NPG Special: अम्ब्रेला आरगेनाइजेशन होगा छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद…इसके अंतगर्त होगा फिल्म बोर्ड, साहित्य, कला, आदिवासी जैसी कई अकादमियां और शोध पीठ

Update: 2020-07-14 14:27 GMT

भूपेश बघेल कैबिनेट ने आज छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद के गठन को हरी झंडी दे दी। संस्कृति परिषद लोक कला और साहित्यिक गतिविधियों को संचालित करने वाला देश का पहला परिसर होगा, जिसमें लोक कला, साहित्य और सांस्कृतिक विविधताओं की झलक मिलेगी

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रायपुर, 14 जुलाई 2020। भूपेश बघेल कैबिनेट ने आज एक बड़ा फैसला लेते हुए छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद के गठन को मंजूरी दे दी। इस परिषद के अंतगर्त साहित्य अकादमी, लोक कला अकादमी, आदिवासी अकादमी का गठन किया जाएगा। छत्तीसगढ़ की लोक कला, साहित्य और लोक संस्कृति को अक्षुण्ण रखने की दिशा में यह अहम कदम माना जा रहा है।
मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद कई बार संस्कृति परिषद बनाने के बारे में बातें हुईं। मगर फैसला किसी मुकाम पर नहीं पहुंच पाया। आलम यह हुआ कि 19 साल गुजर जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ में साहित्य एवं लोक कला अकादमी का गठन नहीं हो पाया। मगर अब भूपेश सरकार ने इसके गठन का रास्ता साफ कर दिया है। पहली बार छत्तीसगढ़ में साहित्य और कला अकादमी का गठन किया जाएगा।
अफसरों का दावा है कि छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद न केवल भोपाल के साहित्य अकादमी से अलग होगा बल्कि एक बड़े अम्ब्रेला की शक्ल में देश का पहला परिषद होगा, जिसमें एक साथ लोक कला, साहित्य से जुड़ी कई अकादमियां और शोध पीठ संचालित की जाएंगी।
कैबिनेट के निर्णय के अनुसार संस्कृति परिषद के अंतगर्त साहित्य अकादमी, कला अकादमी, आदिवासी एवं लोक कला अकादमी, फिल्म विकास बोर्ड, राज भाषा आयोग, पं0 पदुमलाल पुन्नाला बख्शी सृजन पीठ, गुरू घासीदास शोध पीठ होगी। इसके साथ ही राज्य सरकार द्वारा दिए जाने वाले सारे पुरस्कार इसी परिषद द्वारा क्रियान्वित किए जाएंगे। राज्य के संस्कृति विभाग के अधीन यह परिषद काम करेगी।
मुख्यमंत्री इस परिषद के पदेन अध्यक्ष और संस्कृति मंत्री पदेन उपाध्यक्ष होंगे। इसके अलावा एक कार्यपरिषद का गठन किया जाएगा, जो विभिन्न गतिविधियों को संचालित करेगी। अफसरों का कहना है कि काबिल लोगों को संस्कृति परिषद से जोड़ा जाएगा। ताकि, यह परिषद देश में अपना अलग पहचान स्थापित कर सकें।
संस्कृति परिषद के गठन को मंजूरी मिलने से साहित्यकारों और लोक कलाकारों में बड़ी खुशी है। एक वरिष्ठ साहित्यकार ने अपनी पीड़ा इन शब्दों में व्यक्त की…संस्कृति विभाग अभी तक नाच, गाना में पूरा पैसा फूंक देता था। साहित्यिक गोष्ठी जैसे रचनात्मक काम कभी नहीं हुए।

छत्तीसगढ़ राज्य गठन होने के पहले छत्तीसगढ़ में सभी सांस्कृतिक गतिविधियां भोपाल से संचालित होती थीं। राज्य गठन के बाद छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा मिला। अनेक संस्थाएं भी स्थापित की गईं, लेकिन उनमें आपसी तालमेल का अभाव रहा। इन सब का परिणाम यह रहा कि सांस्कृतिक विकास की दिशा में जितनी ताकत के साथ प्रयास होने चाहिए थे, वे अब तक हो नहीं पाए। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने छत्तीसगढ़ की संस्कृति पर गर्व की अनुभूति जगाने की दिशा में शुरु से ही काम किया। छत्तीसगढ़ की महिलाओं के पर्व तीजा, किसानों के पर्व हरेली और गोवर्धन पूजा जैसे त्योहारों पर अवकाश की न सिर्फ घोषणा की, बल्कि इन त्योहारों को अपने निवास कार्यालय से मनाने की परंपरा की शुरुआत की। गोंड़ी, हल्बी भाषा में पाठ्य पुस्तकें तैयार कर स्कूलों में पढ़ाई शुरू करने का निर्णय लिया। खान-पान की संस्कृति को संरक्षित करने के लिए सभी जिलों में गढ़कलेवा की स्थापना का निर्णय लिया गया। लेकिन इन सबके बावजूद इन तमाम गतिविधियों को संगठित रूप में संचालित करने की आवश्यकता है, ताकि एक ही दिशा में संगठित रूप से काम हो सके, इसलिए एक समग्र मंच के रूप में छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद के गठन का निर्णय लिया गया है ।

छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद का मुख्य काम राज्य में साहित्य, संगीत, नृत्य, रंगमंच, चित्र एवं मूर्तिकला, सिनेमा और आदिवासी एवं लोककलाओं को प्रोत्साहन एवं उन्हें संरक्षण देना होगा। इसके लिए परिषद सांस्कृतिक विरासतों की पहचान, उनका संरक्षण एवं संवर्धन करेगा। सृजनशील संस्कृति के लिए मंचों, कला-संग्रहालयों, वीथिकाओं का विकास, प्रदेश में राष्ट्रीय स्तर के मंचों की स्थापना के साथ ही विभिन्न तरह के आयोजन करेगा। सांस्कृतिक संस्थाओं को सहयोग एवं प्रोत्साहन, सृजनकर्मियों को सम्मान तथा प्रोत्साहन, उत्कृष्ट सिनेमा निर्माण एवं प्रचार संबंधी कार्य करेगा।
प्रदेश में छत्तीसगढ़ी संस्कृति परिषद के जरिये जो एक और महत्वपूर्ण कार्य होगा, वह राष्ट्रीय स्तर के लब्ध प्रतिष्ठित कला, संस्कृति और शिक्षण से जुड़ी संस्थाओं से छत्तीसगढ़ का जीवंत संवाद स्थापित करना होगा। प्रदेश की संस्कृति नीति के अनुरूप स्कूली, उच्च शिक्षा सहित अन्य शासकीय विभागों से सामंजस्य स्थापित कर संस्कृति को बढ़ावा दिया जाएगा। साहित्यिक-सामाजिक विषयों पर शोध और सृजन में प्रोत्साहन और सहयोग दिया जाएगा। संस्कृतिकर्मियों व संस्थाओं को विभिन्न विधाओं के लिए दिए जाने वाले फैलोशिप, पुरस्कारों का संयोजन परिषद द्वारा किया जाएगा। छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद के अंतर्गत साहित्य अकादमी, कला अकादमी, आदिवासी लोक कला अकादमी, छत्तीसगढ़ फिल्म विकास निगम, छत्तीसगढ़ सिंधी अकादमी, छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग काम करेंगे।

लोक संग्रहालय भी बनेगा

छत्तीसगढ़ सांस्कृति परिषद में एक भव्य लोक कला संग्रहालय भी बनेगा। पुराने लोगों को पता है भोपाल के लोक संग्र्रहालय में आधे से अधिक छत्तीसगढ़ के आर्ट कल्चर हैं। छत्तीसगढ़ के आर्ट लोगों को आज भी काफी आकर्षित करते हैं।

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