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Bilaspur High Court- छत्तीसगढ़ के कर्मचारियों के हित में हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, निलंबन अवधि को माना जाएगा ड्यूटी का हिस्सा

Bilaspur High Court: बिलासपुर हाई कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार के विभिन्न विभागों में कार्यरत अधिकारी व कर्मचारियों के पक्ष में अहम फैसला सुनाया है। वन विभाग के एक कर्मचारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस बीडी गुरु के सिंगल बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा है कि निलंबन की अवधि को ड्यूटी का हिस्सा माना जाएगा। इस फैसले के साथ ही कोर्ट ने राज्य शासन के आदेश को रद्द कर दिया है। याचिकाकर्ता दिनेश सिंह राजपूत ने अधिवक्ता संदीप दुबे व आलोक चंद्रा के माध्यम से वन विभाग के फैसले को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की थी।

Bilaspur High Court: जो कुछ हो रहा है उसे इग्नोर भी तो नहीं किया जा सकता
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Bilaspur High Court

By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ वन मंडल में कार्यरत फॉरेस्टर दिनेश सिंह राजपूत की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट के सिंगल बेंच ने राज्य शासन के उस आदेश को खारिज कर दिया था जिसमें कर्मचारी के निलंबन अवधि को ड्यूटी का हिस्सा ना मानते हुए शत-प्रतिशत रिकवरी का आदेश जारी कर दिया था। मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस बीडी गुरु ने रिट याचिका को स्वीकार करते हुए राज्य शासन के आदेश को खारिज कर दिया है। जस्टिस गुरु ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए निलंबन अवधि को ड्यूटी का हिस्सा मानने की व्यवस्था दी है। जस्टिस गुरु ने अपने फैसले में लिखा है कि ऐसा प्रतीत होता है कि अनुशासनात्मक प्राधिकारी के साथ-साथ समीक्षा प्राधिकारी सहित अपीलीय प्राधिकारी ने निलंबन अवधि को कर्तव्य न मानने की सजा में हस्तक्षेप नहीं किया है, जबकि इसी तरह की स्थिति वाले कर्मचारियों के मामले में उन्होंने निलंबन अवधि को कर्तव्य के रूप में माना है जो प्रकृति में भेदभावपूर्ण प्रतीत होता है। याचिकाकर्ता दिनेश सिंह राजपूत ने अधिवक्ता संदीप दुबे व आलोक चंद्रा के माध्यम से वन विभाग के फैसल को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की थी।

याचिकाकर्ता दिनेश सिंह राजपूत वर्तमान में वन मंडल रायगढ़ में वनपाल के पद पर कार्यरत है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन एवं जलवायु परिवर्तन वन विभाग द्वारा 05.09.2022 के आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि बड़े दंड को छोटे दंड में बदल दिया गया है और निलंबन की अवधि को कर्तव्य नहीं माना गया है। याचिकाकर्ता ने छत्तीसगढ़ राज्य प्रमुख सचिव, छ.ग. वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के उस आदेश पर सवाल उठाया है जिसमें याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज करते हुए अपीलीय अधिकारी के आदेश को बरकरार रखा है।

0 क्या है मामला

याचिकाकर्ता दिनेश सिंह 02/01/2015 से 02/07/2019 तक एतमानगर रेंज के पोंडी सब-रेंज के अंतर्गत कोंकणा बीट के अतिरिक्त प्रभार के साथ बीट गार्ड बरौदखर के पद पर तैनात था। याचिकाकर्ता को तथ्य व जानकारी छिपाने और गुमराह करने के आरोप में 02/07/2019 से निलंबित कर दिया गया था।

पेड़ों की अवैध कटाई के संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत किया। रिपोर्ट के अध्ययन के बाद 8/5/2020 को मुख्य वन संरक्षक बिलासपुर वन वृत्त ने निलंबन आदेश को निरस्त कर दिया। विभागीय जांच लंबित रहने के दौरान याचिकाकर्ता को कटघोरा रेंज कार्यालय में विशेष ड्यूटी वन रक्षक के पद पर पदस्थ कर दिया। आदेश में यह भी उल्लेख किया गया कि निलंबन अवधि विभागीय जांच के साथ तय की जाएगी। याचिकाकर्ता ने बताया है कि उसे 312 दिनों अर्थात 10 माह 7 दिनों के लिए निलंबित रखा गया।

0 याचिकाकर्ता ने आला अफसरों पर भेदभावपूर्ण कार्रवाई का लगाया आरोप

विभागीय जांच में जांच अधिकारी ने आरोप को आंशिक रूप से प्रमाणित पाया तथा छग सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1966 के नियम 10(5) के अंतर्गत याचिकाकर्ता के वेतन से 17,467/- रूपये की वसूली करने के अलावा 3 वेतन वृद्धि संचयी प्रभाव से रोकने का आदेश जारी कर दिया।

पंकज कुमार खैरवार बीट गार्ड पोंड़ी, प्रीतम पुरैन बीट गार्ड तानाखार तथा उपपरिक्षेत्र अधिकारी अजय कुमार साय वनपाल पर भी यही दण्ड आरोपित करते हुए लकड़ी की हानि 88,879/- रूपये (1,48,131/- का 60% भाग), रुपए संचयी प्रभाव के बिना एक वार्षिक वेतन वृद्धि रोकने के दंड के साथ क्रमशः 3,533/- और 59,252/-/- (1,48,131/- का 40% भाग) का भुगतान किया गया। उनके मामले में निलंबन अवधि को कर्तव्य अवधि नहीं माना गया। याचिकाकर्ता ने विभाग के आला अधिकारियों पर भेदभावपूर्ण आदेश जारी करने का आरोप लगाया है। याचिका के अनुसार अपीलीय प्राधिकारी ने इस बात का कोई कारण नहीं पता लगाया कि उनका आचरण अन्य कर्मचारियों की तुलना में बड़े दंड के लिए उत्तरदायी क्यों है, जो छोटे दंड के लिए दंडित होते हैं। याचिकाकर्ता ने कहा है कि निलंबन अवधि पर निर्णय समान न्याय के अनुरूप नहीं है।

0 एक तरह के अपराध में अलग-अलग कार्रवाई क्यों

याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता संदीप दुबे ने कहा कि कुछ कर्मचारियों पर समान आरोप के आधार पर अनुशासनात्मक अधिकारियों ने वेतन वृद्धि रोकने और राशि की वसूली करके उनके साथ अलग व्यवहार किया, जबकि याचिकाकर्ता के मामले में अपीलीय प्राधिकारी ने वेतन वृद्धि रोकने और राशि की वसूली की सजा को बरकरार रखा।निलंबन अवधि को ड्यूटी पर न मानने का निर्देश देते हुए राशि की वसूली का निर्देश जारी किया गया है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा है कि समानता का सिद्धांत उन सभी पर लागू होता है जो समान स्थिति में है। यहां तक ​​कि उन व्यक्तियों पर भी जो दोषी पाए जाते हैं। इसलिए अपीलीय प्राधिकारी का आदेश जिसके द्वारा अपीलीय प्राधिकारी ने निलंबन की अवधि को ड्यूटी पर न मानने का निर्देश दिया है, पूरी तरह से अवैधानिक और भेदभावपूर्ण प्रकृति का है।

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