Chhattisgarh Tarkash 2024: सचिवों का अर्धशतक

Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित पत्रकार संजय के. दीक्षित का निरंतर 15 बरसों से प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश

Update: 2024-11-03 00:15 GMT

तरकश, 3 नवंबर 2024

संजय के. दीक्षित

सचिवों का अर्धशतक

पांच-सात साल पहले तक छत्तीसगढ़ के मंत्रालय में सचिवों का ऐसा टोटा था कि स्पेशल सिकरेट्री को विभागों की कमान सौंपनी पड़ रही थी। मगर अब स्थिति ये है कि एसीएस, और प्रिंसिपल सिकरेट्री को छोड़ सिर्फ सिकरेट्री लेवल के अफसरों की संख्या 50 पहुंच गई है। वो भी तब जब इस साल 2024 में छह सचिव रिटायर हो चुके हैं। शारदा वर्मा अगले महीने दिसंबर में रिटायर होंगी।

सचिवों की संख्या में एकाएक इजाफा इसलिए भी हुआ कि छह महीने के भीतर आधा दर्जन से अधिक आईएएस सेंट्रल डेपुटेशन से छत्तीसग़ढ़ लौट आए। उपर से 2005 के बाद छत्तीसगढ का आईएएस अलॉटमेंट भी बढ़ गया। याद होगा, 2002 तक एक-एक, दो-दो आईएएस छत्तीसगढ़ को मिलते थे।

मसलन, 2002 बैच में सिर्फ दो। रोहित यादव और कमलप्रीत सिंह। 1998 और 2001 में एक भी नहीं। 1999 और 2000 में एक-एक। 2005 के बाद उत्तरोत्तर संख्या बढ़ती गई। बहरहाल, जनवरी में 2009 बैच के आईएएस भी प्रमोट होकर सचिव बन जाएंगे। इस बैच में 11 आईएएस हैं। याने जनवरी तक सचिवों की संख्या 61 पहुंच जाएगी। ऐसे में, विभागों के बंटवारे में सरकार के पास विकल्प खुले रहेंगे। जाहिर है, पुअर परफर्मेंस वाले सचिवों की दिक्कतें बढ़ेंगी। उन्हें अल्पज्ञात विभागों के सचिव होने से ही दिल को दिलासा देना होगा।

सिकरेट्री की बड़ी चूक-1

अंग्रेज जब इमारतें बनाते थे, तो 100 साल आगे की प्लानिंग करते थे। मगर इंडियन लोगों की स्थिति यह है कि दस-बारह साल में प्लानिंग ध्वस्त होने लगती है। इसका नायाब नमूना है, छत्तीसगढ़ का मंत्रालय महानदी भवन। 2012 में महानदी भवन में पुराना मंत्रालय शिफ्थ हुआ था। करोड़ों रुपए से निर्मित इस भवन में सचिवों के लिए चार फ्लोर बनाए गए हैं। एक फ्लोर में सात सचिव बैठ सकते हैं। याने एसीएस, प्रिंसिपल सिकरेट्री मिलाकर 28 सिकरेट्री।

सचिवों की संख्या अब बढ़ गई है इसलिए सचिवालय ब्लॉक में कमरे का टोटा पड़ गया है। आलम यह है कि कई सचिवों को मंत्रियों के ब्लॉक में बिठाना पड़ रहा है। ऋचा शर्मा, सोनमणि बोरा, रोहित यादव जैसे कई सिकरेट्री मिनिस्ट्रियल ब्लॉक में बैठ रहे हैं।

सिकरेट्री की बड़ी चूक-2

दरअसल, मंत्रालय भवन की प्लानिंग जब तैयार हो रही थी, तब छत्तीसगढ़ को एक-एक, दो-दो आईएएस का आबंटन मिलता था। मगर जब बिल्डिंग बनने लगी तब इसमें इजाफा हो गया। उस समय पूर्व मुख्य सचिव पी जॉय उम्मेन प्रमुख सचिव आवास और पर्यावरण विभाग थे। नया रायपुर की पूरी प्लानिंग उम्मेन के कार्यकाल के दौरान ही फाइनल हुई। उम्मेन से लेकर तब की सारी एजेंसियां यह अंदाज लगाने में गच्चा खा गई कि आगे चलकर अफसरों की संख्या बढ़ गई तो क्या होगा।

अब तीन महीने के अवकाश के बाद अगले महीने अमित कटारिया ज्वाईन करेंगे। उसके महीने भर बाद 2009 बैच के प्रमोट होने वाले 11 सचिवों की संख्या और बढ़ जाएगी। यक्ष प्रश्न यह है कि इन्हें कहां बिठाया जाएगा? और 12 साल के भीतर ही अगर नया मंत्रालय भवन बनाने या एक्सटेंशन करने की नौबत आ जाए तो क्या यह मजाक नहीं होगा? ब्यूरोक्रेसी को भविष्य के लिए इससे सबक लेनी चाहिए।

सुबोध सिंह की पोस्टिंग

97 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस सुबोध सिंह को भारत सरकार में पोस्टिंग मिल गई है। उन्हें स्टील मिनिस्ट्री में एडवाइजर बनाया गया है। रायगढ़, बिलासपुर और रायपुर की चार बार कलेक्टरी कर चुके सुबोध 2020 में सेंट्रल डेपुटेशन पर गए थे। याने उनका तीन साल कंप्लीट हो चुका है। राज्य सरकार अगर प्रयास करें तो सुबोध को रिलीव करने में भारत सरकार को कोई दिक्कत नहीं होगी। सूबे में सचिवों की संख्या भले ही 50 पहुंच गई है मगर सुबोध जैसे अफसरों की संख्या अभी भी महसूस की जा रही है।

कबाड़ी, पुलिस और पॉलिटिक्स

छत्तीसगढ़ के सूरजपुर में कबाड़ी को पुलिसिया और राजनीतिक संरक्षण की वजह से कैसा बवाल हुआ, ये किसी से छुपा नहीं है। सरकार को सूरजपुर के पुलिस अधीक्षक को हटाना पड़ गया। बावजूद इसके, पुलिस का सिस्टम सबक नहीं ले रहा है। कबाड़ी को बचाने की इसी हफ्ते ताजा घटना रायपुर से लगे धमतरी जिले के कुरूद में हुई।

रायपुर-विशाखापट्टनम सिक्स लेन ग्रीन कारिडोर बना रही लखनउ की कंट्रक्शन कंपनी का 29 टन सरिया का ट्रक पार हो गया। इसमें कंपनी के कुछ स्टाफ भी शामिल रहे। कंपनी ने खुद ही तीन लोगों को पकड़कर कुरूद पुलिस के हवाले किया। पकड़े गए लोगों ने बताया कि ट्रक को कुरूद के एक राईस मिल में अनलोड किया गया। उसके बाद एक कबाड़ी उसे खरीदकर ले गया। इसके बाद भी पुलिस ने रिपोर्ट लिखने में खेल कर दिया।

एक तो दूसरे दिन एफआईआर दर्ज हुआ। पहले दिन पुलिस ने यह कहकर आरोपियों को कंपनी के लोगों के सुपूर्द कर दिया कि कल लेकर आईयेगा। उसके बाद 8 लाख की सरिया को एफआईआर में 80 हजार की चोरी कर दिया गया। जाहिर है, कबाड़ी और राईस मिलर को बचाने यह किया गया। चूकि चोरी की राशि कम हो गई, इसलिए केस कमजोर पड़ जाएगा। बता दें, राईस मिलर और कबाड़ी को बचाने रायपुर से एक लॉबी का पुलिस पर भारी प्रेशर था...पुलिस दबाव में आ भी गई।

मंत्री पद की दावेदारी

रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव का परिणाम 23 नवंबर को आएगा। मगर रिजल्ट क्या आएगा, इस पर सियासी प्रेक्षकों को कोई उलझन नहीं है। भाजपा भी जानती है रिजल्ट क्या आएगा और कांग्रेस भी। खैर, सत्ताधारी पार्टी के सुनील सोनी अगर चुनाव जीते तो मंत्री पद का एक दावेदार और बढ़ जाएगा।

इस समय विष्णुदेव कैबिनेट में दो पद खाली हैं। बृजमोहन अग्रवाल के सांसद चुने जाने के बाद रायपुर से इस समय कोई मंत्री नहीं है। लिहाजा, राजेश मूणत की दावेदारी है तो पुरंदर मिश्रा भी महाप्रभु जगन्नाथ से चमत्कार की आस लगाए बैठे हैं। अब ओबीसी से सुनील सोनी भी मैदान में होंगे। लेकिन महत्वपूर्ण यह भी है कि कैबिनेट के 9 मंत्रियों में से ओबीसी कोटे से इस समय छह मंत्री हैं। याने 66 परसेंट।

चूकि छत्तीसगढ़ में बीजेपी की राजनीति ट्राईबल और ओबीसी की धुव्रीकरण की है, इसलिए ओबीसी से एक मंत्री और बनाया जा सकता है। तब सात ओबीसी मंत्री हो जाएंगे। सत्ताधारी पार्टी के लिए यह परफेक्ट समीकरण होगा। आदिवासी मुख्यमंत्री प्लस दो आदिवासी, एक अनुसूचित जाति, सात ओबीसी और दो जनरल केटेगरी से मंत्री।

इससे स्पष्ट है कि मंत्रिमंडल की दो रिक्त सीटों में ओबीसी और जनरल से एक-एक को मौका मिलेगा। अब मंत्री बनने वाले दो भाग्यशाली विधायक कौन होंगे, ये तो नहीं पता, मगर ये अवश्य है कि अब हेड काउंटिंग के लिए मंत्री नहीं बनाया जाएगा। पार्टी अब परफार्मेंस को प्राथमिकता देगी। क्योंकि, ओबीसी और जनरल में रिजल्ट देने वाले विधायकों की कमी नहीं है।

तीन साल चुनाव में

विष्णुदेव साय सरकार का एक साल लगभग निकल गया है। आखिरी साल चुनावी वर्ष होता है। उसमें उद्घाटन और चुनाव में माहौल बनाने के लिए शिलान्यास के काम होते हैं। बचा तीन साल। इसी में नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव होगे। सरकार को इसी पीरियड में अपना बेस्ट दिखाना है। लिहाजा, मंत्रियों के साथ अब सचिवों के लिए अगला तीन साल चुनौतीपूर्ण होंगे।

इसी तीन साल में प्लानिंग करनी होगी और उसका क्रियान्वयन भी। इसके लिए सरकार को बेस्ट अफसरों की फारवर्ड टीम तैयार करनी होगी...उसके कंधे पर हाथ रखना होगा...बिना पुख्ता संरक्षण के अफसर रिस्क लेकर काम करते नहीं। पिछली सरकार ने टीम बनाने में चूक की। इससे उसे खामियाजा यह उठाना पड़ा कि भूपेश बघेल जैसे कमांडर के होने के बाद भी बीजेपी उसे परास्त करने में कामयाब हो गई।

अंत में दो सवाल

1. दिवाली, होली जैसे त्यौहारों की डेट में कंफ्यूजन पैदा करने से किसका हित सध रहा है?

2. दिल्ली में रेजिडेंट कमिश्नर बनने के लिए आईएएस अफसर इतना जोर क्यों मार रहे हैं?

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