CG सियासत में रियासत: आजादी के समय छत्तीसगढ़ में थी 14 रियासतें, चुनावी राजनीति में चार ही सक्रिय, पढ़िए विस्तार से

देश में रियासतों का विलय हो गया लेकिन प्रभाव आज भी बरकरार है. फिलहाल राजाओं में डिप्टी सीएम टी एस सिंहदेव सबसे ज्यादा पॉवरफुल और आर्थिक रूप से सक्षम भी हैं.

Update: 2023-11-01 07:02 GMT

Chhattisgarh Assembly Election 2023

रायपुर. आजादी से पहले अलग-अलग रियासतें थीं, जो शासन करती थीं. कालांतर में आजादी के बाद लोकतांत्रिक देश का पुनर्गठन हुआ और सभी रियासतों को भारत देश का हिस्सा बना लिया गया. रियासतें खत्म हो गईं, लेकिन राज परिवार का प्रभाव अभी भी बना हुआ है. कई सीटें ऐसी हैं, जो राज परिवार के ईर्द-गिर्द चलती हैं. विधानसभा, लोकसभा या राज्य सभा के जरिए नीति निर्धारकों में बने रहे. फिलहाल सिंहदेव और जूदेव परिवार ही सबसे ज्यादा चर्चा में हैं. आज इन रियासतों और चर्चित राज परिवारों पर बात...

1. अंबिकापुर

रियासतों की बात आती है तो पहले नाम सिंहदेव का परिवार ही आता है. टीएस सिंहदेव अंबिकापुर रियासत के राजा हैं. विजया दशमी पर वे पारंपरिक रूप से राजा के वेश में होते हैं और लोग उनके दर्शन के लिए आते हैं. विजयादशमी के दिन राजा के दर्शन को अच्छा माना जाता है. सिंहदेव के दादा रामानुज शरण सिंहदेव विधायक रहे. इसके बाद सिंहदेव की मां विधायक रहीं. मंत्री भी रहीं. सिंहदेव तीन बार के विधायक हैं और चौथी बार चुनाव लड़ रहे हैं. उनके पिता मध्य प्रदेश के पूर्व चीफ सेक्रेटरी और योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे.

2. कोरिया

रामचंद्र सिंहदेव कोरिया राजघराने के राजा थे. उन्होंने कभी शादी नहीं की. वे 6 बार चुनाव लड़े और जीते भी. चुनाव में शराब बंटती देखकर उन्हें बुरा लगा और चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर दिया. 2018 में कांग्रेस ने उनकी भतीजी अंबिका सिंहदेव को चुनाव मैदान में उतारा. एक बार फिर उन्हें प्रत्याशी बनाया गया है.

3. जशपुर

जशपुर रियासत के कुमार दिलीप सिंह जूदेव सबसे ज्यादा चर्चित नेता थे. वे केंद्र में राज्यमंत्री भी रहे. उनके बाद परिवार के रणविजय सिंह जूदेव को राज्यसभा का सांसद बनाया गया. इस बीच जूदेव के बेटे युद्धवीर राजनीति में आए. दो बार विधायक चुने गए. उनके निधन के बाद जूदेव के बड़े बेटे प्रबल प्रताप सिंह जूदेव कोटा से और बहू संयोगिता चंद्रपुर से चुनाव लड़ रही हैं.

4. बसना

देवेंद्र बहादुर सिंह चार बार के विधायक हैं. एक बार और बसना से उम्मीदवारी कर रहे हैं. उनके पिता वीरेंद्र बहादुर सिंह भी सांसद विधायक रहे.

इन राज परिवारों को इस बार नहीं मिला मौका

1. बस्तर

महाराज प्रवीर चंद भंजदेव की हत्या के बाद परिवार राजनीति से दूर रहा. 2013 के आसपास उनके बेटे कमल चंद्र भंजदेव भाजपा में शामिल हुए. उन्हें युवा आयोग का अध्यक्ष बनाया गया. वे टिकट मांग रहे थे, लेकिन इस बार भी उन्हें टिकट नहीं मिला.

2. खैरागढ़

खैरागढ़ राज परिवार से अभी कोई भी परिवार के सदस्य राजनीति में आगे नहीं आया है. यहां देवव्रत सिंह विधायक और सांसद रहे. इसी कार्यकाल में उनका निधन हो गया. देवव्रत की पिता और मां भी सांसद विधायक रहीं.

7. सारंगढ़

सारंगढ़ रियासत के राजा नरेश चन्द्र सिंह 1952 के पहले चुनाव में सारंगढ़ से विधायक बने थे. इसके बाद भी तीन बार वे विधायक बने. इस बीच वे एक बार 13 दिनों के लिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे. उनकी बेटियां कमला देवी, रजनीगंधा और पुष्पादेवी सिंह भी राजनीति में अाईं.

इन रियासतों को मान्यता

छत्तीसगढ़ के हिस्से की 14 सीटों को अंग्रेजों ने 1865 में मान्यता दी थी. इनमें से पांच कालाहांडी, पटना, रायखोल, बांबरा और सोनपुर उड़ि‍या भाषी रियासतें थीं. बाकी 9 रियासतें बस्तर, कांकेर, राजनांदगांव, खैरागढ़, छुईखदान, कवर्धा, सक्ति, रायगढ़ एवं सारंगढ़ हिन्दी भाषी थीं. सन् 1905 में उड़ि‍या भाषी रियासतें बंगाल प्रांत के उड़ीसा में शामिल कर दी गईं और बंगाल प्रांत के छोटा नागपुर से पांच रियासतें सरगुजा, उदयपुर, जशपुर, कोरिया और चांगभखार को मध्यप्रांत के छत्तीसगढ़ संभाग में शामिल किया गया. मध्यप्रांत में इन 14 के अतिरिक्त एक और रियासत माकड़ी थी, जो वर्तमान में मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में है.

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