Bilaspur BJP Row: बिलासपुर भाजपा की सूची ने मचाया घमासान, मंडलों के नाम गायब, नेताओं में नाराज़गी
Bilaspur BJP News: बिलासपुर शहर और ग्रामीण जिला भाजपा की कार्यकारिणी की घोषणा के बाद बवाल हो गया है। दोनों जिला अध्यक्षों की सूची आने के बाद पता चल रहा है कि कई दमदार नाम गायब हैं, और तो और विधायक व पूर्व विधायकों से मिले नाम नदारद कर दिए गए हैं।
Bilaspur BJP Row: बिलासपुर। भाजपा की रायपुर की अहम बैठक में सभी जिला अध्यक्षों को सीख दी गई थी कि संतुलन और सामंजस्य बना कर काम करना है। कहीं से शिकायत या असंतुष्टि की बात नहीं आनी चाहिए। इसके बाद बिलासपुर भाजपा में दो सूची आने के बाद खलबली मच गई है। यहां के वरिष्ठ भाजपा नेता भी समझ नहीं पा रहे हैं कि उनकी सिफारिश को रद्दी की टोकरी में क्यों डाल दिया गया।
मंडलों के नाम क्यों गायब?
हैरत की बात यह है कि भाजपा ने जिला भाजपा इकाई के लिए सभी मंडलों से भी नाम मंगाए थे। इन नामों को तक सूची में जगह नहीं दी गई है। जबकि मंडल से नाम मांग कर जिले की सूची में संतुलना कायम रखना मुख्य उद्देश्य था। पार्टी सूत्रों ने बताया कि जिला भाजपा की सूची में कुछ योग्य और वास्तविक नाम नहीं रखे गए हैं। प्रदेश पदाधिकारी की सूची में शामिल कुछ नाम जिले की सूची में नहीं दिख रहे हैं, जबकि उन्हें विशेष आमंत्रित के रूप में रखा जाता है।
जिले के दो पूर्व विधायकों ने अपने समर्थकों के बीच से कुछ नाम छांट कर दिया था। ये भी नाम गायब हैं। इन दोनों पूर्व विधायकों की संगठन में पकड़ अच्छी मानी जाती है। इसी तरह दो वर्तमान विधायकों के समर्थकों के खेमे में भी निराशा है। सूची में स्थाई आमंत्रित सदस्यों में जिला के केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू, डिप्टी सीएम अरुण साव, विधायक सुशांत शुक्ला, राजा पांडे, पूर्व सांसद लखन साहू, पूर्व विधायक डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी, रजनीश कुमार सिंह, प्रबल प्रताप सिंह जूदेव, जिला पंचायत अध्यक्ष राजेश सूर्यवंशी, द्वारिकेश पाण्डे, रामलाल साहू, कांशीराम साहू, डॉ. सुनील जायसवाल, द्रोण त्रिपाठी के नाम हैं।
पार्टी के एक खेमे का तर्क है कि शहर जिला अध्यक्ष दीपक सिंह और ग्रामीण जिला अध्यक्ष मोहित जायसवाल ने प्रदेश संगठन को विश्वास में लेकर सूची जारी की है। इस कारण इसमें किसी की उपेक्षा या जानबूझ कर स्थान नहीं दिए जाने का आरोप नहीं लगाया जाना चाहिए। मगर इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है कि मंडल से आए ज्यादातर नामों को क्यों किनारे कर दिया गया , जबकि भविष्य में मंडलों के जरिए ही संगठन के कार्यक्रम चलाए जाने हैं।