CG के इस शहर में 128 वर्षों से चली आ रही यह अनूठी परंपरा, मिट्टी से बनाते हैं रावण का पुतला

छत्तीसगढ़ के मुंगेली शहर में विजयादशमी पर्व मनाने की अनूठी और निराली परंपरा रही है। मौजूदा दौर में इसे आप इकोफ्रेंडली भी कह सकते हैं। उस दौर में जब इसकी परंपरा की शुरुआत गोवर्धन परिवार की, तब शायद उनके मन में यह बात रही होगी कि प्रदूषण से बचने के लिए मिट्टी से ही रावण का पुतला तैयार कराएं और विजयादशमी उत्सव अनोखे अंदाज में मनाए। खास बात ये कि चौथी या पांचवी पीढ़ी के बाद भी परंपरा अनवरत चली आ रही है। 1896 से शुरू हुई परंपरा निरंतर चल ही रही है।

Update: 2024-10-11 10:16 GMT

बिलासपुर। मुंगेली में विजयादशमी पर्व मनाने की परंपरा निराली और अनूठी तो है, साथ ही एक परंपरा और भी आजतलक जारी है जिस परिवार ने मिट्टी से रावण का पुतला बनाने की शुरुआत की थी वही परिवार आज भी अपने हाथों से मिट्टी के जरिए रावण के पुतले को गढ़ने का काम करता है। परिवार के वे सदस्य नहीं रहे,पीढ़ियां बदल गईं पर परंपरा आज भी उसी स्वरुप में जिंदा है। मुंगेली के कुम्हार पारा के राजाराम कुंभकार का परिवार पीढ़ियों से मिट्टी का रावण बनाते आ रहा है।

समय के साथ दो चीजों में बदलाव आया। राजाराम आौर गोवर्धन परिवार की युवा पीढ़ी के हाथों में परंपरा निर्वहन की जिम्मेदारी है। बदलते समय में विजयादशमी महोत्सव स्थल भी अब बदल गया है। अब बीआर साव गर्वनमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल में महोत्सव की भव्यता देखते ही बनती है। मिट्टी के रावण के पुतले का वध भी अनोखे अंदाज में होता है। जिसने भी मिट्टी के रावण के पुतले का वध करने का निर्णय लिया और इसे कार्यरूप में परिणीत किया उनके मन में सामाजिक ताना-बाना को भी मजबूती देने की रही होगी। तभी तो विजयादशमी महोत्सव के बहाने उन्हाेंने सामाजिक ताना-बाना को बेहद मजबूती से बांधने की कोशिश की। दशहरा मैदान में मिट्टी के खड़े रावण के पुतले का दहन का अंदाजा भी अनोखा है। लाठियों से पीट-पीट कर पुतले का दहन करते हैं। रावण के पुतले का वध करने का अधिकारी यादवों का बनाया गया है। यादव परिवार के सदस्यों के द्वारा लाठियों से पीट-पीटकर मिट्टी के पुतले का वध करते हैं।

0 पहले पूजा अर्चना फिर दहन

मिट्टी के पुतले का दहन करने से पहले गोवर्धन परिवार के सदस्य विधिवत पूजा अर्चना करते हैं। पूजा अर्चना के बाद यादव परिवार के सदस्यों को पुतले के वध के लिए आमंत्रित किया जाता है।

0 एक मान्यता ऐसी भी,जिसे भी आज भी निभा रहे

मिट्टी से बने रावण के पुतले में सिंदूर भी भरा जाता है। जब लाठियों से पीट-पीटकर वध करने के बाद जब पुतला पूरी तरह टूट कर बिखर जाता है तब पुतले की मिट्टी लोग अपने घर ले जाते हैं। मिट्टी को तिजोरी या खलिहान में सुरक्षित जगह पर रख देते हैं। परंपरा यही है कि इसे शुभता की निशानी मानते हैं। रावण कुबेर का भाई और प्रकांड विद्धान भी थे, प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कुबेर का आशीष मिलता है और समृद्धि आती है।

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