Bilaspur High Court: अनीता और सरिता की लड़ाई में चली गई अनुसूइया की नौकरी: हाईकोर्ट पहुंचा मामला, कोर्ट ने कहा...
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Bilaspur High Court: बिलासपुर। आंगनबाड़ी सहायिका की नियुक्ति में गड़बड़ी का आरोप लगाती हुई अनीता ने कलेक्टर राजनादगांव के समक्ष अपील पेश की थी। कलेक्टन के निर्देश पर मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने जांच शुरू की और तीसरी उम्मीदवार अनुसूइया की नियुक्त को रद कर दी। अनुसूइया के स्थान पर एक अन्य उम्मीदवार को नियुक्त कर दिया है। अनीता और सरिता की कानूनी लड़ाई में नौकरी गंवा बैठी अनुसूइया ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर गुहार लगाई है। मामले की सुनवाई जस्टिस गौतम भादुड़ी के सिंगल बेंच में हुई। कोर्ट ने कलेक्टर व कमिश्नर के आदेश को रद कर नए सिरे से दस्तावेजों की जांज करने का निर्देश दिया है।
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस भादुड़ी ने कहा है कि ऐसा प्रतीत होता है कि सीईओ जनपद पंचायत द्वारा मामले की जांच करते समय कलेक्टर के निर्देश का ध्यान नहीं रखा। याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए था। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन हुआ है। लिहाजा कलेक्टर के आदेश को रद किया जाता है। मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत राजनांदगांव को निर्देशित किया है कि याचिकाकर्ता एवं प्रमुख पक्षकार के दस्तावेजों का जांचकर नए सिरे से प्रक्रिया पूरी करने कहा है।
क्या है मामला
याचिकाकर्ता अनुसूइया बाई ने मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत राजनादगांव द्वारा चार अक्टूबर 2010 को जारी विज्ञापन के अनुसार ग्राम कुम्हलोरी के लिए आंगनबाडी सहायिका के पद के लिए आवेदन किया था। चयन प्रक्रिया पूरी होने पर 23 नवंबर 2011 को ग्राम कुम्हलोरी के वार्ड नंबर दो के लिए आंगनबाडी सहायिका के रूप में नियुक्त किया गया। एक अन्य महिला उम्मीदवार ग्राम कुम्हलोरी के वार्ड क्रमांक एक से सरिता को नियुक्त किया गया।
अनीता महार ने कलेक्टर के समक्ष सरिता की नियुक्ति को इस चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई के बाद कलेक्टर ने मुख्य कार्यपालन अधिकारी को जांच का निर्देश दिया था। सीईओ की रिपोर्ट के आधार पर कलेक्टर ने याचिकाकर्ता की नियुक्ति को रद कर दिया। कलेक्टर के आदेश को चुनौती देते हुए संभागायुक्त के समक्ष पुनरीक्षण दायर किया । मामले की सुनवाई के बाद कमिश्नर ने पुनरीक्षण को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि 24 जून 2013 को एक आदेश जारी कर उसे हटा गया। कार्रवाई से पहले उसे सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया। आला अधिकारियों ने प्राकृतिक न्याय सिद्धांत का उल्लंघन किया है।
एक शिकायत जिसने पूरे मामले को उलझाया
विवाद को जन्म अनीता महार की शिकायत के बाद हुआ। सरिता ने कुम्हलोरी के वार्ड नंबर एक के लिए आंगनबाडी कार्यकर्ता के रूप में आवेदन जमा किया था। सूची में नाम न आने के बाद उसने नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती देते हुए कलेक्टर के समक्ष आवेदन पेश किया था। कलेक्टर ने मामले की जांच के लिए सीईओ जनपद पंचायत को निर्देशित किया था। अनिता महार और सरिता के बीच विवाद में अनुसूइया की नौकरी चली गई।
हाई कोर्ट की टिप्पणी
कलेक्टर के निर्देशानुसार सीईओ जनपद पंचायत ने मामले की जांच की। जांच के दौरान आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में काम कर रही याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर दिया जाना था। नियुक्ति के दो साल बाद सुनवाई का अवसर दिए बिना उसकी सेवाएं कैसे समाप्त कर दी गईं। सीईओ ने यह नहीं बताया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सीईओ द्वारा नियमों को नजरअंदाज करना प्राकृतिक न्याय सिद्धांत का स्पष्ट उल्लंघन है। जब अधिकार किसी उम्मीदवार के पक्ष में अर्जित हो गया हो, तो सुनवाई का कोई अवसर दिए बिना सेवाएं समाप्त करना स्पष्ट रूप से प्राकृतिक न्याय के नियमों का उल्लंघन है।