अखिलेश अखिल
अब जब कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो गई है तो कांग्रेस के भीतर इस बात को चर्चा शुरू हो गई है कि अगर कोई गैर गांधी लंबे समय के बाद पार्टी का अध्यक्ष बनता है तो उसकी सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को जिताऊ बनाने की होगी।अगर कोई भी नया अध्यक्ष चुनाव जीताने में सफल होता है तो पार्टी के इतिहास में उसके नाम स्वर्णाक्षरों में लिखे जायेंगे । लंबे समय से हताश कांग्रेसियों के ये बयान बहुत कुछ कह जाते हैं।पिछले दस सालों से राज्यों से लेकर केंद्र के चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा है उससे पार्टी के भीतर एक ऐसी हीनभावना घर कर गई है जो हर हर के बाद सिर्फ आहें भरती है और अपने दर्द को बताती भी नही ।
पिछले एक दशक में पार्टी से करीब 250 से ज्यादा नेता,सांसद और विधायक निकल कर बीजेपी और अन्य पार्टियों के साथ गए है ।कांग्रेस की सीढ़ियों पर चढ़कर इन नेताओं ने बहुत कुछ पाया लेकिन जैसे ही उसका ऐसे होना शुरू हुआ ,पार्टी से निकलते चले गए। आज बीजेपी जो कुछ भी है उसमे कांग्रेस नेताओं की बड़ी भूमिका है ।बीजेपी कहने को कुछ भी कह ले लेकिन सच तो यही है मौजूदा बीजेपी कांग्रेस के उधार या फिर खरीदे गए नेताओं को जमीन पर ही निर्भर है ।अगर आज भी बीजेपी से कांग्रेसी नेता निकल जाए तो उसके पास कहने के लिए कुछ बचेगा क्या ?
17 तारीख को कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव हो रहा है ।इस चुनाव से गांधी परिवार अलग हैं ।पार्टी के दो उम्मीदवार खड़गे और थरूर मैदान में है ।दोनो एक दूसरे का सम्मान करते है और दोनो की चाहत पार्टी को आगे बढ़ाने और उसमे जान फूंकने की है । लेकिन सवाल है कि खड़गे जीते या थरूर ,क्या वे पार्टी के लिए रामबाण साबित होंगे ? क्या वे बीजेपी अध्यक्ष नड्डा की तरह चुनाव जीतने में सफल होंगे ? क्या वे पार्टी के संगठन को मजबूत कर पाएंगे और अपनी खोई जमीन को वापस ला पाएंगे? सबसे अहम सवाल यही है ।
याद रहे अभी तक कांग्रेस के पास जो कुछ भी राजनीतिक विरासत के नाम बचा है उसमे गांधी परिवार की भूमिका हो अधिक रही है ।कांग्रेस को अभी हुई देश भर में करीब 12 करोड़ लोग वोट देते है और कुल वोट में आज भी कांग्रेस का हिस्सा करीब 19 फीसदी के बराबर है ।इस हिस्सेदारी में गांधी परिवार की भूमिका सबसे ज्यादा रही है ।कांग्रेस को अभी भी जितने वोट मिलते हैं उसमे इसी परिवार के चहरे के नाम पर मिले हैं।लेकिन सोनिया गांधी अब तक गई है और राहुल गांधी कोई चमत्कार करने में अभी तक असफल रहे हैं।हालाकि दक्षिण भारत में भारत जोड़ो यात्रा को भरी समर्थन मिल रहा है और संभव है कि आने वाले चुनाव में राहुल की यह यात्रा चुनावी हिसाब से सफल हो जाए।लेकिन उत्तर भारत में क्या होगा बड़ा सवाल है ।
चुनाव में खड़गे जीते या थरूर ,इनके ऊपर आगामी चुनाव में जीत दिलाने की बड़ी चुनौती होगी ।गुजरात और हिमाचल के चुनाव के साथ ही 2023 से लेकर 2024 के चुनाव में कांग्रेस को सफल बनाने की चुनौती होगी साथ ही बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत गठबंधन तैयार करने की भी चुनौती होगी ।
बता दें कि यह कांग्रेस पार्टी के तकरीबन 137 साल के इतिहास में छठी बार यह तय करने के लिए चुनावी मुकाबला होगा कि कौन पार्टी के इस अहम पद की कमान संभालेगा ।इसके साथ ही सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाद्रा के पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव न लड़ने पर 24 वर्ष बाद गांधी परिवार के बाहर का कोई व्यक्ति कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा । इसे लेकर दोनों उम्मीदवार 9,000 से अधिक डेलीगेट्स को लुभाने लुभाने के लिए विभिन्न राज्यों का दौरा कर रहे हैं ।
चुनाव से पहले मीडिया से बात करते शशि थरूर ने दावा किया कि पार्टी के युवा सदस्य उनका समर्थन कर रहे हैं, जबकि वरिष्ठ नेता दूसरे उम्मीदवार एवं उनके प्रतिद्वंद्वी मल्लिकार्जुन खरगे का समर्थन कर रहे हैं । उन्होंने कहा, वरिष्ठ नेता, खरगे का समर्थन कर रहे हैं । हम बदलाव के बारे में बात कर रहे हैं और वरिष्ठ नेता इसका प्रतिरोध कर रहे हैं । उन्होंने स्वीकार किया कि पार्टी के कई पदाधिकारी खरगे के लिए प्रचार कर रहे हैं । उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि चुनाव गुप्त मतपत्रों के जरिये होगा और वरिष्ठ नेताओं के वोट और युवा सदस्यों के मत का मान समान है
लेकिन अब इन बातों का कोई महत्व नहीं रह गया है।अहमियत यही है कि जो अध्यक्ष बनेंगे वे पार्टी के लिए कितने कारगर होंगे ।उम्मीद जताई जा रही है कि खड़गे पार्टी अध्यक्ष बन सकते हैं। अगर ऐसा ही हुआ तो कांग्रेस को जगजीवन राम के बाद बड़ा दलित नेता अध्यक्ष के रूप में मिलेगा।ऐसे में क्या खड़गे देश के दलितों को पार्टी के साथ जोड़ पाएंगे और क्या बेओजगारी ,महंगाई से परेशान युवा को कांग्रेस अपने साथ जोड़ पाएगी ,बड़ा सवाल है ।नफरत छोड़ो भारत जोड़ो का नारा देने वाली कांग्रेस के साथ मुस्लिम समाज आ पायेगा यही नए अध्यक्ष की चुनौती होगी ।