Bilaspur News: CG कांग्रेस की जूतमपैजार कहीं नगरीय चुनाव में लुटिया न डूबो दे, PCC अध्यक्ष क़े सामने शर्मनाक घटना

Bilaspur News: बुधवार को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष दीपक बैज की मौजूदगी में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में कांग्रेस भवन में जो कुछ हुआ, सामने नगरीय निकाय चुनाव के लिहाज से कतई ठीक नहीं कहा जा सकता। अनुशासन तो तार-तार हुआ सो अलग, जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल आपस में कर रहे थे, कार्यकर्ता भौचक तो थे ही बड़े पदाधिकारी भी कुछ देर के लिए सन्न से रह गए। इनकी चिंता यही कि कांग्रेस भवन में विवाद की पड़ी नींव कहीं निकाय चुनाव में कांग्रेस की संभावनाओं पर बट्टा ना लगा दे। वैसे भी छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद से बिलासपुर जिले के कांग्रेस राजनीति का गुटबाजी को लेकर अपना अलग इतिहास ही रहा है।

Update: 2024-11-29 07:56 GMT

Bilaspur News: बिलासपुर। बुधवार को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष दीपक बैज की मौजूदगी में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में कांग्रेस भवन में जो कुछ हुआ,सामने नगरीय निकाय चुनाव के लिहाज से कतई ठीक नहीं कहा जा सकता। अनुशासन तो तार-तार हुआ सो अलग, जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल आपस में कर रहे थे, कार्यकर्ता भौचक तो थे ही बड़े पदाधिकारी भी कुछ देर के लिए सन्न से रह गए। इनकी चिंता यही कि कांग्रेस भवन में विवाद की पड़ी नींव कहीं निकाय चुनाव में कांग्रेस की संभावनाओं पर बट्टा ना लगा दे। वैसे भी छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद से बिलासपुर जिले के कांग्रेस राजनीति का गुटबाजी को लेकर अपना अलग इतिहास ही रहा है।

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद ही जिले की राजनीतिक आबो-हवा पर गौर करें तब यहां तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ही सब-कुछ थे। सत्ता भी वही और संगठन में भी। सत्ता और संगठन के बीच जो कुछ भी था तो वह जोगी का अस्तित्व और उनका ही धमक। तीन साल बाद प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ। जिले में कांग्रेस की राजनीति तब भी जोगी के इर्द-गिर्द ही घुमा करती थी। कांग्रेस के दिग्गज नेता भी तब राजनीतिक और सांगठनिक निर्णय लेने की स्थिति में नहीं हुआ करते थे। कांग्रेस की राजनीति में अविभाजित बिलासपुर जिला मतलब जोगी के कोटे का हुआ करता था। विधानसभा चुनाव से लेकर स्थानीय स्तर के चुनाव में टिकट वितरण में जोगी की ही चलती रही है। जब तक वे कांग्रेस में रहे बिलासपुर जिला कांग्रेस की राजनीति में उनके कोटे में ही रही। गुटीय राजनीति का बीजारोपण तो इसी दौर में ही बिलासपुर जिले में हो गया था। उस दौर से लेकर आजतलक कांग्रेस की राजनीति में बिलासपुर जिले के नजरिए से देखें तो एक चीज नहीं बदली वह गुटीय संघर्ष और गुटीय राजनीति। बिलासपुर जिले के कांग्रेस की नींव ही ऐसी पड़ी है कि जिले की राजनीति में तब भी और अब भी राजनीतिक सामंजस्य का अभाव दिखाई देता है। समर्थकों और नेताओं के बीच एएक तरह से लक्ष्मण रेखा खींची हुई है। समर्थक कार्यकर्ता भी इसी अंदाज में अपने आपको ढाल लेते हैं। वर्ष 2023 का विधानसभा हो या फिर एक साल बाद हुए लोकसभा का चुनाव। गुटीय राजनीति और आपसी खींचतान ने जिले में कांग्रेसी राजनीति का कबाड़ा ही कर दिया है। जिले की राजनीति में गुटीय लड़ाई और सामंजस्य के अभाव का सिलसिला अंतहीन है। मजे की बात ये कि प्रदेश स्तर के नेता विवाद को सुलझाने के बजाय हवा ही देते रहे हैं। इसे ऐसा भी कह सकते हैं कि अपनी सुविधानुसार हवा देना और पतंग की डोर को समय के अनुसार ढील देना और कसना।

स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर सताने लगी चिंता

बुधवार को कांग्रेस भवन में जो कुछ हुआ वह ना तो तत्कालिक था और ना ही क्षणिक। इसकी पृष्ठभूमि विधानसभा चुनाव के दौरान ही बनने लगी थी। या यूं कहें कि पटकथा चुनावी दौर में ही लिखी जा चुकी थी। गुस्सा धीरे-धीरे ही सही आखिरकार फूट ही पड़ा। विधायक से लेकर जनप्रतिनिधि और संगठन के पदाधिकारी से लेकर कार्यकर्ता सभी को अपने स्तर पर शिकायत है। चुनाव लड़े उम्मीदवारों का गुस्सा इस बात को लेकर कि भितरघात और खुलाघात करने वाले अब भी कांग्रेस में मजे से हैं। ना कार्रवाई और ना ही भितरघात सहने वाले छाया विधायकों को सहानुभूति का मरहम। कांग्रेस भवन में बुधवार को घटित घटना के बाद एक बात तो तय है कि इस विवाद का दूरगामी परिणाम देखने को मिलेगा। संगठन के पदाधिकारी और पूर्व महापौर के बीच सार्वजनिक विवाद का असर किस हद तक सामने आएगा, यह भी देखने वाली बात होगी।

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