International Women's Day: अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस पर विशेष: यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता

International Women's Day:

Update: 2024-03-07 07:38 GMT



चंद्रशेखर गंगराड़े, पूर्व प्रमुख सचिव छत्‍तीसगढ़ विधानसभा

प्रत्‍येक वर्ष पूरी दुनिया में 8 मार्च को अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर विश्व की समस्त नारी शक्ति को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं। आधिकारिक रूप से इसकी शुरूआत वर्ष 1921 में हुई लेकिन इसकी अनौपचारिक शुरूआत वर्ष 1909 में ही 28 फरवरी को न्‍यूयॉर्क में हो गई थी। वर्ष 1910 में इंटरनेशनल सोशलिस्‍ट कांग्रेस द्वारा महिला दिवस को अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर मनाने का निर्णय किया गया। 19 मार्च, 1911 को पहला अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस आयोजित किया गया बाद में 1921 में 19 मार्च के स्‍थान पर 8 मार्च को अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस का आयोजन किया जाने लगा। इसके साथ ही संयुक्‍त राष्‍ट्र की आम सभा द्वारा भी वर्ष 1975 से 8 मार्च को अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत की गई।

अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस के आयोजन एवं इसे मनाने का मुख्‍य उद्देश्‍य, महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण,समाज में उनको समानता का अवसर देना तथा उनके प्रति सम्‍मान प्रकट करना है। एक पुरूष होने के नाते भी मुझे यहां यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि न केवल विश्‍व में, अपितु भारत में भी महिलाओं की जनसंख्‍या लगभग आधी है लेकिन पूर्व में उन्‍हें पुरूषों के समक्ष, अधिकारों,समानता एवं सम्‍मान से वंचित रखा गया और यही कारण है कि महिलाओं को अपना अधिकार पाने के लिए आंदोलन करना पड़ा, तब जाकर उन्‍हें अनेक क्षेत्रों में उनके अधिकार प्राप्‍त हुए और समानता का अवसर भी मिला। हालांकि अभी-भी इस क्षेत्र में काफी कुछ किया जाना है।

भारतीय प्राचीन संस्कृति में महिलाओं के महत्‍व का काफी उल्‍लेख मिलता है और हमारे वेदों में यहां तक उल्‍लेख किया गया है कि- "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः" अर्थात् जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवताओं का वास होता है। सनातन धर्म में भी बुद्धि, लक्ष्‍मी और शक्ति की प्रतीक देवियां ही हैं। जिनकी हम आराधना कर उनसे बल, बुद्धि एवं ऐश्‍वर्य प्राप्ति की प्रार्थना करते हैं। समाज ने जैसे-जैसे महिलाओं की भागीदारी एवं उनकी महत्‍ता का अनुभव किया, राज्‍य सरकारों एवं केंद्र सरकार ने भी महिलाओं पर केंद्रित विभिन्न योजनाओं को लागू करना प्रारंभ किया जिससे महिलायें आर्थिक रूप से सुरक्षित रहें और जब महिलायें आर्थिक रूप से सुरक्षित एवं आत्‍मनिर्भर रहेंगी, तब उनका समाज में आदर एवं सम्‍मान भी रहेगा। महिलाओं की शक्ति को समझते हुए देर से ही सही भारत सरकार ने भी संसद एवं विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत स्‍थान आरक्षित करने का विधेयक पास कर दिया है, जिसके वर्ष 2029 में प्रभावशील होने की संभावना है। समाज के सर्वांगीण विकास में महिलाओं के योगदान को देखते हुए ही वर्ष 2024 में मनाये जाने वाले अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस की थीम- "इन्‍वेस्‍ट इन वुमन : एक्‍सीलेरेट प्रोग्रेस" अर्थात् महिलाओं में निवेश करें : प्रगति में तेजी लायें।

इस ध्येय वाक्य से ही महिलाओं की महत्ता स्थापित हो जाती है जिसका आशय है की यदि किसी राष्ट्र को तरक्की करना है तो महिलाओं की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भारतीय संस्‍कृति एवं समाज में महिलाओं का जो योगदान रहा है, उसकी महत्‍ता से इंकार नहीं किया जा सकता। महिलायें जिस कुशलता से अपने घर-परिवार की देखभाल करती हैं और बच्‍चों को जो संस्‍कार देती हैं, इससे वे अप्रत्‍यक्ष रूप से देश के भविष्य के निर्माण में अपना योगदान देती हैं। गृह-कार्य में उनके प्रबंधन को जो स्‍तर रहता है, उसका सीधा प्रभाव यदि वे राजनीतिक एवं प्रशासनिक क्षेत्र में कार्यरत हैं तो उनकी कार्य संस्कृति में परिलक्षित होता है एवं राजनीतिक तथा प्रशासनिक क्षेत्र में भी शुचिता परिलक्षित होती है जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव देश के आर्थिक, सामाजिक,शैक्षणिक विकास पर पड़ता है।

यद्यपि शासकीय सेवाओं में महिलाओं के लिए स्‍थान राज्‍य सरकारों द्वारा आरक्षित किये गये हैं और स्‍थानीय प्रशासन अर्थात् ग्राम-पंचायत, नगर-पंचायत, नगर-पालिका एवं नगर-निगमों में भी महिलाओं के लिए स्‍थान आरक्षित हैं लेकिन लोक सभा एवं विधान सभाओं में स्‍थान आरक्षित न होने के बावजूद, महिलाओं ने राजनैतिक क्षेत्र में अपनी जो अच्‍छी-खासी उपस्थिति दर्ज की है, यह उनके संघर्ष, साहस तथा आत्‍मविश्‍वास का द्योतक है।और मुझे विश्वास है कि जिस देश में महिलाओं को सम्मान मिलेगा और जिस देश की महिलायें जागरूक और आत्मनिर्भर होंगी वह देश विकास के पथ पर सदैव अग्रसर रहेगा।

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