Bilaspur High Court News: पत्नी को मोबाइल और बैंक खातों का पासवर्ड बताने के लिए पति नहीं कर सकता मजबूर... हाईकोर्ट का अहम फैसला

Bilaspur High Court News: जस्टिस राकेश मोहन पांडेय ने अपने फैसले में लिखा है कि कोई पति अपनी पत्नी को उसकी निजी जानकारी, संचार, व्यक्तिगत वस्तुएं और यहां तक कि मोबाइल और बैंक खातों के पासवर्ड साझा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। यह पत्नी के गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन होगा।

Update: 2025-07-19 12:01 GMT

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Bilaspur High Court News: बिलासपुर। निजता के अधिकार को लेकर बिलासपुर हाई कोर्ट के सिंगल बेंच ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। जस्टिस राकेश मोहन पांडेय के सिंगल बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि पति अपनी पत्नी की गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन नहीं कर सकता। कोई पति अपनी पत्नी को उसकी निजी जानकारी, संचार, व्यक्तिगत वस्तुएं और यहां तक कि मोबाइल और बैंक खातों के पासवर्ड साझा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। फैमिली कोर्ट के फैसले को यथावत रखते हुए याचिकाकर्ता पति की याचिका को खारिज कर दिया है।

पति ने फैमिली कोर्ट में याचिका दायर कर पत्नी के मोबाइल फोन का काल डिटेल्स की मांग की थी। मामले की सुनवाई के बाद फैमिली कोर्ट ने निजता के अधिकार का उल्लंघन मानते हुए याचिका को खारिज कर दिया था। फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए पति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई जस्टिस राकेश मोहन पांडेय के सिंगल बेंच में हुई। कोर्ट ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता पति अपनी पत्नी को ऐसा करने के लिए मजबूर कर रहा है या फिर दबाव बना रहा है तो यह पत्नी की गोपनीयता का उल्लंघन होगा। निजता के अधिकार का हनन होगा। ऐसी स्थिति में पति के खिलाफ घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने का आधार बन सकता है। पति के खिलाफ मामला दायर हो सकता है।

विवाह का यह अर्थ कतई नहीं है

कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि विवाह का अर्थ यह कतई नहीं है कि पति को पत्नी के निजी जानकारी जानने का अधिकार मिल गया है। कोर्ट ने साफ लिखा है कि पति पत्नी को मोबाइल फोन व बैंक पासवर्ड जैसे गोपनीय और निजी चीजों को साझा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। ऐसा करना पत्नी की गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन होगा और यह घरेलू हिंसा की श्रेणी में गिना जाएगा। कोर्ट ने यह भी लिखा है कि वैवाहिक गोपनीयता,पारदर्शिता और आपसी विश्वास के बीच बेहतर संतुलन होना चाहिए।

फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका

याचिकाकर्ता पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) (i-a) के तहत 'क्रूरता' के आधार पर तलाक की मांग करते हुए फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के दौरान पत्नी ने पति द्वारा लगाए गए आरोप का खंडन करते हुए जवाब पेश किया। पत्नी ने बताया कि तलाक की प्रक्रिया के दौरान पति ने दुर्ग SSP के समक्ष आवेदन देकर उसके मोबाइल फोन का कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) की मांग की थी। पत्नी ने कहा कि पति उसके चरित्र पर शक करते थे। इसी तरह का एक आवेदन फैमिली कोर्ट में भी दिया गया। पति ने पहली बार CDR मांगते समय पत्नी पर अपने बहनोई के साथ अवैध संबंध का आरोप लगाया था, लेकिन यह नहीं बताया कि कॉल डिटेल्स क्यों जरूरी है। मामले की सुनवाई के बाद फैमिली कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया था।

इस पर हस्तक्षेप करना उचित नहीं

जस्टिस पांडेय ने अपने फैसले में लिखा है कि विवाह के बाद भी पति-पत्नी को गोपनीयता का अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा संरक्षित है। कोर्ट ने कहा कि घर या दफ्तर में की गई मोबाइल से बातचीत जो अक्सर अंतरंग और गोपनीय होते हैं, वे निजी जीवन का अहम हिस्सा हैं और उन पर हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। वैवाहिक संबंधों में साझेदारी जरुरी होती है। इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि कोई एक साथी दूसरे की निजता, स्वतंत्रता और संचार में मनमाने ढंग से हस्तक्षेप करे। इस टिप्पणी के साथ हाई कोर्ट ने पत्नी की काल डिटेल्स मांगने वाली पति की याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को यथावत रखते हुए कहा कि पत्नी की काल डिटेल्स की जानकारी संबंधी आदेश देना पत्नी की गोपनीयता के अधिकार का सीधेतौर पर उल्लंघन है। निजता के अधिकार का उल्लंघन करने की आजादी नहीं दी जा सकती।

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