Chhattisgarh News: नगरीय निकाय चुनाव: 29 साल बाद फिर निगमों में लौटेगा प्रशासक राज, चुनाव तक चलाएंगे शहर सरकार
Chhattisgarh News: अविभाजित मध्य प्रदेश का वह दौर एक बार फिर वापसी होते दिखाई दे रहा है। मध्य प्रदेश सरकार ने 05/09/1987 से 03/01/1995 तक प्रदेश के नगर निगमों में प्रशासक बैठा दिया था। तब छत्तीसगढ़ के चुनिंदा निगमों में भी प्रशासकों ने कामकाज संभाल लिया था और पूरे आठ साल शहर सरकार को संचालित भी किया था। एक बार फिर वही दौर वापस लौट रहा है। हां यह कह सकते हैं कि प्रशासकों का कार्यकाल इतना लंबा नहीं रहेगा। चार या फिर पांच महीने वे काम करते नजर आ सकते हैं।
Chhattisgarh News: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के 14 नगर निगमों के साथ ही बिलासपुर नगर निगम में भी चार जनवरी के बाद प्रशासक कामकाज करते नजर आएंगे। छत्तीसगढ़ब राज्य निर्माण के बाद यह पहली बार होगा जब तय कार्यकाल के बाद नगरीय निकायों का चुनाव पूरा नहीं हो पाएगा।
प्रदेश के नगरीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर राज्य शासन द्वारा जिस तरह की योजना बनाई जा रही थी,उससे एक राज्य एक चुनाव की अवधारणा पूरी होते दिखाई दे रही थी। लचर प्रशासनिक व्यवस्था के चलते यह राजनीतिक कारण बन गई और एक अच्छी पहल बीच में ही दम तोड़ गई। अब तो इस बात की संभावनाएं भी बलवति होने लगी है कि समय पर ना तो निकायों के चुनाव हो पाएंगे और ना ही पंचायतों के। स्थानीय निकायों ओर पंचायतों में लंबे अरसे बाद प्रशासक राज की धमक दिखाई देगी। राज्य सरकार के सामने एक बार फिर चुनौती रहेगी कि प्रदेश के सभी 14 नगर निगमों में राज्य सेवा संवर्ग के अफसरों को बैठाएं या फिर चुनिंदा निगमों को आईएएस के भरोसे किया जाए। निकाय चुनाव में विलंब की चर्चा के बीच यह चर्चा भी तेज हो गई है। प्रशासकों की नियुक्ति से राज्य सरकार और सत्ताधारी दल भाजपा की एक रणनीति भी साफ होगी। निकायों पर कब्जा को लेकर सत्ताधारी दल किस कदर गंभीर है और उनकी गंभीरता को राज्य सरकार किस अंदाज में अमलीजामा पहनानती है। प्रशासनिक गलियारों में इस बात की भी चर्चा छिड़ गई है कि क्या निकायों व पंचायतों के चुनाव तक चुनिंदा जिलों के एसपी और कलेक्टर्स की कुर्सी सलामत रहेगी या फिर आचार संहिता लगने पहले छुट्टी कर दी जाएगी। बदलाव और पुरानी व्यवस्थाओं को लेकर बहरहाल अटकलबाजी का दौर जारी है। यह दौर आचार संहिता लगने तक जारी रहेगा।
एक अड़चन यह भी
बीते दिनों प्रदेश भाजपा के दिग्गज पदाधिकारियों की निकाय और पंचायत चुनाव साथ-साथ कराने, अगर ऐसा हुआ तो सत्ताधारी दल के लिए राजनीतिक संभावनाएं जैसे सभी विषयों पर खुलकर चर्चा की गई। पंचायत चुनाव के लिए जरुरी औपचारिकताओं को पूरा करने में लगने वाले समय और इस बीच स्कूली बच्चों की परीक्षा सहित तमाम बिंदुओं पर चर्चा की गई है। चुनावी मसला इस बात पर जाकर टिक गया है कि क्या दोनों चुनाव की तैयारी जल्द पूरी की जा सकती है। अगर विलंब हुआ तो क्या। चर्चा तो इस बात की भी है कि तैयारियां तय समय पर पूरी नहीं हो पाई तब चुनाव मार्च तक के लिए टल जाएगा। तब निकायों और पंचायतों में प्रशासक नजर आएंगे।
NPG ने इस बात की ओर किया है इशारा
नगरीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव साथ-साथ ना कराए जाने के सरकार के निर्णय को लेकर एनपीजी ने धान खरीदी में भारी अव्यवस्था और किसानों की नाराजगी को बड़ा कारण बताया था। भाजपा के संगठन से जुड़े पदाधिकारियों और प्रमुख रणनीतिकारों ने पंचायत चुनाव को फिलहाल टालने का सुझाव दिया है। राइस मिलरों की हड़ताल और धान खरीदी में भारी अव्यवस्था,किसानों को समय पर टोकन ना मिलने के कारण किसानों में इस अव्यवस्था को लेकर भारी नाराजगी देखी जा रही है। रणनीतिकारों और पदाधिकारियों ने सत्ता से जुड़े प्रमुखों से इस बात की आशंका भी जताई थी कि धान खरीदी केंद्रों की अव्यवस्था और किसानों को हो रही परेशानी मतदान केंद्र में कहीं गुस्से में ना बदल जाए। यह भी सुझाव दिया कि धान खरीदी की व्यवस्था को पहले दुरुस्त किया जाए, किसानों को धान खरीदी में हो रही दिक्कतों को दूर करने के साथ ही जब तक पूरा सिस्टम पटरी पर लौट ना आए इस बारे में सोचा नहीं जाना चाहिए।
तीन से 10 जनवरी के बीच मेयर्स का कार्यकाल हो रहा पूरा
प्रदेश के 14 नगर निगमों के महापौर का कार्यकाल तीन से 10 जनवरी के बीच पूरा हो रहा है। तीन जनवरी को राजनांदगांव व भिलाई चरौदा, चार जनवरी को बिलासपुर,बीरगांव,जगदलपुर,पांच जनवरी को रिसाली, छह जनवरी काे दुर्ग, भिलाई, धमतरी,चिरमिरी,रायगढ़,रायपुर,आठ जनवरी को अंबिकापुर व 10 जनवरी को कोरबा। माना जा रहा है कि प्रदेश के सभी नगर निगमों में एक साथ 11 जनवरी या उसके बाद प्रशासक नजर आएंगे।