Naglok of Chhattisgarh Tapkara: जानिए छत्तीसगढ़ का नागलोक किसे कहते है, जहां पाई जाती है 70 से भी अधिक प्रजाति के सांप

Naglok of Chhattisgarh Tapkara: छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले का तपकरा (Tapkara) क्षेत्र एक ऐसा नाम है, जो सुनते ही रहस्य, रोमांच और आस्था की परतें खोल देता है। यहाँ का जंगल, गुफाएँ और प्राकृतिक वातावरण इस जगह को अनोखा बनाते हैं। लेकिन तपकरा को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाला पहलू है उसका “नागलोक” कहलाना। नागलोक का यह नाम केवल मिथक या आस्था की उपज नहीं है, बल्कि वास्तविक घटनाओं और प्राकृतिक विविधता पर आधारित है। यही कारण है कि तपकरा नागलोक आज भी अध्ययन, जिज्ञासा और श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है।

Update: 2025-09-16 14:17 GMT

Naglok of Chhattisgarh Tapkara: छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले का तपकरा (Tapkara) क्षेत्र एक ऐसा नाम है, जो सुनते ही रहस्य, रोमांच और आस्था की परतें खोल देता है। यहाँ का जंगल, गुफाएँ और प्राकृतिक वातावरण इस जगह को अनोखा बनाते हैं। लेकिन तपकरा को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाला पहलू है उसका “नागलोक” कहलाना। नागलोक का यह नाम केवल मिथक या आस्था की उपज नहीं है, बल्कि वास्तविक घटनाओं और प्राकृतिक विविधता पर आधारित है। यही कारण है कि तपकरा नागलोक आज भी अध्ययन, जिज्ञासा और श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है।

सांपों के लिए अनुकूल स्थान

तपकरा जशपुर जिले की फरसाभार तहसील के अंतर्गत आता है। यह इलाका घने जंगलों से घिरा हुआ है और चारों ओर हरियाली की छटा बिखरी रहती है। पहाड़ी क्षेत्र, गहरी झाड़ियाँ और वर्षा ऋतु में नमी से भरा वातावरण यहाँ के पारिस्थितिकी तंत्र को अलग पहचान देता है। यही वातावरण सांपों के लिए अनुकूल माना जाता है।

स्थानीय ग्रामीणों के बीच तपकरा का नाम नागलोक इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ पर साँपों की संख्या और उनकी विविधता असाधारण रूप से अधिक है। यह सिर्फ एक मान्यता नहीं, बल्कि वास्तविकता है, जिसे समय-समय पर घटित घटनाओं ने और अधिक पुष्ट किया है।

पौराणिक कथाएँ और लोकविश्वास

तपकरा नागलोक के पीछे केवल सांपों की अधिकता ही कारण नहीं है। इस स्थान को लेकर प्राचीन लोककथाएँ और धार्मिक मान्यताएँ भी प्रचलित हैं। कहा जाता है कि इस क्षेत्र की गुफाएँ नागों का निवास स्थान रही हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार ये गुफाएँ पाताल लोक से जुड़ी मानी जाती हैं, जहाँ से नाग देवताओं का आगमन होता था।

आदिवासी समाज और स्थानीय ग्रामीण आज भी नागों को केवल जीव नहीं, बल्कि देवता मानते हैं। नागपंचमी जैसे अवसरों पर यहाँ विशेष पूजा होती है और लोग नागों को दूध अर्पित करके आशीर्वाद मांगते हैं। यह विश्वास पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता गया और नागलोक की परंपरा और भी मजबूत हो गई।

सांपों की जैवविविधता

तपकरा नागलोक जैवविविधता के लिहाज से बेहद समृद्ध है। यहाँ 70 से अधिक प्रकार के सांप पाए जाते हैं। इनमें कुछ अत्यधिक विषैले प्रजातियाँ भी शामिल हैं, जो अक्सर इंसानों के लिए जानलेवा साबित होती हैं। बारिश के मौसम में इनकी संख्या और गतिविधियाँ और बढ़ जाती हैं।

स्थानीय लोग बताते हैं कि खेतों, घरों और यहाँ तक कि विद्यालयों तक में सांप दिखाई देना कोई नई बात नहीं है। जंगल और गाँव की दूरी बेहद कम होने से साँप अक्सर मानव बस्तियों तक पहुँच जाते हैं। यही कारण है कि सांपदंश की घटनाएँ यहाँ आम हैं।

रिपोर्टों के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में सैकड़ों सांपदंश के मामले दर्ज किए गए, जिनमें से दर्जनों मौतें भी हुईं। पिछले 15 सालों के आँकड़ों को देखें तो लगभग 600 से अधिक लोगों की जान साँप के काटने से गई। यह संख्या इस क्षेत्र की भयावह स्थिति को दर्शाती है।

सांपदंश की घटनाओं के बावजूद स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी यहाँ की सबसे बड़ी समस्या है। कई मौतें इसलिए हुईं क्योंकि पीड़ित व्यक्ति समय पर अस्पताल नहीं पहुँच पाया या एंटी-वेनम दवा उपलब्ध नहीं थी। ग्रामीण इलाकों में झाड़-फूँक और लोक उपचारों पर भरोसा अभी भी प्रचलित है। यही कारण है कि सही समय पर उचित इलाज न मिलने से जान का खतरा और बढ़ जाता है। इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती और जागरूकता फैलाना सबसे बड़ी आवश्यकता है।

विकास और संरक्षण की योजनाएँ

नागलोक की पहचान ने प्रशासन और समाज का ध्यान आकर्षित किया है। यहाँ एक स्नेक रिसर्च सेंटर और स्नेक पार्क बनाने की योजना बनाई जा रही है। इसका उद्देश्य होगा सांपों का संरक्षण, जैवविविधता का अध्ययन, विष का संग्रह और लोगों में जागरूकता लाना।

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