Comptroller and Auditor General of India: जानें भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की शक्तियां और कर्तव्य, कैसे होती है नियुक्ति?

आज हम जानेंगे भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के बारे में। हम जानेंगे कि CAG की शक्तियां और कर्तव्य क्या होते हैं, साथ ही इनकी नियुक्ति कैसे होती है और इन्हें कैसे हटाया जा सकता है?

Update: 2024-06-10 13:29 GMT

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India) को आम तौर पर 'कैग' के नाम से जाना जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 में 'कैग' का प्रावधान है, जो केंद्र और राज्य सरकारों के विभागों और उनके द्वारा नियंत्रित संस्थानों के आय-व्यय की जांच करता है।

CAG (कैग) भारत के संविधान का बहुत महत्वपूर्ण अधिकारी है। वह ऐसा व्यक्ति है, जो ये देखता है कि संसद द्वारा अनुमन्य खर्चों की सीमा से अधिक धन खर्च न होने पाए या संसद द्वारा विनियोग अधिनियम में निर्धारित मदों में ही पैसा खर्च हो।

नियुक्ति और पदावधि

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा खुद अपने हाथों मुहर युक्त अधिपत्र के जरिए की जाती है। अपना पद ग्रहण करने से पहले कैग (सीएजी) तीसरी अनुसूची में अपने प्रयोजन के लिए निर्धारित प्रपत्र के अनुसार राष्ट्रपति के सामने शपथ या प्रतिज्ञा लेते हैं। इस शपथ में ये बातें शामिल होती हैं-

  • भारत के संविधान के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा प्रकट करने के लिए।
  • भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने के लिए।

नियंत्रक महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है, लेकिन उसे पद से संसद के दोनों सदनों के समावेदन पर ही हटाया जा सकता है। वे अपने कार्यकाल के दौरान किसी भी समय राष्ट्रपति को इस्तीफा लिखकर अपना त्यागपत्र दे सकता है। जिस आधार पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को हटाया जाता है, ठीक उसी तरह इन्हीं आधारों के तहत राष्ट्रपति द्वारा कैग को उनके पद से पदच्युत किया जा सकता है।

CAG को कदाचार साबित होने या असमर्थता पर ही हटाया जा सकेगा। इसकी पदावधि पद ग्रहण करने की तारीख से 6 साल तक होती है। हालांकि भले ही पदावधि पूरी न हुई हो, लेकिन उम्र के 65 साल पूरे हो गए हों, तो रिटायरमेंट हो जाती है। यह सेवानिवृत्ति के बाद भारत सरकार के अधीन कोई पद धारण नहीं कर सकता। नियंत्रक महालेखा परीक्षक सार्वजनिक धन का संरक्षक होता है। भारत और हरेक राज्य या संघ राज्य क्षेत्र की संचित निधि से किए गए सभी व्यय विधि के अधीन ही हुए हैं या नहीं, इस बात की संपरीक्षा करता है।

भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक के कर्तव्य और शक्तियां

  • भारत सरकार और राज्य सरकारों के विभागों और मंत्रालयों की लेखा परीक्षा।
  • केन्द्रीय और राज्य सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और स्वायत्त निकायों या प्राधिकारियों की लेखा परीक्षा (जिन्हें सरकारी निधि से वित्त पोषित किया जाता है।)
  • संघ या राज्यों की प्राप्तियो की लेखा परीक्षा।
  • स्कन्ध और स्टॉक लेखाओं (Inventory and Stock Accounts) की लेखा परीक्षा।
  • कम्पनियों और निगमों की लेखा परीक्षा।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक राज्य सरकार के खातों के संकलन, कर्मचारियों की चयनित श्रेणियों के पेंशनरी लाभ का प्राधिकार पत्र, अधिकांश राज्य सरकारों के कर्मचारियों के भविष्य निधि खातों के रखरखाव के लिए भी उत्तरदायी है।

कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया के बारे में खास बातें

  • महालेखाकार का कार्यालय साल 1858 में स्थापित किया गया था। ठीक उसी साल जब अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत का प्रशासनिक नियंत्रण अपने हाथों में लिया था।
  • साल 1860 में सर एडवर्ड ड्रमंड को पहले ऑडिटर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया। इसके कुछ समय बाद भारत के महालेखापरीक्षक को भारत सरकार का लेखा परीक्षक और महालेखाकार कहा जाने लगा।
  • साल 1866 में इस पद का नाम बदलकर नियंत्रक महालेखा परीक्षक कर दिया गया और वर्ष 1884 में इसे भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक के रूप में फिर से नामित किया गया।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत महालेखापरीक्षक को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया, क्योंकि इस पद को वैधानिक दर्जा दिया गया था।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने संघीय ढांचे में प्रांतीय लेखा परीक्षकों के लिए प्रावधान कर महालेखापरीक्षक के पद को और शक्ति दी।
  • इस अधिनियम में नियुक्ति और सेवा प्रक्रियाओं का भी उल्लेख था और भारत के महालेखापरीक्षक के कर्त्तव्यों का संक्षिप्त विवरण भी।
  • वर्ष 1936 के लेखा और लेखा परीक्षा आदेश ने महालेखापरीक्षक के उत्तरदायित्वों और लेखा परीक्षा कार्यों का प्रावधान किया।
  • यह व्यवस्था वर्ष 1947 तक अपरिवर्तित रही। स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक नियंत्रक और महालेखापरीक्षक नियुक्त किये जाने का प्रावधान किया गया।
  • वर्ष 1958 में CAG के क्षेत्राधिकार में जम्मू और कश्मीर को शामिल किया गया।
  • वर्ष 1971 में केंद्र सरकार ने नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (कर्त्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 लागू किया।
  • अधिनियम ने CAG को केंद्र और राज्य सरकारों के लिये लेखांकन और लेखा परीक्षा दोनों की जिम्मेदारी दी।
  • वर्ष 1976 में CAG को लेखांकन के कार्यों से मुक्त कर दिया गया।

CAG और लोक लेखा समिति

  • लोक लेखा समिति भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत गठित एक स्थायी संसदीय समिति है।
  • CAG की ऑडिट रिपोर्ट केंद्र और राज्य में लोक लेखा समिति को सौंपी जाती है।
  • विनियोग खातों, वित्त खातों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर ऑडिट रिपोर्ट की जांच लोक लेखा समिति द्वारा की जाती है।
  • केंद्रीय स्तर पर इन रिपोर्टों को CAG द्वारा राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया जाता है, जो संसद में दोनों सदनों के पटल पर रखी जाती हैं।
  • CAG सबसे जरूरी मामलों की एक सूची तैयार करके लोक लेखा समिति को सौंपता है।
  • CAG कभी-कभी राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों के विचारों की व्याख्या और अनुवाद भी करता है।
  • CAG यह देखता है कि उसके द्वारा प्रस्तावित सुधारात्मक कार्रवाई की गई है या नहीं। अगर नहीं तो वह मामले को लोक लेखा समिति के पास भेज देता है, जो मामले पर जरूरी कार्रवाई करती है।
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