Period Leave: महिलाओं को पीरियड के दौरान मिले छुट्टी, सुप्रीम कोर्ट में इस दिन होगी याचिका पर सुनवाई

Period Leave: छात्राओं व कामकाजी वर्ग की महिलाओं के लिए पीरियड लीव का प्रावधान करने के लिए राज्यों को निर्देश देने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 24 फरवरी को सुनवाई करेगा। हाल ही में केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री सुभाष सरकार ने लोकसभा में कहा था कि शिक्षण संस्थानों में मासिक धर्म की छुट्टी लागू करने की कोई योजना नहीं है।

Update: 2023-02-15 14:02 GMT

Period Leave: छात्राओं व कामकाजी वर्ग की महिलाओं के लिए पीरियड लीव का प्रावधान करने के लिए राज्यों को निर्देश देने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 24 फरवरी को सुनवाई करेगा। हाल ही में केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री सुभाष सरकार ने लोकसभा में कहा था कि शिक्षण संस्थानों में मासिक धर्म की छुट्टी लागू करने की कोई योजना नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट बुधवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया, जिसमें भारत भर में महिला छात्रों और कामकाजी महिलाओं के लिए मासिक धर्म दर्द की छुट्टी की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया है कि मासिक धर्म की समाज, सरकार और अन्य हितधारकों द्वारा बड़े पैमाने पर अवहेलना की गई है, लेकिन कुछ संगठनों और राज्य सरकारों ने नोटिस लिया है। इसमें खास तौर पर Ivipanan, Zomato, Byju's, Swiggy, मातृभूमि, Magzter, Industry, ARC, FlyMyBiz और Gozoop जैसी कंपनियों का जिक्र है, जो पेड पीरियड लीव देती हैं. सुप्रीम कोर्ट याचिका पर 24 फरवरी को सुनवाई करेगा। गौरतलब है कि मासिक धर्म का दर्द (Menstrual pain) कई महिलाओं के लिए एक बड़ी समस्या है। पीरियड्स के दिनों में महिलाओं को पेट के निचले हिस्से में ऐंठन या दर्द, सिरदर्द, मतली, थकान और सूजन जैसी कई चीजों को सहना पड़ता है।

मासिक धर्म के दौरान छुट्टी वाली जनहित याचिका के तहत सभी राज्य सरकार को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि वे छात्राओं और काम करने वाली महिलाओं को उनके संबंधित कार्यस्थलों पर मासिक धर्म के दौरान होने वाली तकलीफ के लिए नियम बनाएं और छुट्टी भी प्रदान करें। इसके साथ ही मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 की धारा 14 का अनुपालन करें। सुप्रीम कोर्ट के जीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली पीठ ने अधिवक्ता शैलेंद्र मणि त्रिपाठी द्वारा मामले का उल्लेख करने और मामले की जल्द सुनवाई की मांग के बाद मामले को 24 फरवरी को सुनवाई को लिए पोस्ट किया है।

मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के तहत यह अनिवार्य कर दिया गया है कि सभी संस्थान अपनी महिला कर्मचारियों को गर्भावास्था के समय, गर्भपात के मामले में और नसबंदी ऑपरेशन के लिए और बीमारी के साथ-साथ उत्पन्न होने वाली चिकित्सीय समस्याओं के मामले में निश्चित समय के लिए ग्रांट पेड लीव दें। 1961 का अधिनियम तो देश के हर राज्य में लागू है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका में कहा गया है कि मातृत्व लाभ अधिनियम का पालन ठीक से नहीं होता है।

देश का एकमात्र राज्य बिहार जहां पर 1992 से महिलाओं को 2 दिन का विशेष मासिक धर्म अवकाश प्रदान कर रहा है. भारत में आजादी से पहले 1912 में कोचीन की तत्कालीन रियासत में स्थित त्रिपुनिथुरा में गर्ल्स स्कूल ने छात्रों को उनकी परीक्षा के समय पीरियड लीव लेने की अनुमति दी थी.

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