Nalanda University: अचंभित करने वाला है नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास, पूरी दुनिया से छात्र आते थे पढ़ने, 9 मंजिला लाइब्रेरी में थीं 90 लाख किताबें

19 जून 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन किया। इसी के साथ पांचवीं शताब्दी में स्थापित नालंदा विश्वविद्यालय एक बार फिर सुर्खियों में आ गया। आज हम बताएंगे तक्षशिला के बाद दुनिया के दूसरे सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय का इतिहास और एक क्रूर शासक द्वारा की गई इसकी बर्बादी की कहानी।

Update: 2024-06-24 10:57 GMT

रायपुर, एनपीजी डेस्क। 19 जून 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन किया। इसी के साथ पांचवीं शताब्दी में स्थापित नालंदा विश्वविद्यालय एक बार फिर सुर्खियों में आ गया। आज हम बताएंगे तक्षशिला के बाद दुनिया के दूसरे सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय का इतिहास और एक क्रूर शासक द्वारा की गई इसकी बर्बादी की कहानी।

कुमारगुप्त प्रथम ने की थी नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना

नालंदा विश्वविद्यालय को दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय कहा जाता है, जिसकी स्थापना 427 ईस्वी में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। बाद में इसे हर्षवर्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। इतिसासकारों के अनुसार इस यूनिवर्सिटी में 300 कमरे, 7 बड़े हॉल और 9 मंजिला एक विशाल लाइब्रेरी थी। लाइब्रेरी में 90 लाख से अधिक किताबें हुआ करती थीं। यहां एक समय में 10 हजार से अधिक छात्र और 2,700 से ज्यादा शिक्षक थे।


योग्यता के आधार पर होता था स्टूडेंट्स का सिलेक्शन

यहां पढ़ाई के लिए स्टूडेंट्स का सिलेक्शन परीक्षा द्वारा किया जाता है। देश-दुनिया के योग्य छात्रों को यहां उनकी योग्यता के आधार पर एडमिशन दिया जाता था। इनके लिए शिक्षा, रहना और खाना निःशुल्क था। इस विश्वविद्यालय में भारत के साथ-साथ कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया जैसे देशों के छात्र अध्ययन करने के लिए आते थे।

पूरी दुनिया से छात्र आते थे पढ़ाई करने

अपनी स्थापना के करीब 700 साल बाद तक नालंदा यूनिवर्सिटी दुनियाभर में शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र बना रहा। इसे जैसी ख्याति मिली, फिर किसी विश्वविद्यालय को नहीं मिली। ये यूनिवर्सिटी, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और यूरोप की सबसे पुरानी बोलोग्ना यूनिवर्सिटी से 500 साल से भी ज्यादा पुरानी थी।


महान गणितज्ञ आर्यभट्ट छठवीं शताब्दी में थे विश्वविद्यालय के प्रमुख 

भारतीय गणित के जनक माने जाने वाले आर्यभट्ट के बारे में भी ये अनुमान है कि वे छठी शताब्दी की शुरुआत में नालंदा विश्वविद्यालय के प्रमुख थे। बता दें कि आर्यभट्ट ने ही शून्य को एक अंक के रूप में मान्यता दी थी, जिसने गणितीय कैलकुलेशन्स को आसान किया। अगर शून्य नहीं होता, तो आज शायद कम्प्यूटर भी नहीं होता। खगोल विज्ञान में भी उनका योगदान अहम था, वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कहा था कि चंद्रमा की अपनी रोशनी नहीं है।

यूनेस्को की वैश्विक धरोहर स्थल में शामिल 

नालंदा यूनिवर्सिटी विश्व धरोहर है। यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल किया। हालांकि खुदाई की गई यूनेस्को साइट 23 हेक्टेयर तक फैली हुई है, लेकिन मूल परिसर का ये एक अंश मात्र है।


बख्तियार खिलजी ने लगा दी नालंदा यूनिवर्सिटी में आग

इतिहासकारों के मुताबिक, तुर्क-अफगान सैन्य जनरल बख्तियार खिलजी एक समय बहुत ज्यादा बीमार पड़ गया था। उसके हकीमों ने बहुत इलाज किया, लेकिन वो ठीक नहीं सका। हकीमों ने उसे नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्रजी से इलाज कराने की सलाह दी। उसने आचार्य राहुल श्रीभद्रजी को बुलवा लिया। खिलजी ने उनसे इलाज करने को कहा, साथ ही शर्त लगा दी कि वो किसी भी हिंदुस्तानी दवाई को नहीं खाएगा। उसने ये भी कहा कि अगर वो ठीक नहीं हुआ, तो वो आचार्य की हत्या करा देगा। ऐसे में आचार्य ने इलाज के लिए अपनी सहमति दी।


कुरान के पन्नों पर लगाई थी दवाई

अगले दिन आचार्य उसके पास कुरान लेकर गए और कहा कि कुरान की पृष्ठ संख्या इतने से इतने तक पढ़िए ठीक हो जाएंगे। उसने पढ़ा और ठीक हो गया, लेकिन इससे उसे खुशी नहीं हुई, बल्कि बेहद गुस्सा आया कि उसके हकीम जो काम नहीं कर सके, वो भारतीय आयुर्वेदाचार्य ने कर दिया। बताया जाता है कि वैद्यराज राहुल श्रीभद्र ने कुरान के कुछ पन्नों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था। खिलजी पन्ने पलटते वक्त थूक के साथ दवाई को भी चाट गया और ठीक हो गया। इसके अलावा वो क्रूर शासक मूर्ति पूजकों का भी भारी विरोधी था। उसने ईर्ष्या में आकर 1199 में नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी। उसने हजारों धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुकों को मार डाला।

9 मंजिला लाइब्रेरी की किताबें महीनों तक जलती रहीं

इतिहासकारों के मुताबिक, वहां 9 मंजिला लाइब्रेरी में इतनी किताबें थीं कि वो करीब 3 महीने तक धू-धूकर जलती रही। लाइब्रेरी की बेशकीमती किताबों का नुकसान पूरे भारत और विश्व का नुकसान था। इतिहासकारों का कहना है कि अगर ये किताबें हमारे पास होतीं, तो भारत का भविष्य कुछ और होता। वहां बरसों के रिसर्च पेपर थे, जो जलकर खाक हो गए।

पुस्तकालय में ताड़ के पत्तों पर हस्तलिखित 90 लाख पांडुलिपियां दुनिया में बौद्ध ज्ञान का सबसे समृद्ध भंडार थीं। जब परिसर में आक्रमणकारियों ने आग लगाई तो अपनी जान बचाने में कामयाब कुछ बौद्ध कुछ हस्तलिखित पांडुलिपियां बचा पाए। उन्हें अब अमेरिका के लॉस एंजिल्स काउंटी म्यूजियम ऑफ आर्ट और तिब्बत के यारलुंग म्यूजियम में देखा जा सकता है। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन सांग ने 7वीं शताब्दी में नालंदा की यात्रा की थी। वे लंबे समय तक यहां रहे और अध्ययन किया और बाद में इस विश्वविद्यालय में एक विशेषज्ञ प्रोफेसर के रूप में काम किया।

ह्वेन सांग ने किया प्रचार-प्रसार

630 ईस्वी में भारत आए ह्वेन सांग 645 ईस्वी में चीन लौटे। वे अपने साथ नालंदा से 657 बौद्ध धर्मग्रंथों के लेकर गए थे। इन ग्रंथों में से बहुतों का उन्होंने चीनी भाषा में अनुवाद किया। यूनिवर्सिटी को जला देने के बाद ये गुमनामी में खो गया। 6 शताब्दियों की गुमनामी के बाद 1812 में स्कॉटिश सर्वेक्षक फ्रांसिस बुकानन-हैमिल्टन ने विश्वविद्यालय को फिर से खोजा। बाद में 1861 में सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने आधिकारिक तौर पर इसे प्राचीन विश्वविद्यालय के रूप में पहचाना था।

नालंदा में पुस्तकालय का नाम

नालंदा विश्वविद्यालय पुस्तकालय भवन में 3 बहुमंजिला इमारतें थीं। कुछ इमारतें नौ मंजिल ऊंची थीं। नालंदा में लाइब्रेरी का नाम रत्नसागर, रत्नोधि और रत्नरंजक था। ये सभी पुस्तकालय धर्मगंज नाम के परिसर में स्थित थे। लाइब्रेरी में जिसमें 90 लाख किताबें रखी जा सकती थीं। नालंदा विश्वविद्यालय के कुछ प्रसिद्ध छात्रों में हर्षवर्धन, नागार्जुन, वसुबंधु थे। इनमें से हर्षवर्धन कन्नौज साम्राज्य के सम्राट थे। बाद में बंगाल के गौड़ राजवंश द्वारा हमला किए जाने के बाद उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण कराया।

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में इन विषयों की होती थी पढ़ाई

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में साहित्य, ज्योतिष, मनोविज्ञान, कानून, खगोलशास्त्र, विज्ञान, युद्धनीति, इतिहास, गणित, वास्तुकला, भाषाविज्ञान, अर्थशास्त्र, चिकित्सा जैसे विषय पढ़ाए जाते थे। 

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