दूसरी बार विधायक बने हैं चिंतामणि महाराज, पढ़िए उनका जीवन परिचय/Chintamani Maharaj Biography In Hindi
Chintamani Maharaj has become MLA for the second time, read his life introduction / Chintamani Maharaj Biography in Hindi
NPG डेस्क
संस्कृत का वाचन करने वाले व बालपन से ही संस्कृत भाषा को अपना कर अब उसके विद्वान चिंतामणि महाराज अब विधायक के साथ ही संसदीय सचिव बन चुके हैं। समाज सुधार से क्षेत्र में पकड़ बनाने वाले चिंतामणि महाराज समाजिक बुराइयों की भी खिलाफत करते हैं। वे विवाह में होने वाली फिजूलखर्ची के सख्त खिलाफ है और सामूहिक विवाह को बल देते हैं। संस्कृत की शिक्षा लेने वाले चिंतामणि महाराज पूर्व की बीजेपी शासन के समय राज्य संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष भी रह चुके है। उन्होंने संस्कृत शिक्षा के लिए राज्य के जशपुर जिले में संस्कृत कॉलेज भी अपनी कोशिशों से खुलवाया है। चिंतामणि महाराज ने दूसरी बार कांग्रेस की टिकट से बलरामपुर जिले के सामरी विधानसभा से जीत हासिल की है और विधानसभा में पहुँचे है।
चिंतामणि महाराज का जन्म भी उस तारीख को हुआ जिस तारीख को देश को गणतंत्र मिला। याने 26 जनवरी। उनका जन्म वर्तमान बलरामपुर जिले के श्रीकोट गांव में 26 जनवरी 1968 मे हुआ था। उनके पिता का नाम रामेश्वर है। चिंतामणि महाराज ने 11 वीं मेट्रिक तक की शिक्षा ग्रहण की है। सबसे खास बात यह है कि उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा शुरू से आखिरी तक संस्कृत में ही पूरी की है। चिंतामणि महाराज की शादी 26 मई 1992 को रविकला सिंह के साथ हुई थी। उनके 2 पुत्र व तीन पुत्री है। जो सभी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। कृषि उनका मुख्य पेशा है और उन्होंने अपना स्थायी निवास गहिरा गुरु आश्रम,बिलासपुर चौक भाथुपारा, अंबिकापुर में बना रखा है। चिंतामणि महाराज खुद तो खेती करते ही है, साथ ही युवाओं को खेती के लिए प्रेरणा देते हैं। उनका मानना है कि खेती देश का परंपरागत व्यवसाय है और 80 प्रतिशत लोगो की आजीविका पहले खेती से चलती थी। अब भी युवा खेती से जुड़ कर बेरोजगारी दूर करने के साथ ही अच्छी आय अर्जित कर सकतें है और देश को आगे बढ़ाने में योगदान दे सकते हैं। खेती के अलावा गौ पालन व गौ सेवा भी करना चिंतामणि महाराज को पसंद है।
चिंतामणि महाराज 2004 से 2008 तक अध्यक्ष राज्य संस्कृत बोर्ड रहें थे। फिर उन्होंने 2008 में बलरामपुर जिले के सामरी विधानसभा से ही निर्दलीय चुनाव लड़ा। जिसमे उन्हें हार का सामना करना पड़ा। फिर 2013 में वे फिर से सामरी विधानसभा से ही चुनाव मैदान में कूदे। पर अंतर सिर्फ इतना था कि वे इस बार निर्दलीय चुनाव न लड़ कर कांग्रेस की टिकट पर खड़े हुए थे और चुनावी मैदान फतह कर पहली बार विधायक बने थे। जिसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने फिर से उन पर भरोसा जताया और एक बार फिर वे सामरी विधानसभा से चुनावी मैदान में कूद पड़े। इस बार उन्होंने भाजपा के अपने करीबी प्रत्याशी सिद्धनाथ पैकरा को शिकस्त दी। चिंतामणि महाराज को कुल 80,620 वोट प्राप्त हुए तो वही उनके करीबी प्रतिद्वंदी भाजपा प्रत्याशी सिद्धनाथ पैकरा को 58697 वोट मिले।
चिंतामणि महाराज 2014-15 में सदस्य आचरण समिति छतीसगढ़ विधानसभा रहें। फिर 2016- 17 में छतीसगढ़ प्राक्कलन समिति रहे। 2017-18 में सदस्य याचिका समिति छतीसगढ़ विधानसभा रहे। 2018- 19 में सदस्य पुस्तकालय समिति, बने। सन 2020 से संसदीय सचिव बनें। वे लोकनिर्माण विभाग, गृह,जेल धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व एवं पर्यटन विभाग से संबद्ध है। चिंतामणि महाराज ने अपने विधानसभा मे जनता की ऐसी समस्याओ की नब्ज टटोली जो कि सीधे सीधे आमजनमानस के रोजाना के जीवन को प्रभावित करती है। और उसे दूर करने का प्रयास उन्होंने किया। उनकी विधानसभा में एक क्षेत्र है चांदो। चांदो कुसमी ब्लॉक के अंतर्गत आता था। जिसकी दूरी ब्लाक मुख्यालय से 60 किलोमीटर है। चांदो में तहसील नही होने के चलते वहां के लोगो को छोटे छोटे कामों के लिए ब्लॉक मुख्यालय कुसमी आना पड़ता था। चिंतामणि महाराज ने लोगो की समस्याओं को देखते हुए चांदो को तहसील घोषित करवा दिया। जिससे अब लोगो को छोटी छोटी समस्याओं के लिए लंबी दूरी तय नही करनी पड़ती है। इसके अलावा सामरी का तहसील दफ्तर कुसमी में था, चिंतामणि महाराज ने अब सामरी को भी तहसील बनवा दिया। साथ ही बरियो को भी उपतहसील बनवाया। शंकरगढ़ के लोगो को एसडीएम से काम पड़ने पर कुसमी जाना पड़ता था पर चिंतामणि महाराज की पहल से अब शंकरगढ़ में भी एसडीएम बैठने लगे हैं।