CGMSC Medical College Scam: 1286 करोड़ के चार मेडिकल कॉलेजों के टेंडर में बड़ा झोल, CGMSC ने बिना DPR के टेंडर किया...
CGMSC Medical College Scam: सीजीएमएससी ने पहले चार मेडिकल कॉलेजों के टेंडर में 500 करोड़ का भ्रष्टाचार करने का प्रयास किया। एनपीजी न्यूज के लगातार खबर के बाद सरकार के खजाने का 279 करोड़ रुपए बचा मगर सीजीएमएससी ने उसके साथ कारनामा यह किया कि आधे-अधूरे डीपीआर के टेंडर कर डाला। 8 दिसंबर को कॉलेजों के नोडल अधिकारियों और ठेकेदारों की मीटिंग में इसका खुलासा हुआ।
CGMSC Medical College Scam: रायपुर। घपलों, घोटालों के नाम से कु-ख्यात हो चुका सीजीएमएससी ने चार मेडिकल कॉलेजों के टेंडर में भी बड़ा कांड कर दिया। अफसरों की अक्षमता कहें या ठेकेदार पर अतिशय दरियादिली कि टेंडर से पहले डीपीआर नहीं बनवाया। 8 दिसंबर को जब कमेटी की बैठक हुई तो बात आई कि कहां क्या बनेगा, फेज वन में क्या होगा...इस बारे में कोई ठीक ढंग से बताने तैयार नहीं था।
पूरा गोलमोल, लड़के-लड़कियों के मेस एक साथ
मीटिंग में जब डीपीआर के बारे में बात की गई तो गोलमोल जवाब मिला। सीजीएमएससी के अधिकारिक सूत्रों का कहना है कि मीटिंग में जब ठेकेदार से पूछा कि मेडिकल कॉलेज के साथ हॉस्पिटल का प्रावधान किस फेज में तो कोई पता चला, हॉस्पिटल का आगे देखा जाएगा। टेंडर में कर्मचारियों और फैकल्टी के आवास का प्रावधान है। मगर जब उसकी संख्या पूछा गया और पहले कौन बनेगा फैकल्टी या कर्मचारियों के मकान तो अफसर और ठेकेदार कुछ नहीं बता पाए। याने उन्हें कितने घर बनने हैं ये भी पता नहीं। उपर से पैसा बचाने टेंडर में लड़के और लड़कियों के हॉस्टल के मेस कंबाइंड बनाया जाएगा। इस पर भी सवाल हुए। वैसे भी स्नातक तक बड़़ी यूनिवर्सिटीज में भी ब्वायज और गर्ल्स हास्टल के मेस एक साथ नहीं होते।
पहले टेंडर और फिर बिल्डिंग प्लान
सीजीएमएससी में सब उल्टा चल रहा है। निर्माण कार्यों के टेंडर में पहले प्लान बनता है फिर टेंडर होता है मगर सीजीएमएससी में पहले निविदा और रेट तय किया जाता है फिर बिल्डिंग प्लान तैयार किया जाता है। याने पूरा खेल निर्माण एजेंसियों को फायदा पहुंचाने वाला।
NPG.NEWS ने ऐसे बचाया खजाने का 279 करोड़
2023 में भारत सरकार ने छत्तीसगढ़ के चार मेडिकल कालेजों के लिए 306 करोड़ के हिसाब से 1224 करोड़ स्वीकृत किया था। इससे कवर्धा, जांजगीर, गीदम और मनेंद्रगढ़ में चार मेडिकल कॉलेज बनाए जाने थे। घपले-घोटालों के लिए कुख्यात सीजीएमएससी को इसमें बड़ा अवसर नजर आया। सो, शुरू से ही खेल की प्लानिंग बना ली गई। चतुराई करते हुए चारों मेडिकल कॉलेजों को क्लब कर टेंडर किया गया, ताकि छोटे-मोटे ठेकेदार इस टेंडर में हिस्सा ही न ले पाए। और वैसा हुआ भी। हजार करोड़ से अधिक का टेंडर होने की वजह से सिर्फ दो ही कंपनियां इसमें हिस्सा ले पाई।
कोई भी आदमी CGMSC के खेल को समझ सकता था कि जांजगीर और कवर्धा के रेट में मनेंद्रगढ़ और गीदम का कालेज नहीं बन सकता। बावजूद सीजीएमएससी ने चारों कालेजों का क्लब कर एक टेंडर कर दिया था ताकि कंपीटिशन कम होने पर पसंदीदा कंट्रक्शन कंपनी को काम सौंपा जा सकें। टेंडर कमेटी में मेडिकल कॉलेजों के डॉक्टरों और सीएमओ को मेंबर बनाया गया, जिन्हें निर्माण कार्यो का कोई अनुभव नहीं होता।
सीजीएमएससी का खेला-1
चार मेडिकल कॉलेजों के दोनों कंपनियों ने टेंडर रेट से 53 और 58 परसेंट अधिक दर भरा। 53 परसेंट चूकि लोवेस्ट था, इसलिए उसे काम मिलता। 53 फीसदी के हिसाब से टेंडर 1565 करोड़ पर पहुंच गया। और, कमाल यह कि CGMSC के अफसर इस टेंडर को किसी भी सूरत में पारित कराने पर अड़े रहे। इससे पहले एनपीजी न्यूज ने इस टेंडर घोटाले को एक्सपोज कर दिया। छच्ळ.छम्ॅै ने लगातार करीब दर्जन भर खबरें चलाई। इसका नतीजा यह हुआ कि टेंडर कमेटी के सदस्यों ने इसे पास करने से हाथ खड़ा कर दिया। लिहाजा, कोरम के अभाव में टेंडर कमेटी की बैठक दो बार स्थगित करनी पड़ी। बैठक के लिए डॉक्टरों को सीजीएमएससी से फोन पर तगादे किए गए। फिर भी बात नहीं बनी तो सीजीएमएससी मैनेजमेंट ने बिना कोरम पूरा किए मीटिंग कर लिया। और, टेंडर कमेटी की बैठक में अनुपस्थित डॉक्टरों के घर मिनिट्स भेज उन पर हस्ताक्षर करने का प्रेशर बनाया गया। मगर उन्होंने दस्तखत करने से साफ इंकार कर दिया। इसके बाद सीजीएमएससी की एमडी ने निविदा को निरस्त कर दिया। स्वास्थ्य विभाग के सचिव अमित कटारिया को भेजे पत्र में उन्होंने बताया कि टेंडर 53 परसेंट अधिक दर पर 1565 करोड़ आया था। मगर कमेटी के सदस्यों ने उसे स्वीकृति नहीं दी, इसलिए टेंडर निरस्त कर दिया गया है।
सीजीएमएससी का खेला-2
सीजीएमएससी के अफसर जब चारों कॉलेजों के काम को 1565 करोड़ में कराने में कामयाब नहीं हुए तो फिर दूसरा खेल किया। ब्ळडैब् के एमडी ने 7 फरवरी 2025 को सचिव अमित कटारिया को टेंडर निरस्त करने की सूचना भेजी। और कॉलेज निर्माण में लागत की अपनी सुविधा के अनुसार गणना करते हुए 1224 करोड़ के पूर्व प्रशासकीय स्वीकृति के स्थान पर 1425 करोड़ रिवाइज्ड प्रशासकीय स्वीकृति की आवश्यकता बताई। सीजीएमएससी ने 1224 करोड़ से बढ़ाकर 1425 करोड़ टेंडर की राशि करने की आवश्यकता इसलिए बताई, ताकि प्रशासकीय स्वीकृति मिल जाने पर कोई उंगली नहीं उठा पाता। अभी चूकि 1224 करोड़ की प्रशासकीय स्वीकृति मिली थी, इसलिए 1565 करोड़ का टेंडर करने का खेल संभव नहीं हो पाया।
NPG.NEWS ने 3 जनवरी 2025 से लेकर 7 अगस्त 2025 तक करीब दर्जन भर खबरें सीजीएमएससी के इस टेंडर घोटाले का पर्दाफाश करते हुए बनाई। सात अगस्त 2025 को CGMSC की एमडी ने टेंडर निरस्तीकरण की सूचना स्वास्थ्य सचिव को भेजी। अगर NPG.NEWS ने मुहिम नहीं चलाई होती तो सीजीएमएससी ने 1565 करोड़ में यह टेंडर फायनल करने की प्लानिंग कर ली थी। उपर में इसका उल्लेख भी किया गया है कि किस तरह टेंडर कमेटी पर प्रेशर बनाया गया। बहरहाल, 1224 करोड़ की प्रशासकीय स्वीकृति वाला टेंडर अगर 1565 करोड़ में डील होता तो सरकार के खजाने को 279 करोड़ का चूना लगता। एनपीजी न्यूज लगातार मुहिम से सरकार का यह 279 करोड़ बच गया।
चारों टेंडर अलग-अलग किया गया
चारों मेडिकल कॉलेजों के टेंडर को क्लब करने का खेल को भी एनपीजी न्यूज ने बेनकाब किया। हेल्थ सिकरेट्री अमित कटारिया ने इसे संज्ञान में लिया। अमित खुद भी चार जिलों के कलेक्टर रहे हैं, उन्हें मालूम होगा कि इस तरह टेंडर को क्लब नहीं किया जाता। उन्होंने फिलहाल इस पर रोक लगाते हुए कमिश्नर मेडिकल एजुकेशन किरण कौशल से ओपिनियन मांगा। किरण कौशल की रिपोर्ट के बाद अमित कटारिया, जो सीजीएमएससी बोर्ड के पदेन मेंबर होते हैं, ने क्लब कर टेंडर बुलाने पर आपत्ति जताई। इसके बाद अफसरों ने अलग-अलग टेंडर बुलाई।
एक टेंडर प्रैक्टिकल नहीं
जानकारों का कहना है कि चारों साइट अगर आसपास होता तो बड़ी कंपनियां उसके लिए सेटअप लगाती लेकिन चार अलग-अलग साइट पर 300 करोड़ के काम के लिए बड़ी कंपनियां कतई अपना सेटअप नहीं लगाएगी। ऐसे में, यही होगा कि टेंडर लेने के बाद अन्य ठेकेदारों को सबलेट कर देती। अलग-अलग टेंडर करने को नतीजा यह हुआ कि कंपीटिशन बढ़ गया और टेंडर 1565 करोड़ से 1286 करोड़ पर आ गया, जो कि 279 करोड़ कम है।
सीएम हाउस, मंत्रियों के बंगले
नया रायपुर में सीएम हाउस और मंत्रियों के बंगले बनाने के लिए पीडब्लूडी ने इसी तरह सभी कामों को क्लब कर दिया था। बताते हैं कि छोटे टेंडर में कंपीटिशन बढ़ जाता है, सीएम हाउस, मंत्रियों के सभी बंगलों आदि को मिलाकर 600 करोड़ का टेंडर कर दिया गया।
छत्तीसगढ़ में क्या सेंट्रल इंडिया में 600 करोड़ का भवन बनाने वाले ठेकेदारों की संख्या काफी कम है। लिहाजा, दिल्ली की कंपनी को काम मिला और रायगढ़ के ठेकेदार को सबलेट हो गया। हो सकता था कि अलग-अलग टेंडर करने पर रेट कम जाता और उससे सरकार का पैसा बचता।