बिहार चुनाव 2025: कांग्रेस ने 8 भूमिहार समेत 19 सवर्ण उम्मीदवार उतारे, राजद के आधे से ज्यादा टिकट यादवों के नाम, जाने क्या है चुनावी समीकरण?

Bihar election 2025: बिहार चुनाव 2025 में कांग्रेस ने 8 भूमिहार समेत 19 सवर्ण उम्मीदवार उतारे, जबकि राजद ने आधे से ज्यादा टिकट यादवों को दिए। महागठबंधन ने नीतीश के ईबीसी वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति बनाई।

Update: 2025-10-18 08:17 GMT

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन राजद-कांग्रेस-वामदल गठजोड़ ने अपने कोर वोटबैंक को प्राथमिकता देते हुए सामाजिक समीकरण का विस्तार करने की रणनीति अपनाई है।

कांग्रेस ने सवर्ण और अल्पसंख्यक समुदायों पर भरोसा जताया है, जबकि राजद ने अपने परंपरागत यादव-मुस्लिम (MY) समीकरण को और मजबूत किया है। दोनों दलों की अब तक की उम्मीदवारों की सूची से यह साफ है कि महागठबंधन का फोकस एनडीए के ईबीसी अति पिछड़ा वर्ग वोट बैंक में सेंध लगाने का है।
कांग्रेस की पहली लिस्ट: 19 सवर्ण, 10 पिछड़ा वर्ग, 6 अति पिछड़ा वर्ग, 5 मुस्लिम उम्मीदवार
कांग्रेस ने अब तक 50 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं। इनमें सबसे अधिक 8 भूमिहार, 6 ब्राह्मण, और 5 राजपूत नेताओं को टिकट दिया गया है यानी कुल 19 सवर्ण उम्मीदवार।इसके अलावा पार्टी ने 10 पिछड़ा वर्ग (4 यादव, 1 कुर्मी, 1 गोस्वामी, 1 कुशवाहा, 3 वैश्य), 6 अति पिछड़ा वर्ग, 5 मुस्लिम, 9 अनुसूचित जाति (दलित) और 1 अनुसूचित जनजाति प्रत्याशी उतारे हैं।
पिछले चुनाव (2020) की तुलना में यह बदलाव साफ दिखता है। तब कांग्रेस ने 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें 34 सवर्ण, 10 मुस्लिम, 13 दलित, 10 पिछड़ा वर्ग और 3 अति पिछड़ा वर्ग थे। इस बार कांग्रेस ने जातीय विविधता को और संतुलित करने का प्रयास किया है।
राजद ने आधे से ज्यादा टिकट यादव समाज को दिए
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की अब तक की 51 उम्मीदवारों की सूची में 28 यादव उम्मीदवार शामिल हैं, यानी कुल उम्मीदवारों का आधे से ज्यादा हिस्सा यादव वर्ग से है। इसके अलावा 6 मुस्लिम उम्मीदवार भी मैदान में हैं। राजद ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी अपने परंपरागत MY वोट बैंक को केंद्र में रखकर ही चुनाव लड़ेगी, लेकिन साथ ही दलित और अति पिछड़ा वर्ग को भी टिकट देकर सामाजिक संतुलन बनाए रखेगी।
महागठबंधन का लक्ष्य: नीतीश के वोट बैंक में सेंध
ईबीसी (अति पिछड़ा वर्ग), जो बिहार की आबादी का लगभग 36 प्रतिशत हिस्सा है, पर महागठबंधन ने इस बार विशेष ध्यान दिया है। यह वर्ग परंपरागत रूप से जदयू और नीतीश कुमार का वोट बैंक माना जाता है। कांग्रेस, राजद, वामदल और वीआईपी सभी दलों ने इस वर्ग से कई प्रत्याशी उतारकर संकेत दिया है कि वह एनडीए के पारंपरिक समीकरण को तोड़ने की कोशिश में हैं।
राहुल गांधी ने हाल ही में पटना और राजगीर में ईबीसी वर्ग के साथ संवाद कर महागठबंधन के सामाजिक संदेश को और मजबूत करने की कोशिश की थी।
वामदलों ने भी साधा सामाजिक संतुलन
महागठबंधन के घटक वामदलों (CPI, CPI-M, CPI-ML) ने भी सामाजिक विविधता को प्राथमिकता दी है। तीनों दलों ने अब तक 29 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं 15 टिकट पिछड़ा वर्ग को,
8 दलितों को, 2 अल्पसंख्यक (मुस्लिम) को, 1 अति पिछड़ा वर्ग को, और 3 सवर्ण (2 भूमिहार, 1 राजपूत) को दिए गए हैं। वाम दलों की रणनीति यह है कि वे अपने पारंपरिक दलित-मजदूर आधार को बचाए रखते हुए महागठबंधन के जातीय संतुलन को पूरक बनाएं।
जाति समीकरण बनाम सर्वसमाज रणनीति
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बार महागठबंधन का टिकट वितरण एनडीए की तुलना में अधिक जातीय-संतुलित है। कांग्रेस सवर्ण+मुस्लिम+दलित समीकरण को सक्रिय करने में लगी है, वहीं राजद यादव+मुस्लिम+ईबीसी फॉर्मूला पर आगे बढ़ रही है। यह रणनीति नीतीश कुमार के पारंपरिक आधार को कमजोर करने की कोशिश है।
हालांकि, एनडीए की ओर से भाजपा और जदयू भी अपने-अपने EBC और महिला उम्मीदवारों पर जोर दे रही हैं, जिससे मुकाबला और दिलचस्प हो गया है।
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