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Bilaspr High Court: हाई कोर्ट ने कहा: निष्पक्ष सुनवाई संवैधानिक और मानवीय अधिकार है, इसे छीना नहीं जा सकता, पढ़िए हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को क्या दिया है आदेश...

Bilaspr High Court: लकवा ग्रस्त पीड़ित को ट्रायल कोर्ट ने सिर्फ इसलिए गवाही देने का अधिकार छिन लिया, जिस दिन कोर्ट में उपस्थित होकर उसे गवाही देनी थी वह बीमार पड़ गया। कोर्ट में पीड़ित के अधिवक्ता ने इस बात की जानकारी भी दी, कोर्ट ने दोबारा मौका नहीं दिया और गवाही को आगे बढ़ा दिया। ट्रायल कोर्ट के इस फैसले को पीड़ित ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का भी हवाला दिया है। पढ़िए हाई कोर्ट ने अपने फैसले में क्या लिखा है।

Bilaspr High Court: हाई कोर्ट ने कहा: निष्पक्ष सुनवाई संवैधानिक और मानवीय अधिकार है, इसे छीना नहीं जा सकता, पढ़िए हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को क्या दिया है आदेश...
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By Radhakishan Sharma

Bilaspr High Court: बिलासपुर। ट्रायल कोर्ट ने आपराधिक प्रकरण की सुनवाई के दौरान लकवाग्रस्त पीड़ित को दोबारा गवाही देने का अवसर इसलिए नहीं दिया कि वह पूर्व निर्धारित तिथि में गवाही के लिए उपस्थिति नहीं था। जिस दिन उसकी गवाही वीसी के जरिए होनी थी, उस दिन वह बीमार पड़ गया था। अधिवक्ता ने इस बात की जानकारी ट्रायल कोर्ट को दी थी। इसके बाद भी कोर्ट ने दोबारा अवसर नहीं दिया और सुनवाई को आगे बढ़ा दिया। ट्रायल कोर्ट के फैसले को पीड़ित ने हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए दोबारा गवाही का अवसर देने की मांग की थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को दोबारा वीसी के जरिए सुनवाई का अवसर देने का निर्देश ट्रायल कोर्ट को दिया है।

मामला उदयपुर थाना क्षेत्र (सूरजपुर) के दंडागांव का है। मुकेश ठाकुर ने थाने में शिकायत दर्ज कराई थी कि झारखंड और बिहार के सात आरोपितों ने उसके पिता नंदकेश्वर ठाकुर पर प्राण घातक हमला किया था। आरोपियों के खिलाफ धारा 147, 294, 506(2), 307 व 149 आइपीसी के तहत पुलिस ने मामला दर्ज कर कोर्ट में चार्ज शीट पेश किया था। ट्रायल कोर्ट में मामले की सुनवाई चल रही है। पीड़ित लकवाग्रस्त होने के साथ ही उसकी उम्र 62 वर्ष है। पीड़ित के शारीरिक स्थिति और उम्र को देखते हुए कोर्ट ने वीसी के जरिए गवाही का आदेश दिया था। पीड़ित की गवाही के लिए कोर्ट ने 03 मई 2025 की तिथि तय की थी। उसकी तबियत खराब हो गई और वे गवाही देने नहीं जा पाए। पीड़ित के अधिवक्ता ने इस बात की जानकारी ट्रायल कोर्ट को दे दी थी। अधिवक्ता ने मेडिकल सर्टिफिकेट के साथ ही इलाज की पर्ची भी कोर्ट में पेश कर दी थी। इसके बाद भी कोर्ट ने गवाही के लिए दोबारा अवसर नहीं दिया।

0 कोर्ट ने कहा: न्याय का मूल उद्देश्य निष्पक्ष सुनवाई है

मामले की सुनवाई जस्टिस रविंद्र अग्रवाल के सिंगल बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस अग्रवाल ने अपने फैसले में लिखा है कि न्याय का मूल उद्देश्य निष्पक्ष सुनवाई ही है। यह सभी पक्ष के हित में होता है। आरोपी के अलावा पीड़ित और समाज सभी के लिए यह जरुरी है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि याचिकाकर्ता पीड़ित पक्ष को अपनी बात रखने का एक अवसर मिलनी ही चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि निष्पक्ष सुनवाई संवैधानिक और मानव अधिकार है, इसे छीना नहीं जा सकता।

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