Allahabad High Court News: FDR पर तय ब्याज दरों को बाद में नहीं घटा सकता बैंक, हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, पढ़ें पूरी खबर
Allahabad High Court News: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है, कोई भी बैंक FDR रसदी जारी होने के बाद ब्याज दर को एकतरफा कम नहीं कर सकता है। हाई कोर्ट के इस फैसले से निवेशकों को राहत मिलेगी।
Allahabad High Court News: प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है, कोई भी बैंक FDR रसदी जारी होने के बाद ब्याज दर को एकतरफा कम नहीं कर सकता है। हाई कोर्ट के इस फैसले से निवेशकों को राहत मिलेगी। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए डिवीजन बेंच ने कहा, जिस दर पर एफडीआर जारी की जाती है, वह बैंक और निवेशक के बीच बंधनकारी अनुबंध होता है। डिवीजन बेंच ने साफ कहा, बैंक प्रबंधन किसी आंतरिक सर्कुलर या स्टाफ बेनिफिट से जुड़ी गाइडलाइन का हवाला देकर निवेशक को नुकसान पहुंचाने वाले तरीके से ब्याज दर में बाद में बदलाव नहीं कर सकता।
डिवीजन बेंच ने कहा, अनुबंध के क्षेत्र में प्रतिज्ञात्मक प्रतिषेध promissory estoppel का सिद्धांत पूरी तरह लागू होता है। जब निवेशक ने कोई गलतबयानी नहीं की है और न ही किसी तथ्य को छिपाया है, तो बैंक बाद में मेच्योरिटी पर सहमति से तय ब्याज दर देने से इनकार नहीं कर सकता।
ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (अब पंजाब नेशनल बैंक में विलय) द्वारा FDR पर ब्याज दर घटाने के निर्णय को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं ने 2011-12 में बैंक के सेवानिवृत्त कर्मचारी के साथ संयुक्त रूप से FDR बनाई थी। उस समय एफडीआर पर 10.75% और 10.25% वार्षिक ब्याज दर और 10 वर्ष की अवधि स्पष्ट रूप से दर्ज थी। लेकिन बाद में बैंक ने ब्याज दरें घटाकर 9.25% और 8.25% कर दीं। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह अनुबंध कानून का सीधेतौर पर उल्लंघन करता है। याचिका के अनुसार एफडीआर पर दर्ज ब्याज दर ही दोनों पक्षों के बीच बाध्यकारी अनुबंध होती है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा एफडीआर के बाद याचिकाकर्ता संतुष्ट था मेच्योरिटी के बाद तय ब्याज के अनुसार बैंक राशि का भुगतान करेगा। भुगतान के समय बैंक ने इसमें बदलाव कर दिया। अधिवक्ता का कहना था कि एफडीआर के बाद बैंक इसमें बदलाव नहीं कर सकता।
डिवीजन बेंच ने माना कि याचिकाकर्ताओं ने बैंक के नियमों व अफसरों की बातों पर भरोसा किया और पूरे कार्यकाल तक जमा राशि को बनाए रखा। इसलिए बैंक अपने वादे से पीछे नहीं हट सकता। कोर्ट ने यह भी कहा: "उच्च ब्याज दर एफडीआर जारी करते समय स्वयं बैंक ने दी थी। बाद में दर कम करना बैंक अधिकारियों का एकतरफा निर्णय था, और इसका नुकसान निवेशकों को नहीं भुगतना चाहिए।
डिवीजन बेंच ने बैंक काे निर्देश दिया, एफडीआर पर मूल निर्धारित ब्याज दर के अनुसार परिपक्वता तिथि से ब्याज की पुन: गणना की जाए, और बीच में की गई किसी भी कटौती को ब्याज सहित वापस किया जाए।