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Bilaspur High Court: मकान मालिक-किराएदार विवाद पर हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला जो बना नजीर

Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ में मकान मालिक और किराएदार के बीच होने वाले विवाद को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने विवाद के निपटारा के लिए प्राधिकरण को मामला वापस भेजने का निर्देश देते हुए गुणदोष के आधार पर प्राधिकरण को फैसला सुनाने का निर्देश दिया है। बता दें कि जस्टिस रजनी दुबे व जस्टिस बीडी गुरु का यह फैसला नजीर बन गया है।

Bilaspur High Court: मकान मालिक-किराएदार विवाद पर हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला जो बना नजीर
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। मकान मालिक व किराएदार के बीच किराया विवाद को लेकर ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने कहा है कि प्रक्रियागत दोष और अनियमितताएं, जिनका समाधान संभव है, को मूल अधिकारों को पराजित करने या अन्याय का कारण बनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। डिवीजन बेंच ने ट्रिब्यूनल को निर्देशित किया है कि मामला वापस प्राधिकरण को भेजे। याचिकाकर्ता व प्रमुख पक्षकार को प्राधिकरण के समक्ष नए से सिरे से अभ्यावेदन पेश करने का निर्देश दिया है। अभ्यावेदन पर गुणदोष के आधार पर प्राधिकरण फैसला सुनाया। जरुरी दिशा निर्देशों के साथ डिवीजन बेंच ने याचिका का निपटारा कर दिया है।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत मकान मालिक कृष्ण कुमार कहार व अन्य ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से छत्तीसगढ़ किराया नियंत्रण न्यायाधिकरण, रायपुर द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है। याचिका में कहा है कि न्यायाधिकरण ने किरायेदार दशोदा बाई धीवर की अपील को स्वीकार कर लिया है और किराया नियंत्रण प्राधिकरण अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) द्वारा पारित 12-12-2022 के आदेश को रद्द कर दिया है। जिसके द्वारा प्राधिकरण ने प्रतिवादी को बेदखल करने के संबंध में आदेश पारित किया है और याचिकाकर्ताओं को किराए के बकाया के रूप में 28,000/- रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है।

याचिकाकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ किराया नियंत्रण अधिनियम, 2011 (इसके बाद से अधिनियम, 2011) के तहत प्राधिकरण/एसडीएम राजस्व चांपा के समक्ष प्रतिवादियों को बेदखल करने के लिए एक आवेदन पेश किया था। जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ यह तर्क दिया गया कि विवादित भूमि खसरा नंबर 1507/29 क्षेत्रफल 0.10 जिसमें एक घर है, याचिकाकर्ताओं कृष्ण कुमार कहार व शोभना कुमारी ने राम प्रसाद विश्राम से खरीदा था। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने उक्त घर को दशोदा बाई धीवर को 4,000/- रुपये मासिक किराए पर दे दिया था। हालांकि दशोदा बाई धीवर शुरू से ही किराया चुकाने में विफल रही और याचिकाकर्ता द्वारा बार-बार अनुरोध के बावजूद उसे घर खाली करने से मना कर दिया गया। उक्त तथ्यों के आधार पर, प्राधिकरण ने दशोदा बाई को नोटिस जारी किया। नोटिस प्राप्त होने के बाद वह उपस्थित हुई और उसने याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए तर्क को अस्वीकार कर दिया तथा कहा कि किसी समझौते के अभाव में याचिकाकर्ता का आवेदन स्वीकार्य नहीं है।

एसडीएम ने किराएदार को बेदखली का दिया आदेश

दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद, प्राधिकरण/एसडीओ राजस्व ने 12-12-2022 को एक आदेश पारित किया, जिसमें दशोदा बाई को बेदखल करने और याचिकाकर्ताओं को किराए के बकाया के रूप में 28,000/- रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया। उक्त आदेश से व्यथित होकर, दशोदा बाई ने न्यायाधिकरण के समक्ष अधिनियम, 2011 की धारा 13 के तहत अपील दायर की।

एसडीएम के आदेश को न्यायाधिकरण ने किया खारिज

मामले की सुनवाई के बाद न्यायाधिकरण ने एसडीएम के आदेश को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि एसडीएम द्वारा अधिनियम, 2011 के तहत उल्लिखित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और अधिनियम, 2011 के प्रावधानों के उल्लंघन में कार्यवाही की गई। सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने कहा कि अधिनियम, 2011 की धारा 10 में किराया नियंत्रक और किराया नियंत्रण न्यायाधिकरण द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के बारे में बताया गया है। उपर्युक्त प्रावधान के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि इस अधिनियम के तहत अपने कार्यों का निर्वहन करने के उद्देश्य से किराया नियंत्रक और किराया नियंत्रण न्यायाधिकरण के पास वही शक्तियां हैं जो किसी मुकदमे या अपील की सुनवाई करते समय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत सिविल न्यायालय में निहित हैं। रिकॉर्ड से यह भी स्पष्ट है कि प्राधिकरण ने अधिनियम, 2011 की धारा 10 के तहत उल्लिखित प्रक्रिया का पालन नहीं किया है और इसलिए न्यायाधिकरण ने सही ढंग से माना है कि प्राधिकरण प्रदान की गई प्रक्रिया का पालन करने में विफल रहा है।

हाई कोर्ट ने कहा, ट्रिब्यूलन को मामला प्राधिकरण को भेजना था वापस

हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा है कि न्यायाधिकरण द्वारा की गई टिप्पणी में कोई अवैधानिकता या त्रुटि नहीं है, लेकिन न्यायाधिकरण ने मामले को वापस न्यायाधिकरण को भेजने की बजाय प्राधिकरण/एसडीओ को नए सिरे से निर्णय के लिए भेजने के लिए कहा, इस तथ्य की सराहना किए बिना प्राधिकरण के आदेश को रद्द कर दिया कि प्राधिकरण/ एसडीएम द्वारा किए गए किसी भी गलत काम और किसी भी प्रक्रियात्मक दोष को उस पक्षकार के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए, जिसने किसी विशेष क़ानून के तहत प्राधिकरण से संपर्क किया है। ट्रिब्यूनल को याचिकाकर्ता, जो एक मकान मालिक है, द्वारा दायर आवेदन पर नए सिरे से निर्णय के लिए मामले को प्राधिकरण/एसडीओ (आर) को वापस भेजना चाहिए था।

डिवीजन बेंच की महत्वपूर्ण टिप्पणी, अधिकारों को लेकर ये कहा

यह सामान्य कानून है कि प्रक्रियागत दोष अनियमितता के दायरे में आ सकता है और उसे ठीक किया जा सकता है, लेकिन इसे उचित अवसर दिए बिना याचिकाकर्ता को प्राप्त मूल अधिकार को नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

डिवीजन बेंच ने कहा है कि मामले के उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए तथा वर्तमान मामले के तथ्यों पर कानून के सुस्थापित सिद्धांतों को लागू करते हुए, रिट याचिका का निपटारा इस निर्देश के साथ किया जाता है कि याचिकाकर्ता किराया नियंत्रण प्राधिकरण के समक्ष अधिनियम, 2011 के अंतर्गत एक नया आवेदन दायर करेगा तथा उस पर कानून के अनुसार तथा उसके गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाएगा तथा निर्णय लिया जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस न्यायालय ने मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की है और किराया नियंत्रण प्राधिकरण इस आदेश में की गई किसी भी टिप्पणी को मामले के गुण-दोष पर राय के रूप में न मानते हुए, उस पर निर्णय लेगा। डिवीजन बेंच ने प्राधिकरण को सुनवाई का निर्देश देते हुए याचिका का निपटारा कर दिया है।

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