Chhattisgarh Tarkash 2024: डिनर और सियासत

Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित वरिष्ठ पत्रकार संजय दीक्षित का निरंतर 15 बरसों से प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश। इसमें मिलेंगे आपको छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर गंभीर और सिस्टम से सवाल पूछती खबरें।

Update: 2024-06-30 00:00 GMT

तरकश, 30 जून 2024

संजय के. दीक्षित

डिनर और सियासत 

सियासत में चाय और डिनर के अपने निहितार्थ होते हैं...भारत में तो चाय पर चर्चा के बाद लोगों ने सरकार गिरते भी देखा है। तमिलनाडू की मुख्यमंत्री जयललीता सोनिया गांधी के यहां चाय पीने गई और अटलजी की सरकार गिर गई थी। बहरहाल, बात यहां छत्तीसगढ़ के सांसद के डिनर की। दरअसल, राजनांदगांव के सांसद संतोष पाण्डेय ने 28 जून को दिल्ली के अपने सरकारी निवास में हाई प्रोफाइल दावत रखी थी। जाहिर है, पाण्डेय जी को मोदी कैबिनेट 3.0 में मंत्री बनाए जाने की बड़ी चर्चाएं थी। अटकलों में पंख लगाने वालों के तर्क नाहक नहीं थे। संतोष के साथ संघ का टैग लगा ही है, राजनांदगांव सीट से दूसरी बार निर्वाचित हुए और वो भी भूपेश बघेल जैसे कांग्रेस के दिग्गज नेता को पराजित कर। खैर...बात डिनर की। संतोष पाण्डेय के डिनर में शामिल होने रायपुर से मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और संगठन मंत्री पवन साय, प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंहदेव ही नहीं पहुंचे बल्कि दिल्ली से शीर्ष नेता बीएल संतोष, शिवप्रकाश और अजय जामवाल ने भी शिरकत की। संतोष पाण्डेय का नार्थ एवेन्यू के 173 नंबर के घर में शाम से हाई प्रोफाइल डिनर की तैयारियां हो रहीं थीं...बड़ी शख्सियतों को आना था, सो गहमागहमी भी थी। शाम होते ही छत्तीसगढ़ के सांसदों का जमावड़ा लगने लगा। करीब दो घंटे तक डिनर चला। जाहिर है, इतने बड़े लोग जिस डिनर में शिरकत कर रहे हो, उसमें दाल, सब्जी और पाताल के झोझो के रेसिपी पर तो चर्चा नहीं हुई होगी। इस खास डिनर से सांसद संतोष पाण्डेय का कद बढ़ गया है। रेगुलर फ्लाइट केंसिल हो जाने पर सीएम विष्णुदेव साय चार्टर प्लेन से दिल्ली पहुंचे। उपर से बीएल संतोष, शिवप्रकाश और अजय जामवाल जैसे नेता उनके घर आए...सूबे के सारे सांसदों को जुटा लिया...कवर्धा वाले पाण्डेय जी ने वाकई कमाल कर दिया।

दलित कोटे से मंत्री?

छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव कैबिनेट में मंत्रियों के दो पद खाली है और किसी भी दिन शपथ के लिए राजभवन में समारोह आयोजित किया जा सकता है। 12 मंत्रियों के कोटे में एक पद पहले से खाली था और दूसरा बृजमोहन अग्रवाल के सांसद निर्वाचित होने से खाली हुआ है। इसमें सामान्य वर्ग के साथ ही दलित याने सतनामी समुदाय के भी अपने दावे और सियासी दलील हैं। दावे इसलिए क्योंकि कांग्रेस सरकार में सतनामी समुदाय से दो मंत्री रहे...शिव डहरिया और रुद्र गुरू। बीजेपी की चार सरकारों में रमन कैबिनेट 3.0 को छोड़ दें तो तीनों में एक-एक दलित नेता को मंत्री बनाने का मौका मिला। रमन कैबिनेट 3.0 में पुन्नूराम मोहले और दयाल दास बघेल मंत्री रहे। उससे पहले रमन कैबिनेट 1.0 में डॉ0 कृष्णमूर्ति बांधी और 2.0 में पुन्नूराम मोहले मंत्री रहे। फिलवक्त विष्णुदेव साय कैबिनेट में दयालदास बघेल इस समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। अब सियासी दलील...। राजनीतिक नफे-नुकसान के हिसाब से देखें तो मंत्रिमंडल में दावेदारी को लेकर दलितों का पलड़ा भारी दिखाई पड़ रहा है। जाहिर है, यूपी, बिहार जैसे दीगर राज्यों के साथ छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी का दलित समाज से दुरियां बढ़ी है। एक समय था, जब अनुसूचित जाति का आरक्षण कम होने के बाद भी 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 10 में से नौ विधानसभा सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी। मगर विशुद्ध तौर पर वह मैनेजमेंट का कमाल था। इसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को धक्का लगा ही, 2023 के एसेम्बली इलेक्शन में पार्टी चार सीटें जीत पाई। बसपा का गढ़ कहे जाने वाली जांजगीर में बीजेपी को हमेशा तीन-से-चार सीटें मिल जाती थी। इस चुनाव में सभी छह सीटें कांग्रेस ले उड़ी। बलौदा बाजार की घटना के बाद बीजेपी दलित वोट बैंक के छिटकने की आशंका और बढ़ गई होगी। क्योंकि, इसमें आपसी सियासत भी तेज है। सरकार ने गिरौदपुरी की समिति से विजय गुरू को हटाकर गुरू बालदास को नियुक्त कर किया। जानकारों का कहना है कि बलौदा बाजार घटना का बीजारोपण इसी दिन हो गया था। सो, बीजेपी भी चाहेगी कि सतनामी समाज में उसकी पकड़ और मजबूत हो...गुरू बालदास को भी मजबूत किया जाए। ऐसे में, दलित समाज से एक और मंत्री बनाने की अटकलों और दावों को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

रिटायर आईएएस का टोटा

राज्यों में कुछ आयोग ऐसे होते हैं, जिनमें आमतौर पर चीफ सिकरेट्री या इसके समकक्ष पदों से रिटायर आईएएस अधिकारियों को ही बिठाया जाता है। इनमें राज्य निर्वाचन आयुक्त भी शामिल है, जिसमें विष्णुदेव साय सरकार ने रिटायर चीफ सिकरेट्री अजय सिंह को पोस्ट किया है। इसके अलावे शीर्ष पदों से रिटायर होने वाले आईएएस अफसरों से भरे जाने वाले पदों में राजस्व बोर्ड, मुख्य सूचना आयुक्त, राज्य नीति आयोग शामिल हैं। हालांकि, नीति आयोग के उपाध्यक्ष का चार्ज सरकार ने मुख्य सचिव अमिताभ जैन को दिया है। मगर यह टेम्पोरेरी व्यवस्था ही होगी। क्योंकि, चीफ सिकरेट्री के पास वर्क लोड इतना ज्यादा होता है कि उन्हें ज्यादा दिनों के लिए अतिरिक्त प्रभार नहीं दिया जा सकता। राजस्व बोर्ड में उमेश अग्रवाल के रिटायर होने के बाद से चेयरमैन का पद खाली है। रीता शांडिल्य अभी राजस्व बोर्ड का प्रभार देख रही हैं। सरकार के सामने दिक्कत यह है कि सीनियर लेवल के ऐसे अफसर नहीं, जो हाल में रिटायर हुए हो या रिटायर होने वाले हो। यही वजह है कि अधिकांश पद पिछली सरकार के समय से खाली हैं। राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद पिछले साल नवंबर में खाली था। राजस्व बोर्ड चेयरमैन, मुख्य सूचना आयुक्त, पीएससी चेयरमैन के पद पिछली सरकार के दौरान ही खाली हुई थी। ये तीनों प्रभार में चल रहा है। यदि यहां अफसर उपलब्ध नहीं हुए तो सरकार को दूसरे राज्यों से आयात करना पड़ेगा।

नीति आयोग में तीसरे सीएस

नीति आयोग में अभी तक तीन चीफ सिकरेट्री उपाध्यक्ष बन चुके हैं। इसमें पहला नाम सुनील कुमार का आता है। 2014 में सीएस से रिटायर होने के बाद रमन सरकार ने उन्हें 2015 में इस आयोग का उपाध्यक्ष बनाया था। सुनील 2015 से लेकर 2018 के विधानसभा चुनाव तक इस पद पर रहे। बीजेपी की पराजय के बाद सुनील ने इस्तीफा दे दिया था। फिर भूपेश बघेल सरकार ने मार्च 2019 में अजय सिंह की जगह सुनील कुजूर को चीफ सिकरेट्री बनाया और अजय को नीति आयोग में पोस्टिंग दी गई। वे 2020 में नीति आयोग से ही आईएएस से रिटायर हुए मगर उपाध्यक्ष का पद उनका बरकरार रहा। पिछले हफ्ते उन्हें राज्य निर्वाचन में शिफ्थ किया गया और अब नीति आयोग का प्रभार चीफ सिकरेट्री को दिया गया है।

डीजी की एक और डीपीसी

डीपीसी ने एडीजी अरुणदेव गौतम और हिमांशु गुप्ता को डीजी बनाने के लिए हरी झंडी दे दिया है। गृह मंत्रालय से फाइल अनुमोदन के लिए सीएम हाउस पहुंच गई है। फाइल गृह मंत्रालय में 15 दिन पड़ी रही और सीएम हाउस से खासतौर से बुलवाया गया है, इसलिए अब नहीं लगता कि इसमें विलंब होगा। दोनों अफसरों को डीजी बनाए जाने का आदेश कभी भी जारी हो सकता है। जांच की वजह से पवनदेव का लिफाफा बंद हो गया किन्तु उनका पद समाप्त नहीं किया गया है। याने उनके डीजी बनने की उम्मीदें खतम नहीं हुई है। बहरहाल, कोई व्यवधान नहीं आया तो अगस्त में डीजी के एक पद की डीपीसी और होगी। असल में, डीजीपी अशोक जुनेजा महीने भर बाद 4 अगस्त की शाम रिटायर हो जाएंगे। उसके बाद डीजी का एक पद वैकेंट हो जाएगा। इसके लिए 94 बैच के आईपीएस एसआरपी कल्लूरी दावेदार होंगे। इस बैच में तीन आईपीएस हैं। चूकि हिमांशु गुप्ता का रास्ता क्लियर हो गया है। हिमांशु के बाद जीपी सिंह आते हैं। जीपी की सेवा फिर से बहाल करने फाइल भारत सरकार गई है। उनके बाद कल्लूरी का नंबर है। अगर डीपीसी हुई तो फिर कल्लूरी को परिस्थितियों का लाभ मिल सकता है। मगर जीपी सिंह की सभी फाइले वंदे भारत के स्पीड से दौड़ गईं तो फिर कंपीटिशिन टफ हो जाएगा।

सांप गुजरने के बाद लकीर पीटना

कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार पर मंथन करने पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोईली को छत्तीसगढ़ भेजा है। चार दिन के दौरे में वे रायपुर के बाद आज बिलासपुर में हैं...फिर बस्तर जाएंगे। उनके दौरे पर कांग्रेस नेता ही तंज कस रहे हैं...काश पार्टी ने विधानसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ की सुध ले लिया होता, तो ये दिन नहीं देखने पड़ते। दरअसल, सूबे के सारे नेता आपस में ही एक-दूसरे को निबटाने में लगे रहे। पहले अपनो को टिकिट दिलाने और टिकिट न मिलने पर सामने वाले को हराने में ताकत झोंक दिया। रायपुर में डॉ0 राकेश गुप्ता का टिकिट काटने से बड़ा प्रमाण क्या होगा। उन्होंने चुनाव प्रचार शुरू कर दिया था। मगर पार्टी नेताओं ने किसी फर्जी एजेंसी के सर्वे के बहाने उनका टिकिट काट दिया। दर्जन भर से अधिक मामले ऐसे हुए, जिसे पार्टी संज्ञान लेकर उपयुक्त प्रत्याशियों को मैदान में उतार चुनाव का सीन बदल सकती थी। मगर पार्टी के जिम्मेदार लोग खुद ही गुटबाजी के दलदल में फंसे रहे। ऐसे में, सूबे के कांग्रेस नेताओं का यह कहना गलत नहीं है कि सांप गुजरने के बाद पार्टी अब दिखावे के लिए लकीर पीट रही है।

विलपावर बरकरार

मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद बृजमोहन अग्रवाल का पावर निश्चित तौर पर घट गया है मगर उनका विल पावर और सियासत में अपनी जगह बनाने का माद्दा कायम है। दिल्ली में पहली बार बीजेपी के सांसद नेशनल मीडिया पर नारे लगाते दिखे। दरअसल, स्पीकर के चुनाव के बाद लोकसभा में आपातकाल के खिलाफ संकल्प आया और इसके बाद इमरजेंसी का जिन्न एक बार फिर से जाग उठा। कुछ देर बाद बृजमोहन अग्रवाल टॉप के टीवी चैनलों पर आपातकाल के खिलाफ नारेबाजी करते नजर आए। उनके साथ में केंद्रीय राज्यमंत्री समेत पार्टी के सभी सांसद थे। दरअसल, स्टूडेंट पॉलिटिक्स से सियासत में आए बृजमोहन को पता है कि मीडिया में क्या बिकता है और कैसे अवसरों का इस्तेमाल करना चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या एसीएस सुब्रत साहू का प्रशासन अकादमी का वनवास खतम होगा...सरकार उन्हें कुछ कामकाज वाला विभाग देने जा रही है?

2. छत्तीसगढ़ के एक डीजी पुलिस का नाम बताइये, जिन्हें रिटायरमेंट के बाद एक केस में सस्पेंड होना पड़ा।

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