UP : मर्दवादी वर्चस्व को कड़ी टक्कर दे रहीं कानपुर की ये '10 मैकेनिक लड़कियां'

Girls Break Rules: हम आपको इस पुरुष प्रधान समाज की 10 मर्दानी लड़कियों से वाकिफ कराते हैं, जो अपने काम से चेंजमेकर बनकर न सिर्फ उभर रही हैं, बल्कि इन्हें देख दूसरी लड़कियों को भी प्रेरणा मिल रही है...

Update: 2023-11-25 08:00 GMT

Girl Break Rules 

Girls Break Rules: उत्तर प्रदेश का मैनचेस्टर के नाम से मशहूर शहर कानपुर के अति व्यस्त फज़लगंज चौराहे से कोई एक डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर यूपी परिवहन निगम कानपुर की क्षेत्रीय कार्यशाला है. जहां 10 लड़कियां हमारे आपके लिए वो काम करती हैं, जिसे करने का दम अब तक पुरुष प्रधान समाज में मर्दों के जिम्मे रहता था.

कार्यशाला में काम कर रहीं ये 10 लड़कियां, जिन्हें देखकर सबसे पहले आपके मन में इनके जज्बे को सलाम करने की इच्छा जागेगी. पुरुषों के बीच सारी लाज शर्म को किनारे रख, हाथों में बड़ी बड़ी रिंच, मशीनी टूल्स, ग्रीस और डीजल की कालिख देख आपको जरूर अहसास होगा की ये लड़कियां जिन्होंने सभी मर्यादाओं-परम्पराओं को पीछे छोड़कर एक नई इबारत गढ़ डाली है, जो खुद में अद्भुत है.

तो चलिए हम आपको इस पुरुष प्रधान समाज की 10 मर्दानी लड़कियों से वाकिफ कराते हैं, जो अपने काम से चेंजमेकर बनकर न सिर्फ उभर रही हैं, बल्कि इन्हें देख दूसरी लड़कियों को भी प्रेरणा मिल रही है. ऐसी प्रेरणा जो समाज में बड़े बदलाव की तरफ जाकर खुलती है.

1. Kanchan Gautam : कानपुर के चौबेपुर में रहने वाली 19 वर्षीय कंचन गौतम अपने घर में 3 बहनों में सबसे बड़ी हैं. दो बहनें उनसे छोटी हैं. इस वर्ष Bsc फाइनल कर रहीं कंचन के पिता का कुछ साल पहले देहांत हो गया था. घर की स्थिति ठीक न होने के चलते और परिवार की बड़ी बेटी होने की जिम्मेदारी ने उनके लिए इस कार्यशाला के रास्ते खोल दिए. भारत सरकार की कौशल विकास योजना के अंतर्गत कंचन ने 2 साल की ट्रेनिंग ली, जिसके बाद उन्हें यहां काम करने का मौका मिला. आमदनी और परिवार के गुजारे के सवाल पर कंचन कहती हैं कि 'गुजारा क्या बस यूं समझिये दाल-रोटी में मदद मिल जाती है.'


2. Purti Gautam : 25 साल की पूर्ति गौतम बस के पिछले पहिये को बड़े से रिंच से कस रही थीं. पूर्ति हमें बताती हैं, वे पहले टर्बो डिपार्टमेंट में थीं, अब फील्ड का काम देखती हैं. एजुकेशन की बाबत सवाल पर वे बताती हैं, उनने BA किया है. मसवानपुर निवासी पूर्ति को लॉकडाउन के दौरान 'कौशल विकास योजना के तहत मकेनिक की ट्रेनिंग का पता चला तो इन्होंने फ़ौरन उसमें दाखिला लेकर कोर्स कर लिया. इसके बाद वे यहां तकरीबन एक डेढ़ साल से काम कर रही हैं. इन लड़कियों के अलावा यहां सभी पुरुष कर्मचारी हैं, किसी तरह का संकोच या दिक्क़त पर वे कहती हैं, की यहां बिल्कुल परिवार जैसा माहौल है, शुरू में जो संकोच होता भी था वह अब निकल चुका है. 

3. Kirti Pal : 20 साल की कीर्ति पाल गांव कनेक्शन को बताती हैं कि, हम लोगों ने विकासनगर डिपो से कौशल विकास की ट्रेनिंग की थी. हमें जॉब की जरूरत थी. हमारे सर एन के आर्य से हमनें कहा, सर हमें जॉब करनी है. सर ने इसके बाद हमें यहां भेजा और हमें काम करने का मौका मिला. कीर्ति किदवई नगर में रहती हैं. उनके घर में माता-पिता और चार भाई बहन हैं. यहां के माहौल को लेकर वे कहती हैं, कोई भी काम छोटा नहीं होता और जरूरत पड़ने पर हर काम करना चाहिए. एक दायरे में सिमटकर नहीं रहना चाहिए. लोग क्या कहेंगे, समाज क्या कहेगा, ये आपकी कामयाबी जवाब देती है.

4.Sony Gautam - मसवानपुर निवासी 30 वर्षीय सोनी गौतम तीन बेटियों की मां हैं. उनके हसबैंड सुरेंद्र प्राइवेट मार्केटिंग का काम करते हैं. सोनी ने भी बाकी लड़कियों की तरह 'कौशल विकास योजना के तहत ट्रेनिंग लेकर यहां काम शुरू किया है. यहां मिलने वाली सैलरी को नाकाफी बताते हुए कहती हैं, बच्चोँ को पढ़ाने और घर खर्च में पति का सहयोग हो जाता है. यहां के माहौल को सोनी बेहतर बताते हुए कहती हैं की सभी हेल्पफुल वर्कर्स हैं. 

5. Jyoti - 26 वर्षीय ज्योति डेढ़ साल से यहां काम कर रही हैं. ग्वालटोली निवासी ज्योति फ़ज़लगंज अपडाउन करती हैं. उनके परिवार में भाई भाभी व अन्य हैं. मर्दों के बीच यहां काम में दिक्क़त या शर्म के सवाल पर ज्योति कहती हैं, पहले शुरुआत में लोगों ने कहा यहां कैसे और क्या काम करोगी? इसके विपरीत उन्होंने यहां काम किया, सीखा और आज ज्योति किसी की अनुमति या सलाह के बगैर काम करना सीख लिया है. ज्योति पुरुष कर्मचारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर काम को बखूबी अंजाम दे रही हैं. 

6. Kanchan - बीते दो वर्षों से यहां काम कर रहीं 28 वर्षीय कंचन को अख़बार से भारत सरकार कि कौशल विकास योजना के बारे में पता चला था. कोर्स के बाद उन्होंने इस वर्कशॉप के एसएम तुलाराम से संपर्क किया. इसके बाद उन्होंने कंचन को यहां काम करने का मौका दिया. वे यहां क्लच एंड प्रेशर डिपार्टमेंट का काम देखती हैं. घर और सेलरी की बाबत वे बताती हैं कि, बस चल जाता है गुजारा. मसवानपुर में घर है जिसमें अम्मा हैं, भाई भाभी और उनके बच्चे मिलाकर 12-15 लोगों का परिवार है. कंचन हमें बताती हैं की शुरू में लोगों ने सुना कि लड़की रोडवेज बसों की मरम्मत का काम करती है तो बहुत बातें हुई. लोग बोले वहां तो आदमी काम करते हैं, लड़की का क्या काम? लेकिन अब लोग कहते हैं, 'अरे वाह रोडवेज में काम करती हो बड़ी अच्छी बात है.'


7. Rani Srivastava - 26 साल की रानी श्रीवास्तव पिछले डेढ़ दो साल से काम कर रही हैं. वे रावतपुर के नजदीक मसवानपुर में रहती हैं. उनके परिवार में मां -पिता, दो भाई और बहन हैं. उनकी बहन जो बड़ी है, के हस्बैंड का देहांत हो चुका है. वह और उनके दो बच्चे रानी व उनकी फैमिली के साथ ही रहते हैं. काम को लेकर रानी कहती हैं, शुरू-शुरू में लोगों ने नाक-मुंह सिकोड़ा, कहते थे 'ये लड़कियां औजार उठा पाएंगी, टूल्स सम्हाल पाएंगी क्या? लेकिन फिर भी हमनें हिम्मत नहीं हारी. आखिर लड़कियां क्या नहीं कर सकती? एयरफोर्स में लड़कियां हैं, राष्ट्रपति, संसद में महिलाएं हैं, तो हम क्यों नहीं कर सकते? 

8. Rajrani - 19 वर्षीय राजरानी यहां 2022 से काम कर रही हैं. राजरानी चौबेपुर में रहती हैं. उनके घर में पापा-मम्मी, दो भाई और एक बहन है. पापा प्राइवेट जॉब करते हैं. राजरानी अपनी मिलती सेलरी से बहुत हद तक सेटिस्फाई हैं. उनके परिवार को इससे काफ़ी अधिक राहत मिलती है. कार्यशाला के अन्य कर्मचारी और उनके व्यवहार को राजरानी ठीक बताती हैं. उन्हें अपने काम में शुरुआत से अब तक किसी तरह की कठिनाई नहीं दिखाई दी.

9. Roma : कानपुर ग्वालटोली की रहने वाली रोमा यहां जॉब को लेकर कहती हैं, 'उनके पति राजेश अपना लायसेंस रिन्यू कराने गए थे. वहां उन्हें कौशल विकास योजना के तहत रोडवेज में जॉब की बात पता चली. घर आकर उन्होंने रोमा को बताया. जिसके बाद उन्होंने यह ट्रेनिंग ली. रोमा आगे बताती हैं कि विकासनगर डिपो से ट्रेनिंग के बाद यहां के एसएम तुलाराम वर्मा ने इस कार्यशाला में काम करने का मौका दिया. तब से डेढ़ साल का समय होने को आया रोमा बखूबी लगन से अपना काम कर रही हैं.


10. Anchal Mishra : साकेत नगर की रहने वाली 32 वर्षीय आंचल मिश्रा बताती हैं कि वे विकासनगर डिपो में ड्राइवर बनने गईं थीं, लेकिन हाईट कम होने की वजह से उन्हें कौशल विकास योजना के तहत मकेनिकल ट्रेनिंग करने का मौका मिला. आंचल के दो बच्चे हैं, बड़ी बेटी क्लास 9th की स्टूडेंट है. उनके पति ओमप्रकाश प्राइवेट नौकरी करते हैं. तनख्वा में घर का गुजारा चलने के सवाल पर आंचल कहती हैं, 'अब ये आप देखिये, कैसे गुजारा चल सकता है महंगाई के अनुसार इतने में चलता तो नहीं पर हां कुछ सहायता तो हो ही जाती है. यहां पुरुषों के बीच किसी तरह की दिक्क़त के सवाल पर आंचल कहती हैं, नहीं दिक्क़त काहे की, ज़ब हमनें मन मज़बूत कर लिया किसी काम के लिए तो कोई दिक्क़त हमें नहीं हिला सकती. 

8 अगस्त 2020 को झाँसी से आकर कानपुर परिक्षेत्र के 36वें सेवा प्रबंधक का कार्यभार संभाल रहे तुलाराम वर्मा ने gaon connection से हुई बातचीत में कहा कि, 'इस समय कार्यशाला में कुल 10 लड़कियां काम कर रही हैं. ये अलग - अलग डिपार्टमेंट में पूरी जिम्मेदारी और लगन से काम करती हैं. आगे ग्रोथ के सवाल पर वे बताते हैं कि कुछ माह बाद इनकी तनख्वा में वृद्धि होने वाली है. ये लड़कियां प्रोडक्शन में लगी हैं. चेचिस, इंजन, कंप्रेसर, क्लच प्लेट बनाना इत्यादि वर्किंग डिपार्टमेंट बंटे हुए हैं, जिनमें ये सभी रनिंग कामों में योगदान कर रही हैं.

तुलाराम आगे कहते हैं, अभी सभी को 6500₹ प्रति माह मिलता है. अब नया आदेश जो आया है उसमें इन सभी को अगले माह से 7800₹ प्रति माह मानदेय दिया जायेगा. आगे और बढ़ोतरी होगी. उन्होंने बताया की 'कौशल विकास योजना के अंतर्गत पूरे उत्तर प्रदेश में सिर्फ कानपुर ही एकमात्र रोडवेज बसों की कार्यशाला है, जहां हमारी जाँबाज लड़कियां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं.

बताते चलें की यूपी परिवहन विभाग परिक्षेत्र में कानपुर, उन्नाव, फतेहपुर और कानपुर देहात समेत 7 बस डिपो की तकरीबन 534 खराब बसें ठीक होने आती हैं. लगभग 5 एकड़ में फैली इस कार्यशाला में इन 10 लड़कियों को मिलाकर 113 वर्कर हैं, जिनमें 58 रेगुलर वर्कर और 55 आउटसोर्सिंग कामगार हैं. इन कमगारों पर लाखों यात्रियों के आवागमन और बेहतर सर्विस की जिम्मेदारी रहती है. बता दें कि, अकेले कानपुर में ही 15 से 18 हजार यात्री रोजाना सफर करता है. जिनका माध्यम रोडवेज बसें ही हैं.

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