Chhattisgarh Tarkash 2024: शरीफ मंत्री, उदंड मुलाजिम

Chhattisgarh Tarkash 2024: शरीफ मंत्री, उदंड मुलाजिमः छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित वरिष्ठ पत्रकार संजय दीक्षित का पिछले 15 बरसों से लगातार प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश

Update: 2024-02-24 23:30 GMT

तरकश, 25 फरवरी 2024

संजय के. दीक्षित

शरीफ मंत्री, उदंड मुलाजिम

राजधानी रायपुर से लगे एक नए मंत्री का इलाका आता है। वहां पिछले हफ्ते विकसित भारत कार्यक्रम था। मंत्रीजी के विभागीय मुलाजिम ने मोदीजी के कार्यक्रम में बेंच लगवा दिया था। मंत्रीजी को यह अच्छा नहीं लगा। बोले, बेंच की बजाए चेयर लगवा देना था। इस पर डिप्टी कलेक्टर से भी छोटे मुलाजिम ने टका से जवाब दे दिया...आप पंचायत वालों से लगवा लीजिए, ये उनके विभाग का काम है। जरा सोचिए, अमर अग्रवाल या फिर अजय चंद्राकर जैसे मंत्री होते तो क्या होता। दरअसल, अधिकांश नए मंत्रियों को नीचे के अधिकारी, कर्मचारी बेहद हल्के में ले रहे हैं। अजय चंद्राकर के नाम से मुलाजिम तो छोड़िये, कलेक्टर, कमिश्नर भी घबराते थे। वैसे, अधिकारियों के सबसे प्रिय मंत्री अमर अग्रवाल रहे हैं। मगर वे भी जब अपने पर आ गए तो फिर खैर नहीं। मंत्री की पहली पारी में डायेक्टर हेल्थ और सिकरेट्री हेल्थ से वे नाराज हुए तो छुट्टी कराकर ही माने। बस्तर मे ग्राम सुराज कार्यक्रम था। उसमें मंत्री के साथ सिकरेट्री को भी जाना था। सिकरेट्री नहीं पहुंचे। आगे चलकर चीफ सिकरेट्री बनने वाले आईएएस से अमर इस कदर नाराज हुए कि रमन िंसंह को सिकरेट्री का विभाग बदलना पड़ा। कहने का आशय यह है कि सरकार के मंत्रियों का अपना औरा होना चाहिए। तभी काम होगा और योजनाओं का क्रियान्यवन भी।

अलग-अलग सिकरेट्री

विधानसभा में कुछ सालों से विधानसभा के सिकरेट्री ही स्पीकर के सिकरेट्री का दायित्व संभाल रहे थे। यानी डबल चार्ज में। विधानसभा के सचिव दिनेश शर्मा और उनसे पहले चंद्रशेखर गंगराडे़ दोनों पदों पर रहे। मगर अब फिर से विधानसभा अध्यक्ष के सिकरेट्री की पोस्टिंग की गई है। डॉ0 रमन सिंह के साथ उनके केंद्रीय मंत्री रहने के समय से अभी तक हनुमान की तरह साथ रहने वाले विक्रम सिसोदिया को उनका सचिव नियुक्त किया गया है। रमन सिंह के मुख्यमंत्री रहने के दौरान विक्रम कस्टम की सर्विस से वीआरएस लेकर पूरे 15 साल उनके ओएसडी और फिर एडवाइजर रहे। रमन से पहले वे केंद्रीय मंत्री विक्रम वर्मा के भी ओएसडी रहे हैं।

फैक्ट में चूक

पिछले तरकश में एक मिथक का जिक्र था...छत्तीसगढ़ में प्रशासन अकादमी के डीजी रहने वाले सूबे का प्रशासनिक मुखिया यानी चीफ सिकरेट्री नहीं बनते। इस पर पूर्व मुख्य सचिव सुनिल कुमार का व्हाट्सएप मैसेज आया...आपका फैक्ट गलत है, मैं प्रशासन अकादमी का प्रमुख रह चुका हूं। चलिये इस चूक के लिए खेद, और सुनिल कुमार को आभार। अभी सुब्रत साहू प्रशासन अकादमी के डीजी हैं। उनसे पहले रेणु पिल्ले, गौरव द्विवेदी भी अकादमी संभाल चुके हैं। उनके लिए ये राहत की बात होगी।

ध्यानाकर्षण का लेवल

व्यापक लोकहितों के ऐसे मसले, जिस पर अविलंब चर्चा कराना आवश्यक हो, सरकार का ध्यान आकर्षित करना जरूरी हो, उसके लिए संसदीय व्यवस्था में ध्यानाकर्षण का नियम बनाया गया था। इस नियम के तहत राज्य स्तर के मुद्दे उठते रहे हैं। मगर समय के साथ इसका लेवल डाउन होता जा रहा है। कल 23 फरवरी की ही बात करें...31 ध्यानाकर्षण लगे थे। अब संख्या इतनी है तो मंत्री का जवाब कैसे आता। सो, एक साथ पटल पर रख दिया गया। निश्चित तौर पर इनमें कुछ अच्छे और गंभीर विषय भी होंगे। मगर उनका भी गेहूं के साथ घुन वाला हाल हो गया। विधानसभा को इसके लिए एक और प्रबोधन कार्यक्रम चलाना चाहिए..ठीक है, विधायकों को संसदीय व्यवस्था में अपना विशेषाधिकार है मगर छोटे-छोटे करप्शन और अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए विधानसभा का कीमती समय खराब नहीं करना चाहिए।

28 को सत्र समाप्त?

विधानसभा का बजट सत्र एक मार्च तक चलना है। मगर अब कोई खास बिजनेस बचा नहीं है। सारे मंत्रियों के विभागों की चर्चा कंप्लीट हो गई है। अब सिर्फ मुख्यमंत्री के विभाग और विनियोग विधेयक बचे हैं। 26 फ़रवरी को सीएम के विभागों पर चर्चा के बाद शाम तक विनियोग विधेयक भी पेश हो जाएगा। इसके अगले दिन 27 को प्रश्नकाल के बाद विनियोग पारित होने के बाद कोई बिजनेस बचेगा नहीं। सामने लोकसभा चुनाव भी है। विपक्ष हार के सदमे से उबरा नहीं है, सो वे भी नहीं चाहेंगे कि सत्र पूरा चले। अधिक-से-अधिक ये हो सकता है कि 27 को कार्यवाही समाप्त कर 28 को समापन कार्यक्रम रख लिया जाए।

सिकरेट्री की पोस्टिंग

अमृत खलको को हटाकर 2007 बैच के आईएएस यशवंत कुमार को राजभवन सिकरेट्री बनाया गया है। राजभवन की पोस्टिंग काफी अहम मानी जाती है। डीएस मिश्रा, सुशील त्रिवेदी, शैलेष पाठक, आईसीपी केसरी, अमिताभ जैन, जवाहर श्रीवास्तव, पीसी दलेई, सुनील कुजूर जैसे सीनियर आईएएस राजभवन के सचिव रह चुके हैं। बाद में कुछ दिनों तक सोनमणि बोरा भी रहे। दरअसल, राजभवन सिकरेट्री का दायित्व सरकार और राजभवन के बीच सेतु की तरह होता है। यशवंत बीजापुर, रायगढ़, जांजगीर जिले के कलेक्टर के साथ रायपुर के कमिश्नर और आबकारी पोर्टफोलियो संभाल चुके हैं। उनके लिए यह प्रतिष्ठापूर्ण पोस्टिंग होगी।

नए फायनेंस सिकरेट्री?

आईएएस मुकेश बंसल सेंट्रल डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ लौट आए हैं। उनके आने से पहले ही ब्यूरोक्रेसी मे उन्हें फायनेंस सिकरेट्री बनाने की अटकलें तेज है। अटकलों का आधार यह है कि मुकेश वित्त मंत्री ओपी चौधरी के बैचमेट हैं। मुकेश इससे पहले भारत सरकार में फायनेंस में पोस्टेड थे। वे दुनिया के नंबर वन इंस्टिट्यूट एमआईटी कैम्ब्रीज से एमबीए कर चुके हैं। अगर मुकेश को फायनेंस मिला तो अंकित आनंद को भी कोई ठीकठाक विभाग मिलेगा। क्योंकि, अंकित भी साफ-सुथरी छबि वाले अफसर माने जाते हैं।

आईएएस की झड़ी

सेंट्रल डेपुटेशन से लौटने वाले की झड़ी लग गई है। सबसे पहले आईपीएस अमित कुमार और अमरेश मिश्रा आए। उनके बाद सोनमणि बोरा, मुकेश बंसल का आदेश हुआ। फिर ऋचा शर्मा रिलीव हुईं। और अभी अविनाश चंपावत। जून में अमित कटारिया का भी सात साल कंप्लीट हो जाएगा। जाहिर है, सात साल के बाद आगे एक्सटेंशन आसान नहीं होता। कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ में अफसरों की अब कमी नहीं रहेगी।

आरओ का डिमोशन

विधानसभा चुनाव के दौरान इस बार किसी भी कलेक्टर को रिटर्निंग आफिसर नहीं बनाया गया। उनके बदले एसडीएम या ज्वाइंट कलेक्टर लेवल के अफसरों को यह मौका दिया गया। लिहाजा, कलेक्टर डिस्ट्रिक्ट रिटर्निंग आफिसर तो रहे मगर आरओ नहीं। इसलिए जिला मुख्यालयों के कलेक्टर इस बार डायस पर बैठकर नामंकन पर्चा लेते नजर नहीं आए। मगर लोकसभा चुनाव में कलेक्टरों को ही डीआरओ बनाया जाता है। लिहाजा, इस बार 11 लोकसभा सीटों वाले जिला मुख्यालयों के कलेक्टर डिस्ट्रिक्ट रिटर्निंग ऑफिसर के साथ रिटर्निंग आफिसर भी होंगे। विधानसभा में आरओ के रोल में नजर आने वाले बेचारे एसडीएम लोगों का लोकसभा चुनाव में डिमोशन हो गया है। वे इस चुनाव में एआरओ होंगे। जाहिर है, उपर से नीचे आने में उन्हें तकलीफ तो होगी ही।

लक्ष्मण को वनवास!

सूरजपुर के आईएएस एसडीएम लक्ष्मण तिवारी को सवा महीने में ही वहां हटाकर 700 किलोमीटर दूर सुकमा की रवानगी डाल दी गई। इस सरकार का यह पहला केस है, जिसमें किसी अफसर की इतनी जल्दी छुट्टी हुई है। बताते हैं, लक्ष्मण नाम के अनुरूप थोड़ा तेज तो हैं, मगर उन्होंने सूरजपुर में रेत माफियाओं के साथ ही अवैध गतिविधियों के खिलाफ मुहिम छेड़ दी थी। सूरजपुर के लोग भी इसे मानते हैं। मगर एक प्रभावशाली महिला जनप्रतिनिधि के पति से पंगा लेना उन्हें भारी पड़ गया। खबर है, नदी में अवैघ रेत को जब्त करने के बाद वे टै्रक्टर से उलटवाने लगे। इस पर जनप्रतिनिधि के पति का हड़काने अंदाज में फोन आया। लक्ष्मण भी उसी अंदाज में जवाब दे डाले। एक तो धंधे पर चोट, दूसरा नेताइन के पति को चमका दोगे...तो इसका खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा।

ऐसे-ऐसे एसडीएम

राज्य प्रशासनिक सेवा वाले अफसर एसडीएम बनते-बनते काफी प्रैक्टिकल हो जाते हैं। मगर आरआर याने डायरेक्ट आईएएस का एसडीएमशिप अलग अंदाज में होता है। अमित कटारिया, ओपी चौधरी, रजत कुमार, दयानंद...जैसे आईएएस का एसडीएम कार्यकाल काफी चर्चित रहा है। ओपी चौधरी की गाड़ी देखकर गुंडे मवाली दुबक जाते थे। उस समय के एसडीएम हाथ की सफाई भी खूब करते थे। जाहिर है, नए-नए आईएएस होते हैं, सो उन पर एक नशा होता है, सिस्टम को बदलने का। तब कलेक्टर भी उन्हें खूब सपोर्ट करते थे...उंच-नीच हुआ तो बचाव भी। पता नहीं, सूरजपुर कलेक्टर रोहित व्यास अपने एसडीएम को क्यों नहीं बचा पाए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ में असली नंबर टू की दौड़ में कौन-कौन मंत्री शामिल हैं?

2. बीजेपी विधायक सदन में हंगामा कर रहे और मंत्रियों द्वारा जांच का ऐलान, कांग्रेस विधायक लाचार...ये सीन क्यों है?

Tags:    

Similar News