अजब तमाशा है : बिना कार्यकाल पूरा किये सरकार ने पद से हटाया….हाईकोर्ट के आदेश पर ज्वाइन करने आये तो चैंबर में लटका मिला ताला….हंगामा बढ़ा तो आनन-फानन में….
रायपुर 11 जून 2021। पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष सियाराम साहू की फजीहत खत्म होती नहीं दिख रही….पहले तो बिना कार्यकाल पूरा किये राज्य सरकार ने उन्हें पद से हटा दिया…और अब जब हाईकोर्ट के निर्देश के बाद वो दोबारा कार्यभार संभालने पहुंचे, तो अध्यक्ष के चैंबर में ताला जड़ दिया गया। लिहाजा आज काफी देर तक पिछड़ा वर्ग आयोग के चैंबर में विवाद की स्थिति बनी रही।
दरअसल अगस्त 2018 में तत्कालीन रमन सरकार ने सियाराम साहू को पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाया था। सियाराम साहू की नियुक्ति तीन सालों के लिए की गयी थी, उन शर्तों के आधार पर सियाराम साहू का कार्यकाल अगस्त 2021 तक था, लेकिन सरकार बदलते ही कांग्रेस सरकार ने सियाराम साहू को पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष पद से हटाते हुए थानेश्वर साहू को आयोग का नया अध्यक्ष बना दिया।
राज्य सरकार के इस आदेश के खिलाफ सियाराम साहू हाईकोर्ट गये। हाईकोर्ट ने सियाराम साहू के पक्ष में फैसला सुनाया और थानेश्वर साहू की नियुक्ति को निरस्त करते हुए सियाराम साहू को पद पर बरकरार रखा।
इधर हाईकोर्ट के फैसले के बाद जब सियाराम साहू दोबारा रायपुर के पिछड़ा वर्ग आयोग दफ्तर पहुंचे तो वहां अजीब तमाशा हो गया। अध्यक्ष के चैंबर में बड़ा सा ताला लटका था…अध्यक्ष के चैबर के आगे नेम प्लेट पर थानेश्वर साहू का नाम लगा था। इस नजारे को देखकर अध्यक्ष के समर्थित लोग बिफर पड़े। ताला लटका देख साथ आये भाजपा नेता नाराज हो गये। उधर अध्यक्ष के बारे में आयोग के कर्मचारी कोई जवाब नहीं दे रहे थे। हालांकि जानकारी जुटाने पर मालूम पड़ा कि थानेश्वर साहू मुंगेली में हैं, लिहाजा ताला नहीं खुल सकता। सियाराम साहू ने कहा …..
“वो हाईकोर्ट के निर्देश के बाद ज्वाइन करने आये थे, लेकिन यहां ताला लगा है, आदेश में साफ लिखा है कि थानेश्वर साहू की नियुक्ति निरस्त की जाती है और मुझे पद पर बहाल किया गया है, अभी आया हूं यहां ताला लगा है”
इधर विवाद ज्यादा बढ़ा तो आयोग के अफसरों ने आनन-फानन में अध्यक्ष के लिए अलग कमरे का इंतजाम किया। कमरे को सजाया गया, टेबल-कुर्सी लगायी गयी। अधिकारियों की तरफ से कहा गया है कि चाबी मंगवाकर ताला खोला जायेगा, उसके बाद अध्यक्ष के कमरे में सियाराम साहू बैठेंगे। हालांकि खबर लिखे जाने तक विवाद पूरी तरह सुलझा नहीं था।