Raipur Police Commissioner: पुलिस कमिश्नरेट के लिए DGP ने ADG की अध्यक्षता में बनाई सात IPS अधिकारियों की कमेटी, एक नवंबर से रायपुर में पुलिस कमिश्नर...

Raipur Police Commissioner: रायपुर में पुलिस कमिश्नर (Raipur Police Commissioner) सिस्टम लागू करने सरकार ने कवायद प्रारंभ कर दी है। इसके लिए एडीजी की अध्यक्षता में सात सदस्यीय कमेटी बनाई गई है। कमेटी पुलिस कमिश्नरेट का ड्राफ्ट बनाकर सरकार को सौंपेगी। उसके हिसाब से सरकार फिर तय करेगी कि 2007 के पुलिस एक्ट के अनुसार इसका नोटिकिशन किया जाए या अलग से एक्ट बनाया जाए।

Update: 2025-09-09 07:25 GMT

Raipur Police Commissioner: रायपुर। रायपुर में पुलिस कमिश्नर प्रारंभ करने की तैयारी तेज हो गई है। सरकार के निर्देश पर डीजीपी अरुणदेव गौतम ने सीनियर एडीजी प्रदीप गुप्ता के नेतृत्व में सात आईपीएस अधिकारियों की कमेटी बना दी है। इनमें अजय यादव, अमरेश मिश्रा, ध्रुव गुप्ता, अभिषेक मीणा, संतोष सिंह और प्रभात शामिल हैं। कमेटी ने पुलिस कमिश्नरेट के ड्राफ्ट पर काम प्रारंभ कर दिया है।

कमेटी इस बात पर मंथन कर रही है कि पुलिस कमिश्नर सिस्टम (Raipur Police Commissioner) को छत्तीसगढ़ पुलिस एक्ट 2007 के प्रावधानों के अनुसार बनाया जाए या फिर इसके लिए अलग से एक्ट बनाया जाए। पड़ोसी राज्य ओड़िसा में जैसे अलग से एक्ट बनाया गया है। सरकार अगर अलग से एक्ट बनाना चाहेगी तो फिर इसके लिए दो रास्ते हैं। पहला विधानसभा से अधिनियम पारित कराया जाए। मगर इसमें पेंच यह है कि शीतकालीन सत्र दिसंबर में आयोजित किया जाएगा। उससे पहले राज्योत्सव के मौके पर पुलिस कमिश्नर प्रणाली की शुरूआत करनी है। इसलिए विधानसभा से पारित कराना संभव नहीं। दूसरा रास्ता है राज्यपाल से अध्यादेश जारी कराना। इसके लिए कैबिनेट द्वारा प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल को भेजा जाएगा। चूकि पुलिस रिफार्म का मामलाप है तो राजभवन से तुरंत अध्यादेश जारी भी हो जाएगा। हालांकि, सरकार को ये तय करना है कि 2007 के पुलिस एक्ट से पुलिस कमिश्नर सिस्टम (Raipur Police Commissioner) शुरू किया जाए या फिर नया एक्ट बनाएं।

जाहिर है, राज्योत्सव के मौके पर एक नवंबर से रायपुर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली की शुरूआत हो जाएगी। गृह विभाग और पुलिस मुख्यालय ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। कई राज्यों के सिस्टम का अध्ययन कर छत्तीसगढ़ में बेस्ट ड्राफ्ट बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

बता दें, पड़ोसी राज्यों में महाराष्ट्र और तेलांगना में तो सालों पहले से यह सिस्टम काम कर रहा है, यूपी, एमपी और ओड़िसा में भी पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू है। छत्तीसगढ़, बिहार और नार्थ-ईस्ट के राज्यों को छोड़ दें तो लगभग सभी राज्यों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली प्रभावशाल हो चुकी है। मध्यप्रदेश के भोपाल और इंदौर में कुछ साल पहले ये सिस्टम लागू हुआ और अब इसका दायरा बढ़ाकर जबलपुर और ग्वालियर को भी शामिल किया जाने वाला है।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में बढ़ते अपराधों को देखते विष्णुदेव कैबिनेट ने रायपुर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली (Raipur Police Commissioner) लागू करने का फैसला किया। इसके लिए कैबिनेट से प्रस्ताव पारित हो चुका है। और प्राथमिकता से इस पर काम किया जा रहा है। कोशिश है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर एक नवंबर को रायपुर आएं तो उनके हाथों इस रिफार्म का आगाज कराया जाए।

रायपुर में बैठेंगे अब 7 IPS

इस समय रायपुर में आईजी और एसएसपी को मिलाकर दो आईपीएस लॉ एंड आर्डर संभाल रहे हैं। मगर पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने के बाद अब आईपीएस अधिकारियों की संख्या बढ़कर सात हो जाएगी। इसी तरह राज्य पुलिस सेवा के भी करीब दर्जन भर अफसरों को अपराधों पर अंकुश लगाने पोस्ट किया जाएगा।

इस रैंक के होंगे CP

आमतौर पर पुलिस कमिश्नर एडीजी रैंक के होते हैं। मगर कुछ जगहों पर आईजी को भी पुलिस कमिश्नर (Raipur Police Commissioner) का चार्ज दिया गया है। जैसे भोपाल में पहले एडीजी थे मगर अब वहां आईजी रैंक के आईपीएस अधिकारी को पुलिस कमिश्नर बनाया गया है। पुलिस कमिश्नर के नीचे ज्वाइंट कमिश्नर होते हैं। अगर पुलिस कमिश्नर एडीजी रैंक के हुए तो फिर आईजी रैंक के ज्वाइंट कमिश्नर बनाए जाएंगे। उनके नीचे फिर डीआईजी रैंक के एक एडिशनल पुलिस कमिश्नर होंगे। फिर एसपी या एसएसपी रैंक के चार आईपीएस डीसीपी होंगे। चारों डीसीपी को शहर के चार हिस्सों में बांटकर उनके कार्यक्षेत्र का बंटवारा किया जाएगा। डीसीपी के नीचे होंगे एसीपी। एसीपी एडिशनल और डीएसपी रैंक के अफसर होंगे। एसीपी करीब दर्जन भर होंगे। थानों के हिसाब से इनकी पोस्टिंग की जाएगी।

ऐसा होगा सेटअप

1. पुलिस कमिशनर-इसे सामान्य बोलचाल में सीपी कहा जाता है।

2. संयुक्त आयुक्त-ज्वाइंट सीपी

3. अपर आयुक्त-एडिशनल सीपी

4. डिप्टी कमिशनर-डीसीपी

5. सहायक आयुक्त-एसीपी

अंग्रेजी शासन काल से पुलिस कमिश्नर

पुलिस कमिश्नर सिस्टम अंग्रेजों के समय से चला आ रहा है। आजादी के पहले कोलकाता, चेन्नई और मुंबई जैसे देश के तीन महानगरों में लॉ एंड आर्डर को कंट्रोल करने के लिए अंग्रेजों ने वहां पुलिस कमिश्नर सिस्टम प्रभावशील कर रखा था। आजादी के बाद देश को यह वीरासत में मिली। चूकि बड़े महानगरों में अपराध बड़े स्तर पर होते हैं, इसलिए पुलिस को पावर देना जरूरी समझा गया। लिहाजा, अंग्रेजों की व्यवस्था आजाद भारत में भी बड़े शहरों में लागू रही। बल्कि पुलिस अधिनियम 1861 के तहत लागू पुलिस कमिश्नर सिस्टम को और राज्यों में भी प्रभावशील किया गया।

कमिश्नर को दंडाधिकारी पावर

वर्तमान सिस्टम में राज्य पुलिस के पास कोई अधिकार नहीं होते। उसे छोटी-छोटी कार्रवाइयों के लिए कलेक्टर, एसडीएम और तहसीलदार, नायब तहसीलदारों का मुंह ताकना पड़ता है। दरअसल, भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 के धारा 4 में जिले के कलेक्टरों को जिला दंडाधिकारी का अधिकार दिया गया है। इसके जरिये पुलिस उसके नियंत्रण में होती है। बिना डीएम के आदेश के पुलिस कुछ नहीं कर सकती। सिवाए एफआईआर करने के। इसके अलावा पुलिस अधिनियम 1861 में कलेक्टरों को सीआरपीसी के तहत कई अधिकार दिए गए हैं। पुलिस को अगर लाठी चार्ज करना होगा तो बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के वह नहीं कर सकती। कोई जुलूस, धरना की इजाजत भी कलेक्टर देते हैं। प्रतिबंधात्मक धाराओं में जमानत देने का अधिकार भी जिला मजिस्ट्रेट में समाहित होता है। कलेक्टर के नीचे एडीएम, एसडीएम या तहसीलदार इन धाराओं में जमानत देते हैं।

तत्काल फैसला लेने का अधिकार

महानगरों या बड़े शहरों में अपराध भी उच्च स्तर का होता है। उसके लिए पुलिस के पास न बड़ी टीम चाहिए बल्कि अपराधियों से निबटने के लिए अधिकार की भी जरूरत पड़ती है। धरना, प्रदर्शन के दौरान कई बार भीड़े उत्तेजित या हिंसक हो जाती है। पुलिस के पास कोई अधिकार होते नहीं, इसलिए उसे कलेक्टर से कार्रवाई से पहले इजाजत मांगनी पड़ती है। पुलिस कमिश्नर लागू हो जाने के बाद एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के अधिकार पुलिस कमिश्नर को मिल जाएंगे। इससे फायदा यह होगा कि पुलिस विषम परिस्थितियों में तत्काल फैसला ले सकती है। हालांकि, इससे पुलिस की जवाबदेही भी बढ़ जाती है।

शास्त्र और बार लायसेंस

पुलिस कमिश्नर सिस्टम में पुलिस को धरना, प्रदर्शन की अनुमति देने के साथ ही शस्त्र और बार का लायसेंस देने का अधिकार भी मिल जाता है। अभी ये अधिकार कलेक्टर के पास होते हैं। कलेक्टर ही एसपी की रिपोर्ट पर शस्त्र लायसेंस की अनुशंसा करता है। बार का लायसेंस भी कलेक्टर जारी करता है।

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