थी, जिसमें वे एक महिला के साथ सिगरेट पीते दिख रहे हैं। सिगरेट पीना कोई अच्छी बात नहीं है, लेकिन ये उस दौर की बात है जब सार्वजनिक धूम्रपान किया जाता था। आप उस आदत की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन भाजपा ने चरित्रहनन के लिहाज से यह तस्वीर डाली थी। जब भाजपा जीत रही थी, उस वक़्त अपनी खुशी जाहिर करने के लिए क्या उसे यही तरीका सूझा था, या फिर इसका कोई और मक़सद था। और अभी संसद में फिर से नेहरूजी के जिम्मे गलतियां थोप कर भी भाजपा क्या हासिल करना चाहती है, यह समझना होगा।
जम्मू-कश्मीर में विशेष राज्य का दर्जा समाप्त हो चुका है, अनुच्छेद 370 मोदी सरकार ने हटा दिया है, राज्य दो हिस्सों में बंट गया है, लेकिन अब तक वहां चुनाव नहीं कराए गए हैं। सरकार सब कुछ सामान्य होने का दावा करती है, तो फिर अब चुनाव कराने का फैसला क्यों नहीं ले पाई है। कश्मीर के हालात के लिए नेहरूजी पर सारी ज़िम्मेदारी डालकर अपनी जिम्मेदारियों से कैसे बरी हुआ जा सकता है, ये सवाल भाजपा से पूछा जाना चाहिए। संसद में नेहरू के दो तथाकथित 'ब्लंडर' जब श्री शाह गिना रहे थे, तो वे शायद इस तथ्य को भूल गए कि कश्मीर मसले पर अकेले नेहरू काम नहीं कर रहे थे, इतिहास में दर्ज है कि इसमें सरदार पटेल, लार्ड माऊंटबेटन, शेख अब्दुल्ला, वी के कृष्ण मेनन इन सबकी अहम भूमिकाएं थीं।
भाजपा अगर इतिहास के पन्नों को पलटेगी तो देखेगी कि जनमत संग्रह का प्रस्ताव नेहरू की ओर से पहले नहीं आया था। इस मामले में भारत के तत्कालीन गर्वनर जनरल माउंटबेटन ने मोहम्मद अली जिन्ना से भी मुलाकात की थी, जिसके बाद 2 नवंबर 1947 को नेहरू को लिखे एक खत में माऊंटबेटन ने कहा कि -
'मैंने मिस्टर जिन्ना से पूछा कि आप कश्मीर में जनमत संग्रह का इतना विरोध क्यों करते हैं। उन्होंने उत्तर दियाः कारण यह है कि कश्मीर पर भारतीय उपनिवेश का अधिकार होते हुए और शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कांफ्रेंस के वहां सत्तारूढ़ होते हुए, वहां के मुसलमानों पर प्रचार और दबाव का ऐसा जोर डाला जाएगा कि औसत मुसलमान कभी पाकिस्तान के लिए वोट देने की हिम्मत नहीं करेगा।'
यानी जनमत संग्रह का डर जिन्ना को था, नेहरू को नहीं। वहीं भारत के गवर्नर जनरल की हैसियत से लॉर्ड माऊंटबेटन ने सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में जनमत संग्रह कराने की पेशकश जिन्ना से की थी। माऊंटबेटन के शब्दों में- ‘मैंने सुझाया कि जनमत संग्रह का कार्य हाथ में लेने के लिए हम संयुक्त राष्ट्र संघ को निमंत्रित कर सकते हैं और मुक्त तथा निष्पक्ष जनमत संग्रह के लिए आवश्यक वातावरण उत्पन्न करने के लिए हम राष्ट्र संघ से ऐसी विनती कर सकते हैं कि वह पहले से अपने निरीक्षकों और संगठनों को कश्मीर भेज दे. मैंने दोहराया कि मेरी सरकार यह कभी नहीं चाहेगी कि कपटपूर्ण जनमत संग्रह द्वारा कोई झूठा परिणाम प्राप्त किया जाए।’
इस चिट्ठी से साफ़ होता है कि नेहरू ने न पहले जनमत संग्रह की बात की, न इस मुद्दे को संरा तक ले जाने की पेशकश उनकी थी। मगर भाजपा आधी-अधूरी बातों को सदन के सामने रख रही है। पं.नेहरू तो अपना पक्ष रखने के लिए इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन शेख अब्दुल्ला के बेटे फारुख़ अब्दुल्ला ने इस पर प्रतिक्रिया दी है कि उस समय सेना पुंछ और राजौरी को बचाने में लगी थी। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो पुंछ और राजौरी भी पाकिस्तान में चले जाते। तब इसके अलावा कोई रास्ता नहीं था। उन्होंने यह भी कहा कि लॉर्ड माऊंटबेटन और सरदार वल्लभभाई पटेल ने भी सुझाया था कि यह मामला संयुक्त राष्ट्र में जाना चाहिए। इसी तरह राजद सांसद प्रो.मनोज झा ने एक सटीक उपाय सुझाया है कि मोदी सरकरा को नेहरूजी के नाम का एक विभाग बना देना चाहिए। और यह भी कहा है कि यदि समस्या है तो नेहरू पर एक दिन 12 घंटे की चर्चा कर लें, सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
यह सुझाव भले ही तंज में दिया गया है, लेकिन अगर भाजपा इस पर अमल करने की हिम्मत दिखा दे तो सच में इतिहास के मोड़ के रखे गए पन्ने एक बार फिर जनता के सामने होंगे और जनता खुद तय कर लेगी कि नेहरूजी ने देश को संभालने और दिशा देने में कहां, कौन सी भूलें कीं।