High Court News: हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, बच्चा गोद लेने वाली महिला कर्मचारी भी मातृत्व अवकाश की हकदार

बिलासपुर हाई कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बच्चा गोद लेने वाली महिला कर्मचारी मातृत्व अवकाश Child Care की हकदार है। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस बीडी गुरु ने स्पष्ट किया है कि बच्चा गोद लेने वाली माताओं का चाइल्ड एडाप्शन लीव अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है। इससे वंचित नहीं किया जा सकता।

Update: 2025-06-14 10:19 GMT

Bilaspur High Court

बिलासपुर। बिलासपुर हाई कोर्ट के जस्टिस बीडी गुरु ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बच्चों को गोद लेने वाली महिला कर्मचारी मातृत्व अवकाश की हकदार है। बच्चा गोद लेने वाली माताओं का चाइल्ड एडाप्शन लीव अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है। माताओं को उनके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। यह प्रत्येक मां का मौलिक अधिकार है कि वह अपने बच्चे का अच्छी तरह देखभाल कर सके,उसे मातृत्व प्रदान करे। जस्टिस गुरु ने अपने फैसले में लिखा है कि जैविक और गोद वाली या सरोगेट मां के बीच मातृत्व लाभ को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि सरोगेसी या गोद लेने की प्रक्रिया से जन्मे बच्चों को देखभाल, जीवन, प्रेम, स्नेह, सुरक्षा के साथ ही उत्तरोत्तर विकास का अधिकार है। इसे अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। ऐसे मां मातृत्व अवकाश की हकदार है।

भारतीय प्रबंधन संस्थान रायपुर (IIM) में सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर कार्यरत महिला ने हाई कोर्ट में याचिका दायर रकी थी। दायर याचिका में बताया कि उसने 20 नवंबर, 2023 को अपने पति के साथ नवजात बच्ची को गोद लिया है। बेटी को गोद लेने के बाद उसी दिन से 180 दिन की चाइल्ड एडॉप्शन लीव के लिए आवेदन किया। एचआर पालिसी में चाइल्ड एडाप्शन लीव का प्रावधान ना होने का कारण बताते हुए आईआईएम ने अवकाश देने से इंकार कर दिया। संस्थान ने 60 दिन का अवकाश मंजूर किया। याचिकाकर्ता ने कहा कि 1972 के केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश) नियम का हवाला देते हुए उसने संस्थान से 180 दिन की छुट्टी की मांग की।

राज्य महिला आयोग में की शिकायत-

संस्थान ने जब उनके आग्रह को ठुकरा दिया तब उसने राज्य महिला आयोग को पत्र लिखकर जानकारी दी। आयोग ने 180 दिन की गोद लेने की छुट्टी और 60 दिन की कम्यूटेड लीव की अनुशंसा की। राज्य महिला आयोग के निर्देश को चुनौती देते हुए आईआईएम ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। हाई कोर्ट ने आईआईएम की याचिका को स्वीकार करने के साथ ही महिला कर्मचारी को कानूनी उपाय अपनाने की छूट दी। इसके बाद महिला कर्मचारी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि यदि सेवा शर्तों से जुड़ा कोई विषय मैनुअल में शामिल नहीं है तो केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर तय की जाने वाली निर्धारित नियमों का पालन किया जाना चाहिए। 1972 के नियमों के अनुसार (नियम 43-B(1)), महिला सरकारी कर्मचारी जो दो से कम जीवित बच्चों की मां है, को यदि वह एक वर्ष से कम आयु के बच्चे को गोद लेती है, तो 180 दिन की चाइल्ड एडॉप्शन लीव दी जा सकती है।

समान मातृत्व का अधिकार मिलना चाहिए, मातृत्व लाभ से नहीं किया जा सकता वंचित-

संविधान के अनुच्छेद 38, 39, 42 और 43 का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि गोद लेने वाली माताएं भी जैविक माताओं की तरह गहरा स्नेह रखती हैं। उन्हें भी समान मातृत्व अधिकार मिलना चाहिए। महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकार है, जिसे अनुच्छेद 14, 15, 21 और 19(1)(g) द्वारा संरक्षित किया गया। यदि चाइल्ड केयर लीव का प्रावधान नहीं होगा, तो महिलाएं कार्यबल छोड़ने के लिए मजबूर हो सकती हैं। यह महिला कर्मचारियों का स्वाभाविक और मौलिक अधिकार है, जिसे तकनीकी आधारों पर नकारा नहीं जा सकता। मातृत्व के प्रति जो देखभाल भारतीय संस्कृति में निहित है, वही कार्यस्थल पर भी लागू होनी चाहिए। जस्टिस गुरु ने अपने फैसले में लिखा है कि सिर्फ इसलिए कि कोई महिला गोद लेने या सरोगेसी के माध्यम से मां बनी है, उसे मातृत्व लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता।

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