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Chhattisgarh Madku Dweep : छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर, जहाँ मानी जाती है “सत्यमेव जयते” की उत्पत्ति।

कग Madku Dweep: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर और मुंगेली जिले के बीच शिवनाथ नदी की गोद में बसा मड़कू (मदकू) द्वीप (Madku Dweep) प्राकृतिक खूबसूरती और सांस्कृतिक धरोहर का अद्भुत संगम है। लगभग 40 किलोमीटर दूर बिलासपुर से और करीब 80 किलोमीटर दूर रायपुर से स्थित यह द्वीप अपने हरे-भरे वातावरण, प्राचीन मंदिरों के खंडहरों और आध्यात्मिक महत्व के कारण विशेष पहचान रखता है।

Chhattisgarh Madku Dweep : छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर, जहाँ मानी जाती है “सत्यमेव जयते” की उत्पत्ति।
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By Chirag Sahu

Chhattisgarh Madku Dweep : छत्तीसगढ़ के बिलासपुर और मुंगेली जिले के बीच शिवनाथ नदी की गोद में बसा मड़कू (मदकू) द्वीप (Madku Dweep) प्राकृतिक खूबसूरती और सांस्कृतिक धरोहर का अद्भुत संगम है। लगभग 40 किलोमीटर दूर बिलासपुर से और करीब 80 किलोमीटर दूर रायपुर से स्थित यह द्वीप अपने हरे-भरे वातावरण, प्राचीन मंदिरों के खंडहरों और आध्यात्मिक महत्व के कारण विशेष पहचान रखता है।

कैसे पड़ा नाम और स्वरूप

मड़कू द्वीप का नाम इसके आकार से जुड़ा माना जाता है। यह द्वीप दूर से देखने पर मेंढक जैसा प्रतीत होता है, इसी कारण इसे “मड़कू” कहा जाता है। धार्मिक दृष्टि से इसे केदार तीर्थ और हरिहर क्षेत्र भी माना जाता है। स्थानीय मान्यता है कि यही वह स्थान है जहाँ ऋषि मांडूक्य ने मांडूक्य उपनिषद की रचना की थी। यही नहीं, “सत्यमेव जयते” जैसे पवित्र वाक्य की उत्पत्ति भी इसी भूमि से जुड़ी मानी जाती है।



पुरातात्विक महत्व

यह द्वीप केवल प्राकृतिक सौंदर्य ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक अवशेषों का भी भंडार है। यहाँ खुदाई के दौरान 19 छोटे शिव मंदिरों के अवशेष मिले हैं, जिनमें 18 पूर्व दिशा की ओर और एक पश्चिम दिशा की ओर मुख किए हुए हैं। ये मंदिर बलुआ पत्थर से बने थे और माना जाता है कि इनका निर्माण रतनपुर की कलचुरी वंश के शासनकाल में राजा प्रतापमल्ल द्वारा हुआ था।

इसके अलावा यहाँ से शिव, अष्टभुजी गणेश प्रतिमा , शिव-पार्वती, नंदी जैसे देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी मिली हैं। दो महत्वपूर्ण अभिलेख भी यहाँ पाए गए—एक ब्राह्मी लिपि में (तीसरी शताब्दी ईस्वी) और दूसरा शंखलिपि में। इन खोजों से मड़कू द्वीप की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता और भी स्पष्ट होती है।




पुनर्निर्माण और संरक्षण की कहानी

आज यहाँ मिले अधिकांश मंदिरों और अवशेषों को संरक्षित किया गया है। उन्हें मूल सामग्री के साथ एक शेड के नीचे दोबारा खड़ा किया गया है, हालांकि इनका मूल लेआउट और एकरूपता अब पहले जैसी नहीं है। इसके बावजूद यह जगह पुरातत्व प्रेमियों और पर्यटकों के लिए बेहद आकर्षक है।

धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर

मड़कू द्वीप का आध्यात्मिक महत्व केवल हिंदू परंपराओं तक सीमित नहीं है। यहाँ वर्ष 1909 से हर फरवरी में मसीही मेला आयोजित होता है, जिसमें पूरे छत्तीसगढ़ और बाहर से आए ईसाई समुदाय के लोग सम्मिलित होते हैं। इस तरह यह द्वीप धार्मिक सह-अस्तित्व और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है।




आधुनिक विकास और सुविधाएँ

हाल के वर्षों में मड़कू द्वीप पर आधारभूत ढांचे के विकास पर जोर दिया गया है। यहाँ पहुँचने के लिए सड़क मार्ग को बेहतर बनाया जा रहा है, सीढ़ियाँ और पक्के रास्ते तैयार किए जा रहे हैं। स्वच्छता और शौचालय जैसी सुविधाओं को भी पंचायत और स्वयं सहायता समूहों को सौंपा गया है, ताकि यात्रियों को आराम मिल सके।

कैसे पहुंचे मड़कू द्वीप

मड़कू द्वीप तक पहुँचना आसान है। यह बिलासपुर से मात्र 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और निकटतम रेलवे स्टेशन बिलासपुर जंक्शन है। यहाँ घूमने का सबसे उपयुक्त समय सर्दियों का होता है, यानी नवंबर से मार्च। बरसात के मौसम में यहाँ की हरियाली अद्भुत तो लगती है, लेकिन नदी का जलस्तर बढ़ने से पहुँचने में दिक्कतें हो सकती हैं।

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