आईपीएस मुकेश गुप्ता के खिलाफ मदनवाड़ा न्यायिक जांच आयोग की अनुशंसा पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने लगाई रोक

Update: 2022-09-26 13:38 GMT

रायपुर । मदनवाड़ा न्यायिक जांच आयोग के द्वारा निलंबित आईपीएस मुकेश गुप्ता के खिलाफ की गई अनुशंसा पर सुप्रीम कोर्ट ने स्थगन दे दिया है। मुकेश गुप्ता 1988 बैच के आईपीएस अफसर है जो इसी माह 30 तारीख को रिटायर्ड होने वाले हैं। लगभग साढ़े तीन वर्षों से निलंबित चल रहे मुकेश गुप्ता को हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बहाल किया है। साथ ही उनको डीजी से एडीजी रिवर्ट करने का मामला भी अदालत में लंबित है।

12 जुलाई 2009 को राजनांदगांव जिले के मदनवाड़ा में नक्सलियों ने एम्बुश लगा कर पुलिस पार्टी पर हमला कर दिया था। जिसमें तत्कालीन राजनांदगांव एसपी विनोद चौबे व 29 जवान शहीद हो गए थे। दिसंबर 2018 में राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी जिसके बाद 15 जनवरी 2020 को रिटायर्ड जस्टिस व प्रदेश के पूर्व लोकायुक्त शंभू नाथ श्रीवास्तव की अध्यक्षता में एकल सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था। आयोग ने अपने 109 पन्नो की रिपोर्ट शासन को करीबन 6 माह पहले सौप दी थी। रिपोर्ट में बताया गया है कि तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता खुद तो बुलेट फ्रूफ गाड़ी में बैठे रहे और एसपी विनोद चौबे व 29 जवानों को मरने के लिये नक्सलियों के बीच छोड़ दिया। इस दौरान उन्होंने न तो सीआरपीएफ की टीम से घटना स्थल में पहुँचने के लिए संपर्क साधा न सीएएफ़ की टीम से और खुद भी कुछ नही किया। नक्सलियों के डर से बुलेटप्रूफ गाड़ी में ही बैठे रहे। रिपोर्ट में मुकेश गुप्ता की भूमिका को संदिग्ध पाते हुए उन्हें नक्सली हमलें के लिए दोषी माना गया।

जांच आयोग की अनुशंसा पर रोक लगाने के लिए आईपीएस गुप्ता हाईकोर्ट पहुँचे थे। जहां बीते 12 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के सीनियर अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने बहस की थी। याचिका में उन्होंने अंतरिम राहत देते हुए आयोग की जांच रिपोर्ट पर रोक लगाने की मांग की थी। जस्टिस आरसीएस सामंत की सिंगल बैंच में हुई सुनवाई में उन्होंने अंतरिम आवेदन खारिज कर दिया था। जिसके बाद मुकेश गुप्ता सुप्रीम कोर्ट पहुँचे थे।

यहां चीफ जस्टिस यूयू ललित,जस्टिस रविंद्र भट्ट व जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच में मामले की सुनवाई हुई। मुकेश गुप्ता की तरफ से अधिवक्ता महेश जेठमलानी, विवेक शर्मा व रवि शर्मा ने पैरवी की। बहस में अदालत को बताया गया कि नियम यह कहता है कि जिसके खिलाफ फैसला दिया जा रहा है उसको नोटिस देकर उसका पक्ष जानने का मौका दिया जाएगा। पर याचिकाकर्ता को सुनवाई का मौका नही दिया गया। जो कि कमिश्नर ऑफ इंक्वायरी एक्ट के सेक्शन 8 ( बी) का उल्लंघन है।याचिकाकर्ता को सुनवाई के मौका दिए बिना व उनका पक्ष जाने बिना ही फैसला दे दिया गया है। जो न्याय संगत नही है। तर्कों को सुनने के पश्चात अदालत ने न्यायिक जांच आयोग के द्वारा मुकेश गुप्ता के खिलाफ की गई अनुशंसा पर स्थगन दे दिया है।

Tags:    

Similar News