Korba Lokasabh Chunav Result 2024:-2 मंत्री और 6 विधायक होने के बाद भी कोरबा में कैसे हार गईं बीजपी की सरोज पाण्डेय, 10 बिंदुओं में समझिए उनकी हार के कारणों को

Korba Lokasabh Chunav Result 2024:-छत्तीसगढ़ की कोरबा संसदीय सीट पर चरणदास महंत के सियासी जाल में सरोज पाण्डेय फंस गई। महंत ने ऐसी व्यूहरचना बनाई कि सरोज पाण्डेय आखिरी तक उसकी तोड़ नहीं ढूंढ पाई। ज्योत्सना महंत ने करीब 50 हजार वोटों से बीजेपी के सरोज पाण्डेय को पटखनी दी है।

Update: 2024-06-05 08:52 GMT

Korba Lokasabh Chunav Result 2024: रायपुर। छत्तीसगढ़ की कोरबा संसदीय सीट से कांग्रेस की सांसद ज्योत्सना महंत दूसरी बार निर्वाचित हुई हैं। उन्होने बीजेपी प्रत्याशी सरोज पाण्डेय को 50 हजार से अधिक मतों से पराजित कर दिया। जबकि, ज्योत्सना महंत का इलाके मे काफी विरोध था। उनकी निष्क्रियता और संसदीय इलाके की सुध न लेने पर कांग्रेस के लोग भी खुश नहीं थे। बावजूद इसके ज्योत्सना महंत के पति चरणदास महंत ने ऐसी चक्रव्यूह बनाई कि सरोज पाण्डेय उसे भेद नहीं पाईं। चरणदास महंत कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं। कई बार विधायक, सांसद, मध्यप्रदेश में मंत्री, केंद्रीय राज्य मंत्री के साथ छत्तीसगढ़ विधानसभा के स्पीकर रह चुके हैं। अभी वे नेता प्रतिपक्ष हैं। 10 बिंदुओं में जानिये चरणदास महंत के सियासी दांव में सरोज पाण्डेय कैसे उलझ गईं।

सरोज पाण्डेय की हार के 10 कारण...

1. बाहरी प्रत्याशी

दुर्ग की रहने वाली सरोज पाण्डेय को बीजेपी ने करीब 250 किलोमीटर दूर कोरबा से मैदान में उतारा था। मगर वोटिंग के आखिरी दिन तक वे बाहरी का ठप्पा नहीं हटा पाईं। यहां तक कि विरोधियों द्वारा सिर्फ सीट से बाहरी नहीं, प्रदेश की बाहरी याने यूपी वाली नेत्री स्थापित कर दिया गया। इसका उन्हें काफी नुकसान हुआ।

2. जोगी कांग्रेस पर भरोसा

पाली तानाखार जैसे इलाकों में, जहां से ज्योत्सना महंत को इस बार 48 हजार कल लीड मिली, वहां जोगी कांग्रेस पर भरोसा करना सरोज पाण्डेय को भारी पड़ा। बीजेपी के पुराने नेता और कार्यकर्ता इससे नाराज हो गए।

3. पार्टी में ही विरोध

बाहर से प्रत्याशी भेजे जाने से बीजेपी के लोकल नेताओं ने सरोज पाण्डेय को दिल से स्वीकार नहीं किया। मनेंद्रगढ़-चिरमिरी इलाके में रेणुका सिंह और भैयालाल राजवाड़े के लोगों ने सरोज पाण्डेय के लिए उस तरह से काम नहीं किया, बल्कि उधर डैमेज ज्यादा हुआ सरोज पाण्डेय का।

4. बाहरी लोगों के जरिये काम

जोगी कांग्रेस को बीजेपी में शामिल कर उन्हें अहम दायित्व सौंपा गया। उधर, चुनाव प्रचार में भी लोकल बॉडी पर विश्वास नहीं किया गया। मंडल अध्यक्षों को संसाधन तो दिए गए मगर उसकी निगरानी दुर्ग और भिलाई के लोग कर रहे थे। उपर से एक एजेंसी लगा दी गई थी कि कहां क्या दिया गया। याने त्रिस्तरीय व्यवस्था। मध्यप्रदेश, यूपी और महाराष्ट्र के लोग भी सरोज पाण्डेय के लिए काम करते दिखे। यहां तक कि कई जगहों पर पोलिंग और काउंटिं एजेंट भी दुर्ग से रहे। बीजेपी कार्यकर्ताओं में इसके मैसेज अच्छे नहीं गए।

5. कारोबारियों का विरोध

कोरबा संसदीय इलाके में बिजली, कोयला, स्टील समेत अनेक तरह के उद्योग हैं। कारोबारी शुरू से सरोज पाण्डेय का विरोध कर रहे थे क्योंकि, वे अगर जीत कई तो भिलाई तरफ के लोग कोरबा आकर काम करने लगेंगे। फिर सरोज पाण्डेय तेज तेवर वाली नेत्री हैं, उनसे मिलना मुश्किल होगा।

6. लोकल, छत्तीसगढ़ियावाद और ओबीसी

चरणदास महंत ने पूरा कैम्पेनिंग छत्तीसगढ़ियावाद और ओबीसी पर फोकस कर दिया था। मगर सरोज पाण्डेय ऐसा नहीं कर पाई। जबकि, महंत ने इन तीनों चीजों का जमकर इस्तेमाल किया। जांजगीर से वे करीब तीन दशक से राजनीति कर रहे हैं और इसी लोकसभा इलाके में कोरबा भी आता था, सो वे इस इलाके से उनका जीवंत संपर्क बना हुआ था।

7. ब्राम्हणों का भी साथ नहीं

सरोज पाण्डेय ब्राम्हण हैं मगर उन्हें ब्राम्हणों का भी साथ नहीं मिला। दरअसल, छत्तीसगढ़ में लोकल ब्राम्हण रीवा या यूपी तरफ के ब्राम्हणों को बाहरी मानते हुए दुरियां बनाकर रखते हैं। लिहाजा, ब्राम्हण वोट भी उन्हें वैसा नहीं मिला, जैसी की उम्मीद थीं।

8. गोंडवाना का नहीं साध पाई

कोरबा संसदीय सीट पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को मिले वोटों से जीत-हार तय होता है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से पहले तुलेश्वर सिंह मरकाम का नाम चला था मगर टिकिट मिल गई मनेंद्रगढ़ इलाके के श्याम सिंह को। पता चला है, चरणदास महंत ने गोंगपा से बात कर श्याम सिंह को प्रत्याशी बनवाया और श्याम सिंह उस तरह से काम नहीं किए। उससे कांग्रेस को फायदा हुआ। श्याम सिंह को करीब 45 हजार वोट मिले। जबकि, 55-60 हजार के आसपास गोंडवाना को वोट मिलते रहे हैं।

9. विधायकों का साथ नहीं

कोरबा लोकसभा इलाके में आठ विधानसभा हैं। इनमें से छह पर भाजपा के विधायक हैं। मगर सिर्फ कोरबा शहरी सीट को छोड़ दें तो सरोज पाण्डेय सभी सीटों पर पिछड़ गई। कोरबा में मोदी मैजिक और मंत्री लखनलाल देवांगन के चलते करीब 50 हजार की लीड मिल गई। बाकी मरवाही में बीजेपी का विधायक होने के बाद भी सरोज पाण्डेय वहां से 18 हजार मातों से पीछे हो गई।

10. हाई प्रोफाइल प्रचार

सरोज पाण्डेय का प्रचार हाई प्रोफाइल रहा। जबकि, चरणदास महंत और ज्योत्सना महंत ने छोटी-छोटी चौपाल नुमा सभाएं की। छोटी सभाएं में भाषण कम चर्चाएं और लोगों की सुनने का काम ज्यादा करते थे। इससे बड़ा फायदा यह हुआ कि लोगों की नाराजगी दूर हो गई। ज्योत्सना महंत की निष्क्रियता के आरोपों को चरणदास महंत सुनकर, कंधे पर हाथ रखकर कार्यकर्ताओं को संतुष्ट कर दिए। ज्योत्सना महंत के जितने भी पोस्टर लगे थे, उसमें चरणदास महंत की भी फोटो होती थी। ताकि, लोग चरणदास महंत वोट मांग रहे हैं।

ज्योत्सना महंत का जीवन परिचय:- सांसद ज्योत्सना महंत कोरबा लोकसभा सीट से लगातार दूसरी बार सांसद निर्वाचित हुईं हैं। वे कांग्रेस के कद्दावर नेता और वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष चरण दास महंत की पत्नी है। ज्योत्सना का जन्म 18 नवंबर 1953 को हुआ था। उनके पीता का नाम रामरूप सिंह और माता का नाम लीलावती सिंह है। हुउन्होंने 1971 में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से एचएससी किया है। फिर 1974 में भोपाल विश्वविद्यालय से बीएससी किया है। 1976 में भोपाल विश्वविद्यालय से एमएससी प्राणी शास्त्र से स्नातकोत्तर किया । 23 नवंबर 1980 को ज्योत्सना महंत का विवाह चरणदास महंत के साथ हुआ। ज्योत्सना महंत की तीन पुत्रियां और एक पुत्र है। आइए जानते है उनके बारे... 

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