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Bilaspur High Court: जाति प्रमाण पत्र की वैधता को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

Bilaspur High Court: जाति प्रमाण पत्र की वैधता और जाति छानबीन समिति के कार्य और अधिकार को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति के आदेश को रद करते हुए सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के तहत याचिकाकर्ता के जाति प्रमाण पत्र को आदेश की प्राप्ति के छह महीने के भीतर सत्यापित करने का आदेश उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति को दिया है। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की है कि जाति जांच समिति को एक अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण के रूप में कार्य करना होता है, जिसके लिए न केवल प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना आवश्यक होता है, बल्कि इसके द्वारा एकत्रित प्रत्येक सामग्री को उस व्यक्ति के समक्ष प्रकट करना भी आवश्यक होता है, जिसके विरुद्ध जांच की जा रही है।

Bilaspur High Court: जाति प्रमाण पत्र की वैधता को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। जाति प्रमाण पत्र की वैधता और जाति छानबीन समिति के कार्य और अधिकार को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति के आदेश को रद करते हुए सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के तहत याचिकाकर्ता के जाति प्रमाण पत्र को आदेश की प्राप्ति के छह महीने के भीतर सत्यापित करने का आदेश उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति को दिया है। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की है कि जाति जांच समिति को एक अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण के रूप में कार्य करना होता है, जिसके लिए न केवल प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना आवश्यक होता है, बल्कि इसके द्वारा एकत्रित प्रत्येक सामग्री को उस व्यक्ति के समक्ष प्रकट करना भी आवश्यक होता है, जिसके विरुद्ध जांच की जा रही है।

याचिकाकर्ता लक्ष्मी नारायण महतो ने उच्चाधिकार प्राप्त जाति छानबीन समिति (इसके बाद से समिति) द्वारा 09/01/2015 को पारित आदेश पर प्रश्न उठाया है, जिसके द्वारा याचिकाकर्ता के पक्ष में संभागीय संगठक, रायपुर द्वारा 06/02/1982 को जारी जाति प्रमाण पत्र को यह कहते हुए रद्द कर दिया गया है कि याचिकाकर्ता ने गड़रिया जाति, जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित है, से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत करके अनुसूचित जनजाति (एसटी) का उक्त जाति प्रमाण पत्र प्राप्त किया था और नियुक्ति प्राप्त की थी।

क्या है मामला

याचिकाकर्ता लक्ष्मी नारायण महतो वर्ष 1983 में डाक विभाग में डाक सहायक के पद पर नियुक्त हुआ और उसके बाद निरीक्षक के पद पर पदोन्नत हुआ। याचिकाकर्ता के अनुसार वह धनगढ़ जाति का है, जो विधिवत अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित है।उसके पक्ष में 6 फरवरी 1982 को जाति प्रमाण पत्र जारी किया गया था। सेवा अवधि के दौरान, उसे विभाग द्वारा विधिवत सत्यापित जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था। उक्त निर्देश के पालन में उसने एक अगस्त 1992 को तहसीलदार महासमुंद से जाति प्रमाण पत्र प्राप्त किया । इस बीच उसकी जाति के संबंध में कुछ लोगों ने शिकायतें की। इसी आधार पर विभाग ने कलेक्टर से प्रतिवेदन मांगा। विस्तृत जांच करने के बाद, याचिकाकर्ता की जाति, जो एसटी की श्रेणी में आती है, को सत्यापित करते हुए कार्यालय कलेक्टर (आदिम जाति कल्याण) रायपुर द्वारा 11 मार्च 1999 को प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। यहां तक कि पुलिस अधीक्षक के समक्ष की गई कार्यवाही भी यह पाते हुए कि याचिकाकर्ता ने जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने में कोई अपराध नहीं किया है, मामला खारिज कर दिया गया। इस बीच डाक विभाग के मुख्य अधीक्षक ने याचिकाकर्ता के जाति सत्यापन के संबंध में कलेक्टर कार्यालय को प्रतिवेदन भेजा था। अतिरिक्त कलेक्टर ने कहा कि याचिकाकर्ता का जाति प्रमाण पत्र असली है। याचिकाकर्ता ने बताया कि धनकर/धनगढ़ जाति छत्तीसगढ़ राज्य में एसटी की श्रेणी के तहत विधिवत अधिसूचित है और इसमें धनगढ़/गढरिया भी शामिल है, जिस पर छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग ने विधिवत विचार किया है। सरकार द्वारा अधिसूचित 'धनगढ़' शब्द के भीतर इसे शामिल करने की सिफारिश की है।

उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति ने जाति प्रमाण को कर दिया रद्द

विभाग ने याचिकाकर्ता की जाति के सत्यापन के लिए मामले को समिति को भेज दिया। इसकी प्राप्ति के बाद उच स्तरीय जाति छानबीन समिति ने याचिकाकर्ता को नोटिस जारी किया, जिस पर याचिकाकर्ता ने अपना जवाब प्रस्तुत किया और कहा कि उसने कोई अवैधानिक कार्य नहीं किया है। इसके बाद, समिति ने याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत सुनवाई के लिए बुलाया, जिसमें उसने सभी दस्तावेज प्रस्तुत किए और कहा कि वह धनगढ़ जाति से हैं और वह एसटी से संबंधित है। उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति ने याचिकाकर्ता के अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र को रद्द कर दिया। साथ ही याचिकाकर्ता के खिलाफ गलत जानकारी के आधार पर अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाण पत्र हासिल करने के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश जारी कर दिया।

जाति प्रमाण पत्र के सत्यापन को लेकर कोर्ट ने यह कहा

17-8-2012 को प्रवर अधीक्षक, डाकघर, रायपुर ने याचिकाकर्ता की जाति के सत्यापन हेतु समिति से अनुरोध किया तथा 17-12-2012 को समिति ने मामले को जांच हेतु सतर्कता प्रकोष्ठ को भेज दिया। तत्पश्चात 30-3-2013 को पूर्व समिति को हटाकर नई उच्च स्तरीय जाति जांच समिति गठित की गई। समिति द्वारा कार्यवाही अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत की गई है। अतः चूंकि समिति ने अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत कार्यवाही की है, अतः यह अधिनियम, 2013 तथा नियम, 2013 के अन्तर्गत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने के लिए बाध्य है। इस तथ्य की जांच के लिए कि समिति ने अधिनियम, 2013 और नियम, 2013 के अंतर्गत उल्लिखित प्रक्रिया का पालन किया है या नहीं, अधिनियम, 2013 की धारा 6, 7 और 15 तथा नियम, 2013 के नियम 14 से 23 के प्रावधानों को देखना होगा।

जिला स्तरीय प्रमाण पत्र सत्यापन समिति और उसकी शक्तियां.--

(1) एक जिला स्तरीय प्रमाण पत्र सत्यापन समिति होगी, जिसकी संरचना धारा 4 के अधीन सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी सामाजिक स्थिति प्रमाण पत्र के सत्यापन के लिए विहित की जा सकेगी, जिसे राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किया जा सकेगा और जिसका अधिकार क्षेत्र एक या एक से अधिक जिलों पर होगा।

(2) जिला स्तरीय प्रमाण-पत्र सत्यापन समिति स्वप्रेरणा से या सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी सामाजिक स्थिति प्रमाण-पत्र के संबंध में उसे दी गई किसी सूचना या संदर्भ की प्राप्ति पर, ऐसे प्रमाण-पत्रों का सत्यापन उस तरीके से करेगी, जैसा कि निर्धारित किया जा सकता है, बशर्ते कि किसी नियोक्ता, किसी शैक्षिक संस्थान, किसी स्थानीय प्राधिकरण, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, जैसी भी स्थिति हो, द्वारा सामाजिक प्रास्थिति प्रमाणपत्र के सत्यापन के लिए जिला स्तरीय प्रमाणपत्र सत्यापन समिति को किया गया संदर्भ ऐसे प्ररूप में और ऐसी रीति में होगा। जिला प्रमाणपत्र सत्यापन समिति का यह कर्तव्य होगा कि वह संदर्भ की प्राप्ति की तारीख से एक माह की अवधि के भीतर, नियोक्ता, शैक्षिक संस्थान, स्थानीय प्राधिकरण, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, जैसी भी स्थिति हो, को अपने निष्कर्षों की रिपोर्ट दे।

(3) जहां प्रथम दृष्टया यह मानने का कारण हो कि सामाजिक स्थिति प्रमाण पत्र गलत तरीके से या धोखाधड़ी से प्राप्त किया गया है, जिला स्तरीय प्रमाण पत्र सत्यापन समिति अपने निष्कर्षों के रिकॉर्ड के साथ सभी जानकारी और प्रासंगिक दस्तावेजों को उच्च शक्ति प्रमाणन जांच समिति को भेजेगी, बशर्ते कि जहां जिला स्तरीय प्रमाण-पत्र सत्यापन समिति किसी प्रतिकूल निष्कर्ष पर पहुंचती है, वहां वह मामले को उच्चाधिकार प्राप्त प्रमाणीकरण जांच समिति को तब तक नहीं भेजेगी जब तक कि उस व्यक्ति को सुनवाई का उचित अवसर नहीं दे दिया जाता, जिसका सामाजिक स्थिति प्रमाण-पत्र विवादित है।

(4) जिला स्तरीय प्रमाण पत्र सत्यापन समिति सामाजिक स्थिति प्रमाण पत्रों के सत्यापन के लिए ऐसी प्रक्रिया का पालन करेगी और इसके लिए ऐसी समय सीमा का पालन करेगी।

उच्च शक्ति प्रमाणन जांच समिति.--

(1) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, धारा 6 के अधीन जिला स्तरीय प्रमाण-पत्र सत्यापन समिति या राज्य सरकार द्वारा उसे निर्दिष्ट सामाजिक स्थिति प्रमाण-पत्र(ओं) की जांच करने के लिए एक या एक से अधिक उच्च शक्ति प्रमाणन जांच समिति या समितियों का गठन करेगी और उच्च शक्ति प्रमाणन जांच समिति का यह कर्तव्य होगा कि वह जिला स्तरीय प्रमाण-पत्र सत्यापन समिति की रिपोर्ट की जांच करे और इस अधिनियम के अध्याय IV के अधीन विहित रूप में इस मामले में आगे बढ़े।

(2) उच्चाधिकार प्राप्त प्रमाणन जांच समिति ऐसी प्रक्रिया का पालन करेगी, जो विहित की जाए: बशर्ते कि जहां उच्च शक्ति प्रमाणन जांच समिति किसी प्रतिकूल निष्कर्ष पर पहुंचने का निर्णय लेती है, वह तब तक ऐसा नहीं करेगी जब तक कि उस व्यक्ति को सुनवाई का उचित अवसर नहीं दे दिया जाता है जिसका सामाजिक स्थिति प्रमाणपत्र विवादित है।

हाई कोर्ट का आदेश

मामले की सुनवाई जस्टिस बीडी गुरु की सिंगल बेंच में हुई। सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता के याचिका को स्वीकार करते हुए उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति के फैसले को रद करते हुए समिति को निर्देशित किया है कि याचिकाकर्ता के जाति प्रमाण पत्र को सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों और अधिनियम, 2013 और नियम, 2013 के अनुसार इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से छह महीने की अवधि के भीतर सत्यापित करे।

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