History of Christians in India: भारत में ईसाई धर्म कब आया? जानिए भारत में ईसाईयों का इतिहास और समाज में योगदान

क्या आप जानते हैं भारत में ईसाई धर्म कब आया? भारत में ईसाईयों का योगदान क्या है? आइए जानते है भारत में उनका इतिहास (History of Christians in India) और समाज में योगदान क्या है...

Update: 2025-09-17 07:40 GMT
History of Christians in India: भारत में ईसाई धर्म का इतिहास बहुत पुराना है और इसकी शुरुआत लगभग दो हजार साल पहले से हुई है। दरअसल ईस्वी सन् 52 में सेंट थॉमस (St. Thomas) नामक प्रभु यीशु का एक शिष्य (disciple of Jesus Christ) केरल के तटीय नगर क्रांगानोर पहुँचे और यहीं से भारत में ईसाई धर्म का प्रसार शुरू हुआ। धीरे-धीरे यह धर्म समाज, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से भारतीय जीवन का अहम हिस्सा बन गया। आइए जानते हैं भारत में ईसाई धर्म के इतिहास और इसके योगदान के बारे में विस्तार से।

प्राचीन काल (Ancient Times): सेंट थॉमस का आगमन
सेंट थॉमस को भारत में ईसाई धर्म (Christianity) की नींव रखने वाला माना जाता है। परंपरा के अनुसार उन्होंने केरल में सात चर्च स्थापित किए और स्थानीय लोगों को ईसाई धर्म (Christianity) शिक्षा दी। उनके अनुयायी बाद में सेंट थॉमस ईसाई (Christians) या सीरियाई ईसाई कहलाए।

मध्यकाल (Medieval Period): फारसी और सीरियाई प्रभाव
तीसरी शताब्दी में फारस और सीरिया से कुछ ईसाई समुदाय भारत आए। ये लोग चर्च ऑफ द ईस्ट से जुड़े थे। इतिहास में "थॉमस ऑफ कैना" नामक एक नेता का भी उल्लेख है, जिन्होंने अपने अनुयायियों के साथ भारत आकर यहाँ एक नई ईसाई पहचान बनाई।



 उपनिवेश काल (Colonial Period): पुर्तगाली और अंग्रेजों का प्रभाव

1498 में पुर्तगालियों के आगमन के साथ रोमन कैथोलिक धर्म का प्रसार तेजी से हुआ। 1542 में सेंट फ्रांसिस जेवियर भारत आए और गोवा, केरल तथा दक्षिण भारत में ईसाई धर्म का प्रचार किया। 18वीं शताब्दी में प्रोटेस्टेंट मिशनरियों ने दक्षिण भारत में काम शुरू किया। अंग्रेजी शासनकाल में कई मिशनरियों ने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में काम किया और बड़े पैमाने पर सुधार लाए।

ईसाई मिशनरियों का योगदान (Contribution of Christian missionaries)
शिक्षा में योगदान
भारत में ईसाई मिशनरियों ने शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा योगदान दिया। उन्होंने आधुनिक पश्चिमी शैली के स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्थापित किए, जिनमें से कई आज भी देश के प्रतिष्ठित संस्थान माने जाते हैं, जैसे मुंबई का सेंट जेवियर्स कॉलेज, दिल्ली का सेंट स्टीफंस कॉलेज और चेन्नई का लोयोला कॉलेज। उस समय जब लड़कियों की पढ़ाई पर ध्यान नहीं दिया जाता था, तब उन्होंने महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विशेष स्कूल खोले और समाज के कमजोर वर्गों जैसे दलितों और आदिवासियों के लिए भी शिक्षा की व्यवस्था की। इसके अलावा, उन्होंने बाइबिल का अनुवाद विभिन्न भारतीय भाषाओं में कराया, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं और साहित्य के विकास को बल मिला। 1818 में केरल में स्थापित CMS कॉलेज उच्च शिक्षा की दिशा में उनका एक बड़ा कदम था। इस तरह ईसाइयों ने न केवल शिक्षा का प्रसार किया बल्कि समाज में समानता और प्रगति की नींव भी मजबूत की।
स्वास्थ्य सेवा में योगदान
मिशनरियों ने अस्पताल और क्लीनिक स्थापित किए। आधुनिक चिकित्सा सुविधाएँ वंचित और गरीब वर्गों तक पहुँचाईं।


 सामाजिक सुधार (social reform)

सती प्रथा, बाल विवाह और अस्पृश्यता (अछूत) जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। विधवा पुनर्विवाह और महिला अधिकारों को समर्थन दिया। सती प्रथा भारत की एक अमानवीय और दुखद सामाजिक बुराई थी, जिसमें पति की मृत्यु के बाद पत्नी को भी उसकी चिता पर जलाया जाता था। इस प्रथा के खिलाफ़ समाज में आवाज उठाने वालों में ईसाई मिशनरियों और ब्रिटिश अधिकारियों ने अहम भूमिका निभाई। उन्होंने लोगों को यह समझाने की कोशिश की कि यह प्रथा मानव अधिकारों और महिला जीवन के खिलाफ है। उनकी जागरूकता फैलाने की कोशिशों से भारतीय समाज में भी बदलाव की सोच पैदा हुई।
सती प्रथा का विरोध करने वाले शुरुआती ईसाइयों में से प्रमुख नाम विलियम कैरी थे, जिन्होंने 19वीं सदी की शुरुआत में इस प्रथा के खिलाफ अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जिससे सती प्रथा को समाप्त करने के लिए राजा राममोहन राय जैसे भारतीय समाज सुधारकों के आंदोलन को भी बल मिला। ईसाई प्रचारकों और सुधारकों की इस संयुक्त कोशिश के कारन अंततः 1829 में गवर्नर-जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक ने कानून बनाकर सती प्रथा को हमेशा के लिए गैरकानूनी घोषित कर दिया। इस तरह ईसाई मिशनरियों का योगदान ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण रहा।

भाषा और साहित्य
बाइबिल का अनुवाद कई भारतीय भाषाओं में किया। व्याकरण और शब्दकोश तैयार किए, जिससे भाषाओं के विकास में मदद मिली।
आधुनिक भारत में ईसाई धर्म
आज भारत में ईसाई धर्म देश का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। केरल, नागालैंड, मिजोरम और मेघालय जैसे राज्यों में ईसाइयों की बड़ी आबादी है। ईसाई समुदाय शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सेवा और राष्ट्र निर्माण में अब भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भारत में ईसाई धर्म केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुधार और महिला सशक्तिकरण जैसे क्षेत्रों में गहरा योगदान देने वाला आंदोलन भी रहा है। सेंट थॉमस के आगमन से शुरू हुई यह यात्रा आज भारत की विविधता और एकता का अहम हिस्सा है।
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