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Bilaspur High Court: हाई कोर्ट ने कहा: जांच न्यायिक रूप से सिद्ध नहीं होता तब तक रिटायरमेंट बेनिफिट को रोकना असंवैधानिक है...

Bilaspur High Court: रिटायर डीईओ की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि जांच निष्कर्ष न्यायिक या वैधानिक रूप से सिद्ध नहीं होते, तब तक पेंशन, ग्रेच्युटी, अवकाश नकदीकरण और अन्य सेवानिवृत्त लाभों को रोका जाना असंवैधानिक है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है। रिटायर डीईओ बरनाबस बखला ने अधिवक्ता मतीन सि‌द्दीकी और अपूर्वा पांडे के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।

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Bilaspur High Court

By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। रायगढ़ जिले के रिटायर डीईओ बरनाबस बखला ने स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जारी रिकवरी आदेश को चुनौती देते हुए अधिवक्ता मतीन सि‌द्दीकी और अपूर्वा पांडे के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में इस बात की भी शिकायत की थी कि पूर्व के मामले में दोषी ठहराते हुए विभाग द्वारा पेंशन, ग्रेच्युटी, अवकाश नकदीकरण और अन्य सेवानिवृत्त लाभों से वंचित किया जा रहा है। मामले की सुनवाई जस्टिस बीडी गुरु के सिंगल बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने विभाग द्वारा जारी कर आदेश को रद्द करते हुए रिटायरमेंटल बेनिफिट की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया है।

याचिकाकर्ता ने अपने सेवा-काल के कार्यों के संबंध में जांच समिति द्वारा लगाए गए वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों को चुनौती दी थी। याचिका में राज्य शासन द्वारा उनकी पेंशन, ग्रेच्युटी और अवकाश नकदीकरण की राशि रोके जाने के निर्णय को असंवैधानिक और नियम विरुद्ध बताया है। मामले की सुनवाई जस्टिस बीडी गुरु के सिंगल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता मतीन सिद्धीकी ने कहा कि विचाराधीन आदेश वसूली आदेश नहीं है और याचिकाकर्ता से कोई वसूली नहीं की जा सकती है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने बताया कि वर्ष 2017 में भारत सरकार के द्वारा 'राष्ट्रीय पुस्तकालय मिशन' के अंतर्गत रायगढ़ जिला ग्रंथालय के सुधार और तकनीकी उन्नयन के लिए 87 लाख की राशि स्वीकृत की गई थी। जिसमें 30 लाख तकनीकी उन्नयन के लिए खर्च किया जाना था। इस परियोजना के कार्यान्वयन के दौरान याचिकाकर्ता जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर कार्यरत थे।

कमेटी ने आपराधिक प्रकरण दर्ज कराने कलेक्टर से की थी सिफारिश

याचिकाकर्ता की सेवानिवृत्ति के बाद कलेक्टर रायगढ़ ने एक तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की। जांच रिपोर्ट में याचिकाकर्ता के कार्यकाल में तकनीकी उन्नयन के दौरान वित्तीय अनियमितता का खुलासा करते हुए अतिरिक्त भुगतान की वसूली तथा आपराधिक मामला दर्ज करने की जांच कमेटी ने कलेक्टर से सिफारिश की थी।

डीईओ रायगढ़ की धमकी भरी चिट्ठी

कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर डीईओ रायगढ़ ने 24 अप्रैल 2025 को आदेश जारी कर याचिकाकर्ता को 15 दिनों के भीतर अतिरिक्त भुगतान करने के अलावा सिंघानिया ग्रुप एवं इंडस्ट्रीज द्वारा आपूर्ति की गई सामग्री की पावती प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। डीईओ ने अपने आदेश में यह भी लिखा है कि गड़बड़ी के लिए वह व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी है। वह वित्तीय और प्रशासनिक नियमों के उल्लंघन का दोषी है। डीईओ रायगढ़ ने याचिकाकर्ता को उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की चेतावनी भी दी थी।

अधिवक्ता मतीन ने कहा- रिटायरमेंट के बाद आरोपित नहीं किया जा सकता दायित्व

मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता मतीन सिद्धीकी ने कोर्ट को बताया कि कलेक्टर रायगढ़ के निर्देश पर डीईटो द्वारा यह संपूर्ण प्रक्रिया रिटायर अधिकारी को बिना किसी विभागीय अनुशासनात्मक कार्यवाही के प्रताड़ित करने की मंशा से की गई है। नियमों का हवाला देते हुए अधिवक्ता ने कहा कि नियमों के तहत सेवानिवृत्ति के पश्चात केवल विधिसम्मत प्रक्रिया (Rule 9(2) (b) of the Chhattisgarh Civil Services Pension Rules, 1976) के अंतर्गत ही कोई दायित्व आरोपित किया जा सकता है। जब तक जांच निष्कर्ष न्यायिक या वैधानिक रूप से सिद्ध नहीं होते, तब तक पेंशन, ग्रेच्युटी, अवकाश नकदीकरण राशि और अन्य सेवानिवृत्त लाभों को रोका जाना असंवैधानिक है और यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है। याचिका की सुनवाई के बाद कोर्ट ने डीईओ रायगढ़ द्वारा जारी आदेश को रद्द कर दिया है।

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