Murder of journalists: छत्तीसगढ़ में पत्रकारों पर जानलेवा हमला और हत्या का थम नहीं रहा सिलसिला, न्‍यायधानी से बस्‍तर तक हत्‍याएं..

Murder of journalists: बेबाक रिपोर्टिंग और भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले पत्रकार छत्तीसगढ़ जैसे शांत प्रिय राज्य में सुरक्षित नहीं है। सुशील पाठक से लेकर मुकेश चंद्राकर की बेरहमी से की गई हत्या इस बात के पुख्ता प्रमाण है। बस्तर जैसे नक्सली क्षेत्र में लगातार हो रहे हमले और हत्या ने प्रेस की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के लिए खतरे की घंटी साबित हो रही है।

Update: 2025-01-04 15:19 GMT

Murder of journalists: बिलासपुर। सुशील पाठक की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। सरकंडा स्थित घर से चंद कदमों की दूरी पर तड़पते हुए उन्‍होंने जान दे दी थी। देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी भी हत्यारों को नहीं पकड़ पाई। तब बिलासपुर प्रेस क्लब ने लंबी अदालती लड़ाई लड़ी और पाठक और परिजनों को न्याय दिलाने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। हत्यारे सीबीआई की पकड़ से इतनी दूर चले गए कि सीबीआई को हाई कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट पेश करनी पड़ गई है। यह सीबीआई का सबसे बड़ा फैल्युअर था।

पत्रकार सुशील पाठक के 19 दिसंबर 2010 को हुए हत्याकांड के एक माह बाद ही 23 जनवरी 2011 को गरियाबंद के पत्रकार उमेश राजपूत की घर के सामने गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उमेश राजपूत गरियाबंद के छूरा के फिंगेश्वर रोड स्थित आमापारा में 23 जनवरी 2011 को शाम 6:30 बजे अपने घर के सामने खड़े थे। इस दौरान अज्ञात हमलावारों ने उमेश की गोली मारकर हत्या कर दी थी। मौके पर उमेश का करीबी दोस्त और पत्रकार शिव वैष्णव मौजूद था। पुलिस शिव वैष्णव को आरोपी और गवाह दोनों मानकर जांच कर रही थी। अफसोस की बात ये कि पुलिस आरोपियों की तलाश नहीं कर पाई। इस मामले में पहले एसपी और उसके बाद रायपुर रेंज के तत्कालीन आईजी जीपी सिंह ने आरोपियों का सुराग देने के लिए 30 हजार रूपये ईनाम रखा था।

उमेश के भाई ने हाई कोर्ट में दायर की थी याचिका

उमेश राजपूत के भाई ने अधिवक्ता सुधा भारद्वाज के माध्यम से हाई कोर्ट में सीबीआई जांच की मांब करते हुए याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट के निर्देश के बाद सीबीआई जांच शुरू हुई। हत्याकांड के साढे 5 साल बाद सीबीआई ने उमेश राजपूत के मित्र और चश्मदीद शिव वैष्णव और उसके बेटे विकास को ही हिरासत में लिया। पूछताछ के लिए मेडिकल करवाने के बाद सीबीआई दोनों को लेकर गई थी। इसी दौरान शिव वैष्णव ने सीबीआई हिरासत में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। मामले में दो और गवाहों की भी असमय मृत्यु हो चुकी थी। इसलिए मामला उलझ कर रह गया और अब तक मामले का खुलासा सीबीआई नहीं कर पाई।

 दो मामलों में सीबीआई को नहीं मिले हत्यारे

बता दे कि उमेश राजपूत से एक माह पूर्व हुए पत्रकार सुशील पाठक हत्याकांड के मामले में भी सीबीआई जांच हुई और सीबीआई किसी आरोपी का पता तलाश नहीं कर पाई तथा इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट पेश कर दी। सुशील पाठक हत्याकांड मामले में जांच कर रहे डीएसपी डीके राय और एक एएसआई को 10 लाख रुपये की वसूली के आरोप में सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। बता दे कि दोनों पत्रकारों के हत्याकांड के मामले में यह भी चर्चा रही थी कि दोनों के आरोपियों के तार एक ही जगह से जुड़े हैं।

 2018 में नक्सलियों ने की थी पत्रकार की हत्या:–

2018 में नक्सलियों ने पत्रकार की हत्या कर दी थी। 2018 विधानसभा चुनाव के समय नक्सलियों के इलाके में सड़क निर्माण के कार्य की कवरेज करने दिल्ली से दूरदर्शन की टीम आई थी। इसी टीम में वीडियो जर्नलिस्ट अच्युतानंद साही थे। यह टीम जवानों की सुरक्षा के बीच निलवाया गई हुई थी। वीडियो जर्नलिस्ट अच्युतानंद साही जंगल के अंदर निर्माणाधीन सड़क का वीडियो बना रहे थे। तभी नक्सलियों ने गोलीबारी शुरू कर दी। गोलीबारी में पत्रकार के अलावा तीन अन्य जवानों को भी गोली लगी। हमले में पत्रकार के अलावा तीनों जवान भी शहीद हो गए। हमले के बाद पत्रकार का कैमरा भी नक्सली अपने साथ ले गए थे।

 बस्तर में पांच पत्रकारों की गई जान

बीजापुर के मुकेश चंद्राकर सहित हाल के वर्षों में बस्तर में पांच पत्रकारों की हत्या हो चुकी है। साईं रेड्डी, विनोद बख्शी, मोहन राठौर और नेमीचंद जैन की इससे पहले जान ली जा चुकी है। मुकेश चंद्राकर की हत्या एक घटिया सड़क निर्माण की रिपोर्टिंग के चलते की जाने की बात सामने आई है। अपहरण के तीन दिन पहले उन्होंने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के खिलाफ खबर चलाई थी।

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