Welcome Distillery: छत्तीसगढ़ में वेलकम डिस्टलरी का अफसर कर रहे वेलकम, 27 साल से नोटिस का खेल, 89 करोड़ टैक्स के लिए अब तक 327 नोटिस...
Welcome Distillery: छत्तीसगढ़ के वेलकम डिस्टलरी पर भूमिगत जल दोहन का 89 करोड़ टैक्स बकाया। अफसरों में नहीं हो रही वसूली की हिम्मत। यही वजह है कि पिछले 27 सालों से नोटिस-नोटिस का खेल चल रहा है।
Welcome Distillery: बिलासपुर। अफसरशाही जो करे कम है। इसका उदाहरण है यहां की वेलकम डिस्टलरी। इस डिस्टलरी में 27 साल से बिना अनुबंध और अनुमति के रोज ही 600 घटमीटर भूजल का दोहन किया जा रहा है। इधर अफसर केवल नोटिस- नोटिस खेल रहे हैं। अब तक डिस्टलरी को 327 नोटिस दिए जा चुके हैं, मगर रकम वसूली का साहस कोई अफसर नहीं दिखा पा रहा है।
कोटा विकासखंड की रतनपुर तहसील के डेरकबांधा में वेलकम डिस्टलरी है। प्रशासन का हाल यह है कि पानी के दोहन पर रोक तक का आदेश जारी नहीं किया जा सका है। प्रशासन को जगाने के लिए कोटा विधायक अटल श्रीवास्तव ने विधानसभा में यह मामला उठाया, तब जाकर अफसर हरकत में आए हैं, मगर अब भी कागजी औपचारिकता पूरी की जा रही है। कोई उच्च अधिकारी से मार्गदर्शन मांग रहा है तो कोई राजस्व वसूली की प्रक्रिया शुरू करने की बात कर रहा है।
कायदे से औद्योगिक संस्थानों को भूमिगत जल के उपयोग के लिए भी अनुमति लेनी पड़ती है। इधर वेलकम डिस्टलरी ने इसकी जरुरत ही नहीं समझी और न ही अफसरों को कार्रवाई करना आवश्यक लगा। संरक्षण चाहे राजनीतिक हो या अफसरों का, सरकार का 89 करोड़ रुपये का नुकसान अब तक हो चुका है। विधानसभा में सवाल लगने के बाद अफसरों ने अपना दामन पाक साफ रखने के लिए 20 जून को फिर चिट्ठी लिखी है। इस बार जल संसाधन विभाग के अफसरों ने तहसीलदार के जरिए वसूली की प्रक्रिया शुरू करने बिलासपुर कलेक्टर को फाइल भेज दी है।
मगर सवाल यह उठ रहा है कि तीन दशक तक इस डिस्टलरी को भूमिगत पानी का अवैधानिक उपयोग करने की छूट किसने दी? इसकी विभागीय जांच हो तो कई अफसरों की संदिग्ध भूमिका का भंडाफोड़ हो सकता है। अफसर अपनी भूमिका से नकार रहे और सफाई दे रहे हैं कि जितने जल का उपयोग किया गया है, उससे तीन गुना की अधिक की वसूली का नोटिस दिया गया है। सही है, मगर अब तक एक रुपया भी वसूली नहीं किया जाना बताता है कि प्रशासन या विभागीय अधिकारी इस पर कितना गंभीर हैं।
यह डिस्टलरी कार्यपालन अभियंता जल संसाधन कार्यालय कोटा के अधीन आता है। विभागीय अफसरों का तर्क है कि वे सीधे वसूली नहीं कर सकते, इस कारण से तहसीलदार के जरिए प्रक्रिया की जा रही है। इस बात का जवाब उनके पास भी नहीं है कि तहसीलदार के जरिए प्रक्रिया पूरी करने में भी 27 साल क्यों निकल गए? प्रक्रिया के नाम पर अफसर चार बार तो उच्च अधिकारियों से मार्गदर्शन मांग चुके हैं। ऐसे में मार्गदर्शन देने में विलंब करने वाले अफसरों की भूमिका भी संदिग्ध हो जाती है। इन उच्च अधिकारियों में जिला कार्यालय के अधिकारी भी शामिल हैं।