High Court News: चार जवानों को गोली मारने वाले कांस्टेबल की अपील हाई कोर्ट ने की खारिज, कोर्ट ने कहा- तनाव का मतलब कत्ल नहीं

High Court News: बिलासपुर हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि नक्सल क्षेत्र में CRPF की तनावपूर्ण स्थितियों में ड्यूटी करने का मतलब यह नहीं है कि सहकर्मियों को गोलियों से भून दें। इस तरह की हत्या किसी भी नजरिए से उचित नहीं है और ना ही माफी योग्य। एक अफसर सहित चार जवानों के हत्या के आरोपी कांस्टेबल की याचिका को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। ट्रायल कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि बिना छुट्टी के लंबे समय तक काम करना और कठिन वातावरण किसी भी व्यक्ति को अपने सहकर्मियों की हत्या करके अपना गुस्सा निकालने का अधिकार नहीं देता है।

Update: 2025-06-26 11:26 GMT

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High Court News: बिलासपुर। छुट्टी ना मिलने से नाराज व परेशान सीआरपीएफ के एक जवान ने एक अफसर सहित चार जवानों को कैंप में गोलियों से भून दिया था। हत्या के आरोप में ट्रायल कोर्ट ने कांस्टेबल को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। ट्रायल कोर्ट के फैसले काे चुनौती देते हुए जवान ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपील पेश की थी। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कांस्टेबल की याचिका को खारिज कर दिया है। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में इस तरह की घटना को लेकर तल्ख टिप्पणी भी की है।

हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल CRPF के एक कांस्टेबल की अपील को खारिज कर दिया है। कैंप से छ्ट्टी ना मिलने के कारण जवान ने अपने अधिकारी व सहकर्मियों पर गोली चलाकर हत्या कर दी थी। इस घटना में एक अधिकारी सहित तीन जवानों की मौत हो गई थी। इस घटना में एक जवान घायल हो गया था। याचिका की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र में बिना अवकाश के लंबे समय तक काम करने का मतलब साथियों की हत्या करना नहीं है और ना ही इस तरह की घटना को स्वीकार किया जा सकता है। सहकर्मियों की हत्या करना अमानवीय घटना है। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि सशस्त्र बल कर्मियों के लिए अनुशासन का स्तर एक सामान्य नागरिक की तुलना में बहुत अधिक है। उन्हें सभी प्रकार के दबावों का सामना करने के लिए पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित किया जाता है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि बिना छुट्टी के लंबे समय तक काम करना और कठिन वातावरण किसी भी व्यक्ति को अपने सहकर्मियों की हत्या करके अपना गुस्सा निकालने का अधिकार नहीं देता है।

डिवीजन बेंच ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता सशस्त्र बल का सदस्य होने के नाते, क्षेत्र के लोगों को नक्सलियों से बचाने के लिए जिम्मेदार था। लेकिन अपने कर्तव्य का पालन करने के बजाय उसने साथियों पर ही अंधाधुंध गोली बारी कर जान ले ली। यह जघन्य और अमानवीय घटना है। याचिकाकर्ता इसके परिणामों से अच्छी तरह वाकिफ था। कोर्ट ने यह भी कहा है कि आमतौर पर, सशस्त्र बल के जवान को केवल एक राइफल जारी की जाती है, लेकिन याचिकाकर्ता एक समय में दो राइफलें ले जा रहा था और उसने दोनों राइफलों का इस्तेमाल किया। यह साफ है कि याचिकाकर्ता इस घटना को अंजाम देने के लिए पहले से ही योजना बना ली थी और योजना को अंजाम देने के लिए दो राइफल साथ लेकर अफसरों के कैंप में गया। डिवीजन बेंच भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 415(2) के तहत दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिकाकर्ता ने दंतेवाड़ा ट्रायल कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, विशेष न्यायालय (नक्सल) द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी। ट्रायल कोर्ट ने कांस्टेबल व याचिकाकर्ता संत कुमार को आईपीसी की धारा 302, 307 और शस्त्र अधिनियम की धारा 25(1बी)(ए) और 27(1) के तहत दोषी ठहराया था।

0 क्या है मामला

याचिकाकर्ता कांस्टेबल संतराम और सीआरपीएफ की 168 वीं बटालियन में तैनात सब-इंस्पेक्टर विक्की शर्मा के बीच ड्यूटी के आवंटन को लेकर विवाद चल रहा था। जिसके कारण याचिकाकर्ता को छुट्टी नहीं मिल पा रही थी। घटना के दिन याचिकाकर्ता ने अपनी सर्विस राइफल लेकर अधिकारियों के विश्राम कक्ष में गया, जहां उसने अपनी सर्विस राइफल एके-47 से सब-इंस्पेक्टर विक्की शर्मा और तीन अन्य सीआरपीएफ कर्मियों पर अंधाधुंध फायरिंग की। कैंप गार्डन के अंदर काम कर रहे सहायक उपनिरीक्षक गजानंद शर्मा भी घायल हो गए, लेकिन वे भागने में सफल रहे। घायल चश्मदीद गवाह की गवाही सहित रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य पर विचार करने के बाद, ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता को दोषी ठहराया और सजा सुनाई।

0 डिवीजन बेंच ने पूछा, कैंप में नक्सल हमला नहीं हुआ था फिर चार जवान कैसे मारे गए

मामले की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि चार जवान गोली लगने से कैसे मर गए और एक कर्मी घायल हो गया, जबकि कैंप पर कोई नक्सली हमला नहीं हुआ था।

यदि कोई नक्सली हमला हुआ होता तो इसकी सूचना निश्चित रूप से पुलिस को दी जाती। कोर्ट ने कहा कि गवाहों के साक्ष्य से ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता मृतक जवानों व अफसर से नाराज था। अफसर व जवानों ने शिकायत की थी कि याचिकाकर्ता अवांछित कारणों से प्रतिदिन पोस्ट, शिविर छोड़कर बाहर चला जाता था। इसके चलते सीनियर अफसरों से डांट फटकार सहनी पड़ती थी।

0 हत्या का एक कारण यह भी बना

मृतक सब इंस्पेक्टर विक्की शर्मा को हेडक्वार्टर से मिले आदेश के तहत डॉग हैंडलर कोर्स में भाग लेने के लिए चार जवानों को नामित करने की जिम्मेदारी दी गई थी। सब इंस्पेक्टर ने याचिकाकर्ता जवान का नाम सुझाया था। इसके चलते उसकी छुट्टी रद्द कर दी गई थी, जिसके कारण जवान मृतक सब इंस्पेक्टर के प्रति रंजिश रखता था। रंजिश के चलते सब इंस्पेक्टर व चार जवानों की गोली मारकर हत्या कर दी।

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