Chhattisgarh Assembly Election 2023: जशपुर की तीनों सीटें नहीं जीते तो मेरे नाम से कुत्ता पाल लेना...यह कहने वाले रणविजय टिकट से क्यों चूके

रणविजय सिंह जूदेव रायपुर उत्तर सीट से दावेदारी कर रहे थे. उन्हें मौका नहीं मिला और वे भाजपा के सारे वाट्सग्रुप से लेफ्ट हो गए. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि रणविजय कहां पिछड़े.

Update: 2023-10-27 11:08 GMT

Chhattisgarh Assembly Election 2023

रायपुर. जशपुर जिले की तीनों सीटें नहीं जीते तो मेरे नाम से कुत्ता पाल लेना... यह ऐसा बयान था, जिसने क्षेत्र में एक लहर पैदा की और पत्थलगांव से जीत का रिकॉर्ड बनाने वाले रामपुकार सिंह हार गए. जिले की दो और सीटों जशपुर और कुनकुरी में भी भाजपा की जीत हुई थी. चुनाव था 2013 का. अभी कुछ दिनों पहले स्व. दिलीप सिंह जूदेव का निधन हुआ था और जशपुर जिले में बीजेपी का झंडा थामा था रणविजय सिंह जूदेव ने. रणविजय सिंह जूदेव... जशपुर राजघराने के राजा. पूर्व राज्यसभा सांसद और युवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष. ये उनकी पहचान है, लेकिन रणविजय फिलहाल टिकट नहीं मिलने पर भाजपा को ग्रुप लेफ्ट करने के मामले में चर्चा में हैं.

रणविजय जूदेव रायपुर उत्तर से दावेदारी कर रहे थे. इसमें उनका तर्क था कि उनका घर इसी एरिया में है. इसके अलावा 1967 में उनकी दादी जया सिंह जूदेव ने विद्याचरण शुक्ल के खिलाफ रायपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था. इस लिहाज से वे रायपुर में उनके परिवार की एक पृष्ठभूमि भी है. रायपुर से चुनाव लड़ने पर सरगुजा तक पॉजिटिव प्रभाव पड़ेगा. हालांकि यह तर्क काम नहीं आया. रणविजय के बजाय युद्धवीर की पत्नी संयोगिता सिंह जूदेव को चंद्रपुर और प्रबल प्रताप सिंह जूदेव को कोटा से टिकट दे दिया. इसी नाराजगी के कारण रणविजय ने पार्टी से सारे वाट्सएप ग्रुप छोड़ दिए. हालांकि उन्होंने मीडिया से यह भी कहा कि वे पार्टी नहीं छोड़ रहे हैं. बस सक्रिय राजनीति से दूर हो रहे हैं.

सांसद के रूप में नहीं छोड़ पाए छाप

दिलीप सिंह जूदेव के निधन के बाद जब रणविजय ने 2013 के विधानसभा चुनाव में जशपुर में प्रभाव डाला, उसी के ईनाम के रूप में पार्टी ने उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया. हालांकि बाद में वे कोई छाप नहीं छोड़ पाए. राज्यसभा सांसद का कार्यकाल खत्म हुआ और पार्टी ने उन्हें दोबारा मौका नहीं दिया. दरअसल, रणविजय जशपुर रियासत के राजा जरूर थे, लेकिन जो प्रभाव दिलीप सिंह जूदेव का था, वैसा प्रभाव वे नहीं छोड़ पाए. इसके विपरीत पार्टी ने जूदेव के बेटे और बहू को चुनाव मैदान में उतारा. यह भी एक वजह है कि एक ही परिवार से तीन लोगों को टिकट नहीं दिया गया.

पूरा जूदेव परिवार भाजपा की राजनीति में सक्रिय

जशपुर राजघराने का प्रभाव जशपुर जिले की तीनों सीटों पर है, लेकिन आरक्षित सीटें होने के कारण वे चुनाव में हिस्सेदारी नहीं कर पाते. युद्धवीर सिंह जूदेव चंद्रपुर से चुनाव लड़े और दो बार जीते. दिलीप सिंह जूदेव की छवि कट्‌टर हिंदू नेता के रूप में बनी. ऑपरेशन घर वापसी के कारण उन्हें देशभर में पहचाना जाने लगा. भाजपा ने भी उन्हें सिर आंखों पर बैठाया. वे 1975 में जशपुर नगरपालिका से अध्यक्ष बन कर सत्ता की राजनीति में आए. 1988 में पहली बार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह के खिलाफ खरसिया से विधानसभा चुनाव लड़ा था. इसमें उनकी हार हुई थी, लेकिन जिस तरह सत्ता के साम-दाम से वे जूझे थे, उससे अर्जुन सिंह की हालत खराब हो गई थी और उन्हें कैम्प करना पड़ा था. इसके बाद हार कर भी जुलूस निकाला गया था.

दिलीप सिंह जूदेव 1989 से 91 तक लोकसभा के सदस्य रहे और बाद में 1992 से 98 तक राज्यसभा के सदस्य रहे. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वे वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री रहे. इसके बाद बिलासपुर के सांसद बने. जूदेव परिवार के बाकी सदस्य भी भाजपा की राजनीति से जुड़े हैं. इनमें परिवार की नई पौध भी शामिल है, जो अभी अलग-अलग मोर्चा-प्रकोष्ठ से जुड़े हुए हैं. हालांकि आदिवासी बहुल जिला होने के कारण सक्रिय राजनीति के लिए उन्हें दूसरे जिलों और सीटों की ओर रुख करने की मजबूरी भी है.

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