Sohan Potai: पोस्ट मास्टर की नौकरी छोड़ आए राजनीति में, बने लगातार चार बार सांसद, जाने उनके बारे में...
एनपीजी डेस्क। छत्तीसगढ़ के कद्दावर आदिवासी नेता सोहन पोटाई ने दुनियां को अलविदा कह दिया। 29 अप्रैल 1958 को जन्मे सोहन पोटाई 65 साल की उम्र में कैंसर के चलते जिंदगी की जंग हार गए। सहायक पोस्ट मास्टर के पद पर नौकरी करने वाले सोहन पोटाई आपातकाल के समय नौकरी छोड़ कर राजनीति में आए थे। वे लगातार कांकेर लोकसभा से चार बार सांसद रहे। वह आदिवासी समाज का बड़ा चेहरा भी रहे। आइए जानते हैं उनके बारे में:-
सोहन पोटाई का जन्म 29 अप्रैल 1958 को हुआ था। उनके पिता का नाम दरबारी राम पोटाई था। उनकी पत्नी मिनी पोटाई है। उनके एक पुत्र और एक पुत्री हैं। समाजशास्त्र विषय में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री लेने वाले सोहन पोटाई सहायक पोस्ट मास्टर की नौकरी करते थे। आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित सोहन पोटाई ने इंदिरा सरकार के समय लगाए गए आपातकाल के दौरान नौकरी से इस्तीफा दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा में रहते हुए उन्होंने आदिवासी वर्ग का नेतृत्व करते हुए आदिवासी वर्ग के हितों की राजनीति की। जिसके चलते उनका कद बढ़ता चला गया। उनके कद को देखते हुए 1998 में हुए चुनाव में भाजपा ने उन्हें कांकेर लोकसभा से कांग्रेस के कद्दावर नेता महेंद्र कर्मा के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा। महेंद्र कर्मा कांग्रेस की राजनीति में बड़ा नाम व आदिवासी समाज का बड़ा चेहरा थे। उन्हें हराकर सोहन पोटाई पहली बार सांसद बने। पर केंद्र में सरकार गिरने से वे मात्र 1 वर्ष तक ही सांसद रह पाए। पर 1999 में दोबारा कांग्रेस नेता छबीला अरविंद नेताम को चुनाव हराकर वह दोबारा सांसद बने। तीसरी बार 2004 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही गंगा पोटाई ठाकुर को उन्होंने पराजित कर सांसद बनने की हैट्रिक लगाई। 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस की फूलों देवी नेताम को हराकर चौथी बार जीत व सांसद बनने के अधिकार दर्ज किया।
2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें भाजपा से टिकट नहीं मिला। टिकट नहीं मिलने से नाराज होगा सांसद सोहन पोटाई ने पार्टी से बगावती तेवर अपना लिए। एक समय आरएसएस के पसंदीदा माने जाने वाले सोहन पोटाई लगातार पार्टी विरोधी व तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह तथा राष्ट्रीय संगठन मंत्री सौदान सिंह के खिलाफ सार्वजनिक बयानबाजी करने लगे। जिसके चलते पहले उन्हें निलंबित किया गया फिर 2016 में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। जिसके बाद वे सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में आदिवासी समाज की राजनीति करते हुए आदिवासियों के मुद्दे को प्रमुखता से उठाते रहे। सोहन पोटाई ने जनवरी 2017 में जय छत्तीसगढ़ पार्टी का गठन भी किया। सोहन पोटाई लगातार चार बार कांकेर लोकसभा के सांसद रहे व आदिवासी समाज में अच्छी पैठ और कांकेर लोकसभा क्षेत्र में उनके प्रभाव को देखते हुए आरएसएस ने उन्हें 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में वापस लाने की कोशिश की पर वे भाजपा में शामिल नहीं हुए। बताया जाता है कि रमन सिंह के मुख्यमंत्री रहने के दौरान उन्होंने उन्होंने एक पुलिस अधिकारी की शिकायत रमन सिंह से की थी पर उनकी शिकायत को नजरअंदाज कर दिया गया था। जिसके चलते वे नाराज थे। 2018 के चुनाव में उन्होंने बीजेपी के खिलाफ खुलेआम प्रचार किया था। सोहन पोटाई जब बीजेपी के खिलाफ बयान देते थे तो पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी उनका समर्थन करते हुए कहते थे कि सोहन पोटाई ने बीजेपी का चेहरा बेनकाब कर दिया। अजीत जोगी के बयान को उनके द्वारा सोहन पोटाई को अपनी पार्टी में शामिल करने के प्रयास के तौर पर माना जाता था।
पूर्व की भाजपा सरकार ने आदिवासी अधिसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों की जमीन खरीदी बिक्री का नियम बदला था। अधिसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों के जमीन की खरीदी बिक्री नहीं हो सकती पर गैर अधिसूचित क्षेत्रों में जमीन की खरीदी बिक्री कलेक्टर के आदेश से की जा सकती है। पूर्व की रमन सरकार ने विधेयक पास किया था कि अधिसूचित क्षेत्र के आदिवासियों की जमीन सहमति के आधार पर सरकार खरीद सकती है। जिसका जमकर विरोध हुआ था सोहन पोटाई भी इस विरोध में आदिवासियों के साथ शामिल थे जिसके बाद सरकार को यह विधेयक पास होने के बाद भी वापस लेना पड़ा था।
सोहन पोटाई पिछले 6-7 माह से गले के कैंसर से पीड़ित थे। एम्स रायपुर में उनका इलाज चल रहा था। वहां प्रदेश की पूर्व राज्यपाल अनुसुइया उइके भी उनका हालचाल जानने के लिए पहुंची थी। होली से 1 दिन पहले मंगलवार को ही उन्होंने एम्स अपनी छुट्टी करवाई थी और होली मनाने अपने घर कांकेर पहुंचे थे। कांकेर के माहुरबंधपारा स्थित अपने पैतृक निवास में आज सुबह दस बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। कांकेर जिले के ग्राम बाबूदबेना में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। उनके निधन पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल वह पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह समेत तमाम बड़े नेताओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की है। उनके निधन ने प्रदेश से आदिवासी समाज का एक बड़ा नेता खो दिया है।