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Bilaspur High Court: हाई कोर्ट पहुंचा मामला- भिलाई विधायक देवेन्द्र यादव के भाई पर सरकारी जमीन पर कब्जा करने का आरोप

Bilaspur High Court: बलौदाबाजार-भाटापारा जिला मुख्यालय में कलेक्टोरेट सहित सरकारी भवनों में आगजनी और हिंसा भड़काने के आरोप में जेल में बंद भिलाई के विधायक देवेंद्र यादव के भाई धर्मेंद्र यादव के खिलाफ एक मामला हाई कोर्ट पहुंच गया है। सरकारी जमीन पर कब्जा करने और बेदखली की मांग को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई है। पढ़िए हाई कोर्ट ने इस मामले में क्या कहा है।

Bilaspur High Court: हाई कोर्ट पहुंचा मामला- भिलाई विधायक देवेन्द्र यादव के भाई पर सरकारी जमीन पर कब्जा करने का आरोप
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। कालीबाड़ी हाउसिंग बोर्ड भिलाई की जमीन विधायक देवेंद्र यादव के भाई धर्मेंद्र यादव द्वारा कम दाम पर जमीन खरीदने के अलावा इससे लगे शासकीय भूखंड पर अतिक्रमण करने की शिकायत को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता ने खरीदी बिक्री के अतिरिक्त कब्जा किए गए शासकीय भूखंड से बेदखली की मांग भी की है। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने जरुरी दिशा निर्देश देते हुए याचिका को निराकृत कर दिया है।

मामले की सुनवाई करते हुए डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता और हस्तक्षेपकर्ता को अभ्यावेदन अधिकृत प्राधिकारी के समक्ष दो सप्ताह में देने का निर्देश देते हुए इसका छह सप्ताह में निराकरण करने का निर्देश दिया है। आठ सप्ताह तक यथास्थिति बरक़रार रहेगी। कालीबाड़ी हाउसिंग बोर्ड भिलाई में धर्मेंद्र यादव द्वारा हाउसिंग बोर्ड से 15000 स्क्वायर फीट जमीन दो.करोड़ 52 लाख में खरीदी थी। इस संबंध में आम आदमी पार्टी के नेता मेहरबान सिंह ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। इसके साथ ही हाउसिंग बोर्ड निवासी उदय सिंह तथा पीयूष मिश्रा द्वारा हाई कोर्ट में अलग – अलग याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में धर्मेंद्र यादव द्वारा जरूरत से ज्यादा हिस्से में कब्ज़ा करने की शिकायत की थी। सभी याचिकाओं पर चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीड़ी गुरु की डीविजन बेंच में एकसाथ सुनवाई हुई। सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि. यह स्पष्ट किया जाता है कि याचिकाकर्ताओं के साथ-साथ जनहित याचिका में हस्तक्षेपकर्ता आज से दो सप्ताह की अवधि के भीतर संबंधित प्राधिकारी के समक्ष अभ्यावेदन प्रस्तुत करेंगे। उसके बाद छह सप्ताह के भीतर निर्णय लिया जाएगा। इस बीच आठ सप्ताह की अवधि के लिए दोनों याचिकाओं पर यथास्थिति बनी रहेगी।

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