छत्तीसगढ़ के युवा अरुण को मिला दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में स्पीच देने का मौका, मिला बड़ा सम्मान

छत्तीसगढ के युवा अरुण पटनायक ने अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में लेक्चर देकर राज्य का नाम रोशन किया है। यह पहला मौका हे जब छत्तीसगढ़ के किसी युवा को दुनिया के सबसे बड़े एजुकेशनल प्लेटफार्म पर स्पीच देने बुलाया गया है।

Update: 2024-12-11 12:49 GMT
छत्तीसगढ़ के युवा अरुण को मिला दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में स्पीच देने का मौका, मिला बड़ा सम्मान
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बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर निवासी और रायपुर के प्रायवेट यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर पब्लिक रिलेशंस डॉ0 शिवम अरुण पटनायक को बड़ा जंप मिला है। उन्हें ग्लोबल रिसर्च कांफ्रेंस याने जीआरसी-24 के आयोजन में गेस्ट बनाया गया है। शिक्षा के साथ सेवा कार्य में समर्पित डॉ पटनायक 6 से 9 दिसंबर तक प्रतिष्ठित हार्बर्ड विश्वविद्यालय में आयोजित ग्लोबल कांफ्रेंस में शामिल हुए। इस अवसार पर उनका स्पीच हुआ, जिसमें दुनिया के दूरदर्शी, शोधकर्ताओं और उद्योग के दिग्गज लोग मौजूद थे।

जाहिर है, जीआरसी-24 में इस वर्ष का विषय था...एक हरे और समावेशी भविष्य के लिए जनरेटिव एआई सभी के लिए स्वचालन, शिक्षा और कौशल, एक स्थायी, न्यायसंगत भविष्य को आकार देने में प्रौद्योगिकी की परिवर्तनकारी शक्ति को रेखांकित करता है।

ग्लोबल रिसर्च कॉन्फ्रेंस (जीआरसी) को इस वर्ष के आयोजन के मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. शिवम अरुण कुमार पटनायक को बुलाया गया था। डॉ शिवम अरुण कुमार पटनायक का जन्म विशाखापत्तनम, आंध्र प्रदेश में वर्ष 1974 में हुआ था। उनके पिता, स्वर्गीय एस जे राब पटनायक, रेलवे में तैनात थे और 1974 में दक्षिण पूर्व रेलवे बिलासपुर में काम कर रहे थे। उन्होंने कम उम्र में ही अपने पिता को खो दिया था, जब डॉ अरुण पटनायक केवल 3 महीने के थे। पिता की मौत के बाद शैक्षणिक योग्यता कम होने की वजह से उनकी मां को रेलवे स्कूल में चपरासी के रूप में नौकरी दी गई थी।

डॉ अरुण ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अपने स्पीच में बताया कि उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा उसी स्कूल में की, जहां उन्होंने अपनी मां को दैनिक आधार पर मेहनत करते देखा।

अरुण ने उसी समय ठान लिया कि उसी स्कूल में वापस जाने और बाद के वर्षों में मुख्य अतिथि के रूप में सम्मानित होने और बदले में अपनी मां की कड़ी मेहनत और परिश्रम को पुरस्कृत करने का जुनून पैदा किया। जीवन के शुरुआती वर्षों में रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ा और छोटी-मोटी नौकरियाँ करके रोजाना की रोटी कमाने में मदद करनी पड़ी, जिससे उनका चरित्र और मूल्य मजबूत हुए और उनकी माँ और भाई-बहन के साथ उनका लगाव भी बढ़ा। सत्य साई बाबा के एक उत्साही भक्त होने के नाते, उनके भगवान ने उन्हें हाई स्कूल में पढ़ने के लिए बुलाया। उन्होंने, पुट्टपर्थी घाटी में दो साल बिताए, जहाँ उन्होंने सीखा कि मानवता की सेवा ईश्वर की सेवा के समान है।

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