विष्णुदेव सरकार की चिकित्सा योजनाएं गरीबों के लिए संजीवनी साबित हो रही, बिना पैसे हो रही महंगे इलाज की व्यवस्था
छत्तीसगढ़ सरकार की आयुष्मान और चिरायु के साथ कई चिकित्सा योजनाएं आम आदमी के लिए वरदान साबित हो रही है। पहले इलाज के अभाव में लोग दम तोड़ देते थे। मगर अब सभी को उपचार मुहैया हो रहा है।
रायपुर। छत्तीसगढ़ में अब इलाज के अभाव में लोगों की जान नहीं जाती। सरकार की चिकित्सा योजनाओं के चलते अब लोगों को उपचार से वंचित नहीं होना पड़ता। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय खुद इसको लेकर काफी संवेदनशील हैं। उन्होंने अफसरों को निर्देश दे रखा है कि इलाज के लिए किसी भी जरूरतमंद को भटकना न पड़े।
शासन द्वारा दी जाने वाली की मूलभूत सुविधाओं में से एक स्वास्थ्य सुविधा है और केंद्र सरकार बचपन में ही बीमारियों का पता लगाकर उसे समूल समाप्त करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम संचालित कर रही है, जिसके अंतर्गत जटिल से जटिल बीमारियों का भी इलाज निःशुल्क कराती है। एक ओर जहां निजी अस्पतालों में उपचार के लिए लाखों रुपए खर्च हो जाते हैं, वहीं सीमित आय वाला व्यक्ति अपने बच्चों का जीवन बचाने में नाकामयाब हो जाते हैं। इन्हीं तकलीफों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत चिकित्सकों की टीम “चिरायु“ योजना अंतर्गत स्कूलों व आंगनबाड़ी केंद्रों में जाकर स्वास्थ्य परीक्षण करती है किसी प्रकार की असाधारण व्याधि परिलक्षित होने पर चिरायु और आयुष्मान योजना के तहत आगे उच्च स्तरीय उपचार के लिए रेफर करती है।
ऐसा ही एक मामला सामने आया, जिसमें विकासखंड चारामा के वार्ड क्र. 7 निवासी मोईनुद्दीन खान के पुत्र शब्बीर खान आयु 18 माह का स्वास्थ्य परीक्षण चिरायु दल द्वारा किया गया। इसके पहले, ग्रामीण स्वास्थ्य संयोजक के द्वारा चिरायु दल को सूचित किया गया था स उसके उपरांत चिरायु दल द्वारा उसके घर जाकर शारीरिक परीक्षण किया गया, जिसमें बालक के सिर में डर्मोइड सिस्ट होना पाया गया। आगे के इलाज की कार्रवाई करते हुए चिरायु दल द्वारा रायपुर के एक निजी अस्पताल में बच्चे की जाँच कराई गई, जिसका निःशुल्क ऑपरेशन डीकेएस हॉस्पिटल रायपुर में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। परिणामस्वरूप वर्तमान में बालक पूर्ण रूप से स्वस्थ है एवं बालक के परिजन भी चिरायु योजना एवं आयुष्मान योजना के तहत हुए इलाज से संतुष्ट और प्रसन्न हैं। इसके बाद चिरायु टीम द्वारा ऑपरेशन के पश्चात बच्चे का नियमित फॉलोअप लिया जा रहा है। बच्चा वर्तमान में सामान्य बच्चों की तरह अपने व्यवहार में वापस लौट आया है।
जशपुर की 10 वर्षीय बालिका बबिता को माता-पिता ने मुख्यमंत्री कैम्प कार्यालय बगिया पहुंचकर बच्ची के ईलाज के लिए फरियाद लगायी। यह बच्ची गुमसूम रहती थी, खेलने-कूदने में भी इसे दिक्कत होती थी। कैम्प कार्यालय के निर्देश पर इस बालिका का चिकित्सकीय परीक्षण हुआ। परीक्षण में चिकित्सकों ने दिल में छेद होने की आशांका जतायी और बालिका को समुचित उपचार करने के लिए उनके माता-पिता को समझाईश दी गई।
जिला प्रशासन जशपुर और चिरायु टीम के जरिए बबिता के दिल का एम्स रायपुर में सफल ऑपरेशन हुआ। अब वह पूरी तरह से स्वस्थ हो चुकी है। उसे कैम्प कार्यालय के जरिए नया जीवन मिला है। बबिता के माता-पिता बच्ची के हृदय में छेद होने की जानकारी मिलने पर बहुत चिंतित हो गए थे। लेकिन जिला प्रशासन और कैम्प कार्यालय की मदद से उनकी दिक्कत दूर हो गई। चिरायु टीम के अमित भगत ने बताया बचपन से बबीता को दिल में छेद था, सांस लेने और दौड़ने भागने में भी दिक्कत आती थी।
बबीता की मां जय कुमारी बाई और पिता झमेश राम ने बताया कि उनकी बेटी को जन्म से दिल में छेद होने का अंदेशा था। लेकिन आर्थिक तंगी और ईलाज में होने वाले खर्च को लेकर भी उन्हें दिक्कत महसूस हो रही थी। जैसे ही उनका आवेदन कैम्प कार्यालय को मिला मुख्यमंत्री ने तत्काल बबीता का ईलाज करने के निर्देश दिए। जिला प्रशासन और चिरायु टीम बच्ची के घर जाकर पालकों से सम्पर्क किया और ईलाज की व्यवस्था की गई।
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम (जीवनधारा) अंतर्गत शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय से संबंद्ध जिला चिकित्सालय में संचालित डायलिसिस सेंटर में किडनी के मरीजों को निःशुल्क डायलिसिस सुविधा का लाभ मिल रहा है। अभी तक , प्रति दिवस तीन डायलिसिस सेशन प्रति मशीन के अनुसार अब तक 16828 सेशन किए गये है।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. पी. कुदेशिया ने बताया कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम अंतर्गत मरीजों को निःशुल्क डायलिसिस सुविधा दी जा रही है। अस्पताल में डायलिसिस हेतु 05 मशीन लगाई गई है। मशीनों द्वारा लगभग 04 घंटे में डायलिसिस की प्रक्रिया पूरी होती है। मरीज स्थिति के अनुसार माह में 08-12 बार तक डायलिसिस कराना होता है। वर्तमान में डायलिसिस यूनिट में 49 एक्टिव मरीज पंजीकृत है, जो नियमित रूप से डायलिसिस करवाने आते है। उक्त पांच मशीनों में से एक मशीन हेपेटाइटिस सी के मरीजों के लिए कार्य कर रही है। डायलिसिस सुविधा का लाभ ले रहे महासमुंद नगर के निवासी 56 वर्षीय रवि तिवारी के साथ आई उनकी बेटी वर्षा तिवारी ने बताया कि पहले डायलिसिस के लिए रायपुर जाना पड़ता था, जो काफी खर्चीला और परेशानी भरा होता था। अब घर के पास ही यह सुविधा उपलब्ध होने से उनके परिवार को बड़ी राहत मिली है। हफ्ते में 02 से 03 बार डायलिसिस के अपने पिता को लेकर वह महासमुंद अस्पताल आती हैं। ग्राम नवागांव तेन्दुकोना के 58 वर्षीय रोहित सिन्हा ने बताया कि लगभग 02 वर्ष रायपुर में जांच के बाद डायलिसिस के सलाह दी गई थी। कुछ समय वहां डायलिसिस के बाद में महासमुन्द के निजी अस्पताल पहुंचे, जहां अत्यधिक रूपए व्यय करना पड़ता था परंतु जिला अस्पताल में मिल रही सुविधा से उन्हे राहत मिली है। यहां मरीजों को निःशुल्क डायलिसिस सुविधा के साथ ही खानपान के संबंध में भी जानकारी दी जाती है।
जिले में एक बार पुनः राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम चिरायु की टीम ने जन्म से श्रवण बाधिता से पीड़ित दो बच्चों का एक साथ ऑपरेशन करवा कर उनमें सुनने की क्षमता लाने का कार्य किया है। गत दिवस विकासखंड सिमगा के ग्राम चक्रवाय और ग्राम बिटकुली के दोनों बच्चों का अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान रायपुर में सफल ऑपरेशन हुआ और वह स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। इस बारे में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉक्टर राजेश कुमार अवस्थी ने बताया की विकासखंड सिमगा के ग्राम चक्रवाय के साढ़े पाँच वर्षीय भानू निषाद तथा ग्राम बिटकुली के पाँच वर्षीय आरु साहू जन्मजात श्रवण बाधित थे जिनकी पहचान बच्चों के स्वास्थ्य परीक्षण कर रही चिरायु की टीम ने किया था। दोनों ही बच्चों के कई प्रकार की जाँच के बाद एम्स के चिकित्सकों ने कॉक्लियर इम्प्लांट ऑपरेशन की सलाह दी। इसमें भानू निषाद का 20 अगस्त तथा आरु साहू का 22 अगस्त को ऑपरेशन किया गया जो सफल रहा।
सिमगा के खंड चिकित्सा अधिकारी डॉ पारस पटेल के अनुसार दोनों ही बच्चों के पालकों को इस ऑपरेशन को लेकर कई प्रकार से काउंसिलिंग कर तैयार किया गया। पालकों ने बताया कि,बच्चों को जन्म से ही सुनाई नहीं देता था। इस कारण उनकी परवरिश आम बच्चों जैसी नहीं हो पाई। क्योंकि बच्चे सुन नहीं सकते जिस कारण उनमें भाषा शक्ति भी विकसित नहीं हो पाई जिससे बोलने में भी दिक्कक्त होती थी। परिवार की आर्थिक स्थिति भी साधारण है जिससे महंगे प्राइवेट अस्पताल के इलाज का खर्च नहीं उठा सकते थे। भानू के पिता ड्राइवर हैं जबकि आरु के पिता चाय की छोटी दुकान चलाते हैं। दोनों ही बच्चों का यह ऑपरेशन निःशुल्क हुआ है। जाँच और दवाइयां भी निःशुल्क प्राप्त हुई हैं। जिला कार्यक्रम प्रबंधक सृष्टि मिश्रा के अनुसार राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम चिरायु अंतर्गत स्कूलों और आंगनवाडी केंद्रों में स्वास्थ्य टीम स्वास्थ्य परीक्षण करती है। इसमें कई प्रकार की बीमारियो की पहचान कर बच्चों का इलाज किया जाता है। इससे पूर्व भी टेढ़े-मेढ़े पैर,हृदय में छेद ,बच्चों में मोतियाबिंद जैसे प्रकरणों का उपचार किया गया है। गौरतलब है की कॉक्लियर इम्प्लांट एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो ऐसे व्यक्ति को लगाया जाता है जिसके सुनने की क्षमता या तो नहीं है या एकदम कम है। इसमें एक हिस्सा बाहरी होता है जबकि दूसरा हिस्सा ऑपेरशन से कान के अंदर लगाया जाता है। निजी अस्पतालों में यह काफी महंगा होता है जिसकी लागत लाखों हो सकती है।
बच्चों के सुपोषण पर विशेष जोर
बच्चों में कुपोषण एक अत्यंत ही गंभीर स्थिति मानी जाती है। इससे बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है तथा इसके कारण शिशु मृत्यु दर भी बढ़ने का भी खतरा रहता है। ऐसे में राज्य शासन द्वारा जिला बलौदाबाजार भाटापारा में पोषण पुनर्वास केंद्रों का सफलतापूर्वक संचालन करते हुए गंभीर रूप से कुपोषण से पीड़ित बच्चों को इससे निकालने हेतु सफल प्रयास किया जा रहा है। जिला अस्पताल बलौदाबाजार के पोषण पुनर्वास केन्द्र से ठीक हुई पलारी विकासखंड के ग्राम कोनारी की 6 माह की बच्ची की माता हेमिन बाई ध्रुव के अनुसार उनकी बच्ची का वजन 3 किग्रा था जिसे जिला अस्पताल में भर्ती कर पोषण आहार दिया गया। पोषण आहार देने के पश्चात उसका वजन 6 किग्रा हो गया, अब बच्ची पूरी तरह ठीक है। ऐसे ही पलारी विकासखंड अंतर्गत ग्राम चरौदा की 2 साल की गंभीर कुपोषित बच्ची का वजन मात्र 4 किलो 400 ग्राम था, जिसे अस्पताल में भर्ती कर पोषण आहार दिया जा रहा है। बच्ची की मां सरिता ध्रुव के अनुसार अस्पताल में उन्हें बेहतर उपचार तथा पोषण आहार समय पर मिल रहा है।
बलौदाबाजार में जिला अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कसडोल तथा पलारी में पोषण पुनर्वास केंद्र संचालित किए जा रहे हैं। पोषण पुनर्वास केंद्र एक सुविधा आधारित इकाई है जहां 5 वर्ष से कम एवं गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों को पोषण सुविधा प्रदान की जाती है साथ ही बच्चे के पालकों को आवश्यक देखभाल तथा खान-पान संबंधित कौशल प्रशिक्षण भी दिया जाता है जिससे वह घर पर भी अपने बच्चों को कुपोषण से दूर करने का प्रयास कर सकें। जनवरी 2024 से अब तक जिला अस्पताल में 94,पलारी में 135 तथा कसडोल में 141 बच्चे भर्ती किये जा चुके हैं।
चिकित्सकों के अनुसार बच्चों में कुपोषण मुख्यतः दो प्रकार का पाया जाता है पहला सूखा रोग जिसमें शरीर की मांसपेशियां बहुत कमजोर हो जाती हैं, तथा वजन में कमी आ जाती है। शरीर दुबला पतला हो जाता है ,हड्डियां दिखाई देने लगती हैं। उम्र के अनुपात में शारीरिक वजन में कमी आ जाती है। कुपोषण का दूसरा प्रकार क्वाशियोरकर है जिसकी शुरुआत अपर्याप्त व असंतुलित भोजन से होती है इसमें हाथ पैर व पूरे शरीर में सूजन,बालों का रंग फीका हो जाना तथा आसानी से उखड़ जाते हैं,विटामिन ए की कमी के लक्षण जैसे आंखों में धुंधलापन,तेज रोशनी में नहीं देख पाना इत्यादि प्रकट हो जाते हैं।
पोषण पुनर्वास केंद्रों में भर्ती हेतु बच्चों में कुपोषण की पहचान मुख्यतः आंगनबाड़ी केंद्रों में की जाती है इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्रों में भी इसके लिए व्यवस्था की गई है। क्योंकि कुपोषित बच्चों में संक्रमण की संभावना अधिक होती है इस कारण वे बार-बार बीमार पड़ते हैं और उनके ठीक होने में लंबा समय लगता है। पोषण पुनर्वास केंद्रों में भर्ती हेतु बच्चों के लिए कुछ मापदंड निर्धारित किए गए हैं। इसके अंतर्गत यदि 6 माह से कम उम्र का शिशु अत्यंत कमजोर हो,वह प्रभावी ढंग से दूध पी नहीं पा रहा हो या 45 सेंटीमीटर से ज्यादा लंबाई के बच्चे का वजन लंबाई अनुसार ना हो, गंभीर सूखापन दिखाई दे या फिर दोनों पैरों में सूजन हो जबकि 6 माह से लेकर 60 माह तक के बच्चों के लिए ऊंचाई के अनुसार वजन, ऊपरी बांह के मध्य भाग की गोलाई 11.5 सेंटीमीटर से कम हो अथवा दोनों पैरों में सूजन हो यह मापदंड निश्चित किये गए हैं। ऐसी स्थिति के बच्चों को तुरंत पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती की आवश्यकता होती है। हर पोषण पुनर्वास केंद्र में डाइट चार्ट के आधार पर बच्चों को आहार दिया जाता है। यह डाइट चार्ट सप्ताह के 7 दिनों के लिए अलग-अलग प्रकार से बनाया गया है ताकि भोजन में नवीनता और रुचि बनी रहे। पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती होने की दशा में बच्चे के साथ अटेंडर के रूप में आए उसके एक परिजन को भी भोजन तथा 15 दिन तक 150 रूपये प्रतिदिन के आधार पर सहायता राशि दी जाती है।
कलेक्टर दीपक सोनी ने महिला बाल विकास तथा स्वास्थ्य विभाग को गंभीर कुपोषित बच्चों की त्वरित पहचान कर उन्हें इन केंद्रों में सतत रूप से भेजने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने पालकों से भी अपील की है कि अपने कुपोषित बच्चों को शासन की इस सुविधा का लाभ लेकर कुपोषण मुक्त करें ताकि बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास हो सके।