CG में ओबीसी पॉलीटिक्स: आदिवासी नहीं अब ओबीसी बहुल छत्तीसगढ़ कहिए... विधानसभा और लोकसभा में यही मुद्दा

Update: 2023-09-26 10:36 GMT

Chhattisgarh Assembly Election 2023

रायपुर. कुछ सालों तक छत्तीसगढ़ की पहचान आदिवासी बहुल राज्य के रूप में थी पर क्या अब ओबीसी बहुल राज्य माना जाएगा. ऐसा कहना सही है या अधिकृत डाटा की जरूरत है. पहले तो यह बता दें कि क्वांटिफाएबल डाटा आयोग की रिपोर्ट में ओबीसी की संख्या 41-42 प्रतिशत के आसपास होने की जानकारी आई है. वैसे ओबीसी समाज द्वारा 50 प्रतिशत आबादी का भी दावा किया जाता है.

राज्य सरकार ने विधानसभा के विशेष सत्र में आरक्षण के संबंध में जो संशोधन विधेयक पारित किया है, उसमें आदिवासी समाज के लिए 32, अनुसूचित जाति के लिए 13, ओबीसी के लिए 27 और ईडब्ल्यूएस के लिए चार प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है. हालांकि इसे राज्यपाल ने मंजूरी नहीं दी है, इसलिए आरक्षण की स्थिति अधर में है. इसे लेकर पहले ही लंबी चर्चा और राजनीति हो चुकी है.

आज ओबीसी केंद्रित राजनीति पर बात हो रही है. दरअसल, कांग्रेस सांसद और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने बिलासपुर में हुए आवास न्याय सम्मेलन में जातिगत जनगणना की बात छेड़ दी. उन्हाेंने विधानसभा चुनाव के ऐलान से पहले ही लोकसभा का एक बड़ा मुद्दा खोल दिया कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनेगी तो जातिगत जनगणना कराएंगे. इस तरह सभी वर्गों को समान रूप से आगे बढ़ने का मौका दिया जाएगा.

इस मुद्दे की शुरुआत छत्तीसगढ़ के शहर से हुई है, इसलिए जब हम यहां की स्थिति पर नजर डालते हैं तो भले ही अनुसूचित जनजाति के लिए 29 और अनुसूचित जाति के लिए 10 सीटें आरक्षित हैं, लेकिन 51 सीटें ऐसी हैं, जहां ओबीसी वोटर बहुतायत में हैं। इनमें कुछ सीटें ऐसी हैं, जहां ओबीसी वर्ग के लोग ही हार-जीत का समीकरण तय करते हैं. समाज के लोगों को जिताते भी हैं और एक ही समाज के लोग प्रतिद्वंद्वी हैं, तो एक को हराते भी हैं.

छत्तीसगढ़ में फिलहाल 22 विधायक ओबीसी वर्ग के हैं. यहां सबसे ज्यादा संख्या साहू समाज की है. इसके बाद कुर्मी समाज के लोग आते हैं. बाकी समाज के लोग अपने-अपने पॉकेट में निर्णायक स्थिति में हैं. लोकसभा की बात करें तो 5 सांसद ओबीसी वर्ग के हैं. वर्तमान में साहू समाज के 6 और कुर्मी समाज के 7 विधायक हैं. इसके अलावा यादव, मरार, कलार आदि समाज के भी विधायक हैं. 2018 में भूपेश बघेल पीसीसी के अध्यक्ष थे, इसलिए कुर्मी समाज का प्रतिनिधित्व मजबूत हुआ था. इस वजह से भले ही साहू संख्या में ज्यादा हैं, लेकिन कुर्मी समाज को ज्यादा मौका मिला. एक और महत्वपूर्ण फैक्टर ताम्रध्वज साहू भी थे, जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे. इस कारण भी साहू समाज का झुकाव कांग्रेस की ओर दिखा और हर बार भाजपा को चार से छह सीटें देने वाले समाज ने एकमात्र रंजना साहू को जिताया था.

मोदी और तेली में बड़ा खेल

राहुल गांधी के भाषण को उस बयान से भी जोड़कर देखा जा रहा है, जिसके कारण उन्हें संसद की सदस्यता खोनी पड़ी थी. हालांकि बाद में बहाल हो गई. इसमें कथित तौर पर राहुल गांधी ने सारे मोदी चोर हैं, कहा था. इस बयान को पीएम नरेंद्र मोदी ने भुनाया और रायपुर लोकसभा के लिए चुनाव प्रचार के दौरान भाठापारा में सभा में कहा था कि गुजरात के मोदी यहां के तेली हैं. इसके बाद यह माना जाता है कि साहू वोटों का ध्रुवीकरण हुआ था और भाजपा को लाभ मिला था. अब पीएम मोदी ओबीसी को लेकर माहौल बना रहे हैं. इसके काट के रूप में राहुल ने कास्ट सेंसस का ऐलान किया है.

एसटी वोट बैंक का क्या होगा

ओबीसी केंद्रित राजनीति होने पर एसटी वोट बैंक को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं. एक समय छत्तीसगढ़ में कहा जाता था कि सत्ता का रास्ता बस्तर से खुलता है. हालांकि आदिवासी बहुल बस्तर और सरगुजा के वोटर हर बार एक जैसा परिणाम नहीं देते, बल्कि हर बार चौंकाते हैं. पिछली बार सरगुजा से भाजपा का पूरी तरह सफाया हो गया था. बस्तर संभाग की एकमात्र दंतेवाड़ा सीट भाजपा जीती थी, जो उपचुनाव में हाथ से निकल गई. अब यह सवाल उठ रहे हैं कि यदि ओबीसी केंद्रित राजनीति होगी तो एसटी वोट बैंक का क्या होगा? यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि सर्व आदिवासी समाज ने भी अपने प्रत्याशी उतारने का निर्णय लिया है.

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